पटना की पूजा की तीन रोज इश्क की डिमांड भारी

puja upadhayayपटना. माता-पिता की जुबानी और स्कूल की किताबों में बचपन में पढ़ी कहानियां जब चढ़ती उम्र के साथ गुम होने लगती हैं, तब उन्हीं गुम हुई कहानियों की खोज में पूजा उपाध्याय ने रचा 46 कहानियों का संग्रह ह्यतीन रोज इश्कह्ण। 28 साल की उम्र में ही पटना की बेटी पूजा उपाध्याय ने अपने इस कहानी संग्रह से ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जिसे पाने के लिए दूसरों को लम्बा अरसा लग जाता है। पटना, भागलपुर और देवघर जैसे छोटे शहरों से निकल कर दिल्ली, बेंगलुरू और न्यूयॉर्क जैसे देश और विदेश के शहरों की चकाचौंध वाली जिंदगी को जीते हुए पूजा ने ठेठ बिहारी अल्फाज और अंदाज को अपने किताब में पिरोया है।पेंगुइन बुक्स से प्रकाशित इस किताब की अब तक लगभग 2000 प्रतियां बिक चुकी हैं। आॅनलाइन शॉपिंग साइट्स फ्लिपकार्ट और अमेजन पर दो बार आउट आॅफ स्टॉक होने का दावा किया जा चुका है। किताब के आॅर्डर विदेशों तक से आ रहे हैं। इससे गद?्गद होकर लेखिका पूजा उपाध्याय कहती हैं, बहुत जल्दी मेरी दो और किताबें बाजार में आएंगी। किताब लिखने से पहले पूजा ने कई एड एजेंसियों में कॉपीराइटिंग, इवेंट मैनेजमेंट, कॉपोर्रेट कम्युनिकेशन, स्क्रिप्टिंग और कॉफी टेबल बुक का लेखन और संपादन किया है।
केंद्र सरकार ने इस युवा लेखिका को कर्नाटक सरकार की कॉफी टेबल बुक लिखने के लिए सम्मानित भी कर चुकी है। सरकार ने पूजा को पब्लिक रिलेशन के क्षेत्र में कॉलैटरल गोल्ड अवार्ड से सम्मानित किया।
क्यों है चर्चित : ठेठ बिहारी, विशेष रूप से पटनहिया, भागलपुरी और भोजपुरी बोली के अंग्रेजी के शब्दों के साथ रुचिकर मेल ने किताब को लोकप्रिय बनाया है। कुल 46 कहानियों के इस संग्रह में कहानियां प्रेम पर ही आधारित हैं। कुछ कहानियों में समकालीन समाज की आधुनिक परिवेश वाली लड़की की जिंदगी के दर्शन भी होते हैं, जो छोटे शहर से निकल कर किसी बड़े शहर में जाती है। इसके बारे में और बताते हुए पूजा कहती हैं..इसमें केवल प्रेम ही नहीं है, बल्कि बदलते परिवेश और दौर में लड़की की बदलती जिंदगी के वाकए भी हैं। कहानियां ही क्यूं, कविताएं या उपन्यास भी तो लिखे जा सकते थे, इस सवाल पर पूजा कहती हैं.. इंसान की जिंदगी ही एक कहानी है। हर मोड़ पर, हर सवाल पर और हर साजिश के पीछे एक कहानी है। हम कहानियां ही तो बनाते हैं जिंदगी भर। कविताओं के लिए कल्पनाशीलता की जरूरत है, कहानियों के लिए गुम होते किरदारों की। बचपन में माता-पिता से सुनी कहानियों ने कहानीकार बना दिया।
किताब के शीर्षक के चयन पर पूजा कहती हैं, ह्यबस यूं ही मिल गया। ढेर सारे शीर्षक दिमाग में आए, लेकिन जंचे नहीं। तीन रोज इश्क के पीछे का आइडिया फ्रैंक कीट्स की कविता की ए लाइनें थीं..काश कि हम तितलियां होते, जिनकी उम्र गर्मियों के तीन दिन ही होती हैं, तुम्हारे साथ बिताए इन तीन दिनों की खुशी पचास साधारण सालों से बढ़Þकर होती….इसी तरह नाम आया तीन रोज इश्क।
पटना से विशेष लगाव
पटना से लगाव के बारे में पूजा कहती हैं, सबसे पहले इस शहर ने मुझे जीने और सोचने का नया नजरिया दिया। अच्छा लगता है, जब लोग मुझे पटनहिया बोलते हैं। पटना वीमेंस कॉलेज की फैकल्टी और परिवेश आॅब्जेक्टिव दृष्टिकोण बनाने में बहुत मददगार हुए। कहानियां भी तो यहीं से निकलती हैं। आना-जाना लगा रहता है। जब भी शहर बुलाता है, चली आती हूं। हमें लौट कर अपने शहरों तक जाने की जरूरत है। पटना पहले से बेहतर हुआ है। फ्लाइओवरों को देख कर लगता है कि हम दिल्ली में हैं। हालांकि, अब भी लड़कियों के प्रति वही सोच है। from dainikbhaskar.com






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