समीकरण की राजनीति में पीछे छूट गये हैं जनता के मुद्दे
वीरेंद्र यादव
मधुबनी जिले के बिस्फी से भाजपा के विधायक हैं हरिभूषण ठाकुर ‘बचोल’। जाति से भूमिहार हैं, हालांकि उनके निर्वाचन क्षेत्र में भूमिहारों की संख्या काफी कम है। भगवा वेषधारी श्री बचोल से आमतौर पर विधानमंडल के गलियारे में मुलाकात हो जाती है। वे तीसरी बार विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री हुकुमदेव नारायण यादव को अपना राजनीतिक गुरु मानने वाले हरिभूषण ठाकुर कहते हैं कि अपनी यात्रा की शुरुआत विद्यार्थी परिषद से की थी। इसके बाद आरएसएस के अन्य संगठनों के साथ जुड़कर राष्ट्रनिर्माण के कार्य में जुटे रहे। वीरेंद्र यादव न्यूज के साथ बातचीत में उन्होंने बताया कि 1989 में भाजपा के पोलिंग एजेंट के रूप एक बूथ पर तैनात थे। इसी दौरान विरोधियों ने उन पर चाकू से हमला कर दिया। गंभीर रूप से जख्मी श्री बचोल का इलाज पीएमसीएच और एम्स में किया गया। 1992 से 96 तक भाजपा युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष और 1997 से दो टर्म भाजपा के जिला महामंत्री भी रहे। लेकिन 2005 के विधान सभा चुनाव में भाजपा से टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा। 2005 के दोनों विधान सभा चुनाव उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप जीता। 2010 में उन्होंने जदयू के टिकट पर बिस्फी से चुनाव लड़ा, लेकिन पराजित हो गये। जदयू में रहते हुए उन्होंने संगठन की कई जिम्मेवारियों का निर्वाह किया। लेकिन जल्दी ही उनका जदयू से मोहभंग हो गया और वापस भाजपा में आ गये। लेकिन 2015 में भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय मैदान में उतर गये। 27000 वोट लाकर अपनी दमदार मजबूती दर्ज की। 2020 में भाजपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया और तीसरी बार विधान सभा पहुंचे।
हिंदुत्व के एजेंडे के साथ अपनी राजनीति शुरू करने वाले श्री बचोल की राजनीति इसी के आसपास केंद्रित रही। उन्होंने कई मंदिरों का निर्माण करवाया। 1996 में उगना महादेव मंदिर, भैरवा में मेला लगाने की शुरुआत की। अपने 30 वर्षों के राजनीतिक अनुभव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पहले जनता की बात होती थी, मुद्दों की बात होती थी, लेकिन अब समीकरण की बात होती है। जनता के मुद्दे पीछे छूटते जा रहे हैं। नयी राजनीतिक व्यवस्था में सत्ता और पैसे की भूख ज्यादा बढ़ी है। धन की लालसा बढ़ी है। यह राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों पदों पर बैठे व्यक्तियों में देखी जा रही है। इस कारण जनता के मुद्दे गौण हो गये हैं। जाति भावना प्रबल हो रही है। वे राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हुए कहते हैं कि भारत और भारतीयता रहेगी, तभी जाति भी रहेगी और जमात भी।
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