देह का धंधा, गलीज और गंदा

देह का धंधा, गलीज गंदा

संजय तिवारी

देशभर की पुलिस के रूटीन काम में एक काम ये भी होता था कि वो किसी होटल या लॉज में छापा मारती है और वहां वेश्याओं को गिरफ्तार करती है। फिर इस गिरफ्तारी की खबर इस तरह छपवायी जाती है मानों पुलिस ने जग जीत लिया है।

लेकिन अब पुलिस बिरादरी का ये कारोबार सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब पुलिस सेक्स वर्कर को अपना धंधा करने से न तो रोक सकती है और न ही उन्हें परेशान कर सकती है। हां, वह सेक्स वर्कर 18 साल के ऊपर की होनी चाहिए।

हालांकि इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि वेश्यालय चलाना पहले की तरह अभी भी गैरकानूनी ही रहेगा।

अब सवाल ये उठता है कि माननीय सुको को ये बात कहने की जरूरत क्यों हुई कि कोई वयस्क महिला अगर वेश्यावृत्ति करती है तो पुलिस परेशान नहीं कर सकती। क्या ये भारतीय सामाजिक समझ और व्यवस्था के अनुकूल है? ये थोड़ा जटिल प्रश्न है। जटिल इसलिए क्योंकि अगर सुप्रीम कोर्ट वेश्यालयों को वैध मान लेते तो फिर व्यक्तिगत स्तर पर वेश्यावृत्ति करनेवाली छूट का मतलब होता। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ही विरोधाभास पैदा कर दिया है।

किसी भी समाज में वेश्यालय होते ही हैं। जहां तक मानवीय गरिमा की बात है तो भारत में वेश्या को बहुत गरिमा से देखा जाता रहा है। बंगाल में देवी की प्रतिमा बनाने के लिए वेश्यालय से मिट्टी लाई जाती है। बिना वेश्यालय की मिट्टी के मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने की शुरुआत ही नहीं होती। मतलब सामाजिक रूप से वेश्या को देवी के समतुल्य खड़ा करके देखा जाता है। यह संभवत: उसके प्रति मानवीय गरिमा को बनाये रखने का ही प्रयास होगा।

इसलिए सुप्रीम कोर्ट को संविधान के किसी अनुच्छेद का हवाला देने की जरूरत नहीं थी। उन्हें समाज की ऐसी मान्यताओं से मानवीय गरिमा वाली अपनी बात सिद्ध करनी चाहिए थी। लेकिन जब हम सबकुछ यूरोप से उठाकर भारत लाते हैं तो ये निर्णय भी यूरोप से उठाकर ही लाये हैं कि कोई वयस्क महिला अगर वेश्यावृत्ति करती है तो आप उसे मानवीय गरिमा के नाम पर नहीं रोक सकते। रोकना भी नहीं चाहिए। तो फिर वेश्यालयों को अवैधानिक क्यों मान रहे हैं?

यह तो दोहरा चरित्र है। अगर व्यक्तिगत स्तर पर वेश्यावृत्ति अच्छा कार्य है तो उसका कोई केन्द्र बन जाने पर वह बुरा क्यों हो जाता है? क्या सुप्रीम कोर्ट ये चाहता है कि सामाजिक व्यवस्थाओं को ध्वस्त किये बिना न्यू इंडिया का निर्माण नहीं होगा? या फिर ये कहना चाहता है कि व्यक्तिगत स्तर पर हर वयस्क महिला को वेश्यावृत्ति करने का अधिकार है? खैर, ये समझ पाना तो सचमुच नामुमकिन है कि वेश्यावृत्ति करना मानवीय गरिमा कैसे हो सकता है जिसके नाम पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे सही ठहरा दिया है।






Related News

  • क्या बिना शारीरिक दण्ड के शिक्षा संभव नहीं भारत में!
  • मधु जी को जैसा देखा जाना
  • भाजपा में क्यों नहीं है इकोसिस्टम!
  • क्राइम कन्ट्रोल का बिहार मॉडल !
  • चैत्र शुक्ल नवरात्रि के बारे में जानिए ये बातें
  • ऊधो मोहि ब्रज बिसरत नाही
  • कन्यादान को लेकर बहुत संवेदनशील समाज औऱ साधु !
  • स्वरा भास्कर की शादी के बहाने समझे समाज की मानसिकता
  • Comments are Closed

    Share
    Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com