निराश हो तो बाइडन का पन्ना खोलो
निराश हो तो बाइडन का पन्ना खोलो
रघुनाथ सिंंह लोधी
निराशा दूर करने के लिए अब्राहम लिंकन की प्रेरणा पुरानी हो चली है। पंद्रह बार पराजित होनेे के बाद लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव जीते थे। जो बाइडन की जीत नया डंका बजा गई है। अठहत्तर की उम्र में बाइडन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। उनकी पत्नी व बेटी की सड़क हादसे में मौत हुई थी। क्रिसमस ट्री खरीदकर लौटते समय हादसा हुआ था। एक बेटे की मौत ब्रेन कैंसर से हुई। दूसरा बेटा कोकिन नशे की लत के कारण यूएस नेवी से बाहर कर दिया गया। स्वयं बाइडन मांसपेशीय लकवा से ग्रसित है। लेकिन वे शारीरिक और मानसिक तौर पर देश की जिम्मेदारी संभालने के लिए सक्षम हैं। अमेरिका
में अश्वेतों की स्थिति दलितों जैसी होती है। भेदभाव। बराक ओबामा दबकर नहीं रहे। ऐतिहासिक राष्ट्रपति बने थे।
और हम
हम भारतीय पचास की उम्र के करीब पहुंचते ही सोचने लगते हैं कि 4-5 वर्ष काम करके आराम करने लगेंगे। सबकुछ हो गया। पैतालीश की उम्र में फिल्मों में काम की शुरुआत करनेवाले ओमपुरी को भूल जाते हैं। सोच बदलिए। व्यवहार बदलिए। आप हर समय चुनौती स्वीकार सकते हैं। नई शुरुआत उम्र की परवाह नहीं करती है। कड़ी मेहनत,हर हाल में मनचाही सफलता दिलाती है। सफलता के लिए खोलिए बाइडनों के जीवन के पन्ने।
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