नीतीश को लेकर तेजस्वी को बदलनी होगी रणनीति
——– वीरेंद्र यादव —————–
विधान सभा चुनाव का समय नजदीक आने के साथ ही पार्टियां की रणनीति बनाने और बदलने लगी है। हमने कल के अपने पोस्ट में लिखा था कि अगला विधान सभा चुनाव मुख्यमंत्री चुनने का होगा और विधायक की भूमिका प्रतीकात्मक भर रह जाएगी। वोटरों को सीधे मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव को चुनना होगा और उसी के लिए मतदान करना होगा।
भाजपा और जदयू की रणनीति इसी बात पर केंद्रित है कि लालू यादव राज को बहस के केंद्र में रखा जाये। इसलिए एनडीए बार-बार 15 वर्ष बनाम 15 वर्ष का मुद्दा उछाल रहा हैं। और फिर राजद उन्हीं सवालों का जवाब देने में उलझ जा रहा है। यानी आज भी बिहार में चुनाव का मुद्दा नीतीश कुमार या नरेंद्र मोदी नहीं, बल्कि लालू यादव हैं। जब तक चुनाव का मुद्दा लालू यादव रहेंगे, तब तक राजद की राह आसान नहीं होगी। इसलिए राजद को खुद मुद्दा बदलना चाहिए।
दरअसल राजद को मुद्दा के केंद्र में नीतीश कुमार को लाना चाहिए। राजद का मुद्दा होना चाहिए नीतीश बनाम नीतीश। 2005 के नीतीश और 2020 के नीतीश। राजद नीतीश कुमार के खिलाफ नकारात्मक अभियान चलाकर उनके पिछड़ा आधार में सेंधमारी नहीं कर सकता है। राजद को नीतीश कुमार की अविश्वसनीयता और असफलता को फोकस करना चाहिए।
यह स्वीकार करने में कोई परहेज नहीं करना चाहिए कि नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल में बेहतर काम हुआ। लेकिन आज 15 साल बाद नीतीश सबसे विफल मुख्यमंत्री साबित हुए। 2005 में जनता ने नीतीश पर भरोसा किया था, लेकिन आज नीतीश कुमार जनता के भरोसे को बेच चुके हैं। विकास के पायदान पर बिहार जहां 2005 में खड़ा था, वहीं 2020 में भी खड़ा है। पंचायती राज व्यवस्था में अतिपिछड़ों को 20 फीसदी आरक्षण देकर नीतीश कुमार ने सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में बहुत बड़ा और परिवर्तनकारी काम किया था, लेकिन इस संस्थाओं में भ्रष्टाचार को रोकने में नीतीश विफल रहे। नीतीश के कार्यकाल में सांप्रदायिक दंगे भी बढ़ते गये। और सबसे बड़ी बात, नीतीश कुमार ने सामाजिक न्याय के दूसरे चरण के रूप में मुख्यमंत्री का पदभार संभाला था। आज 15 साल बाद सामंती और सांप्रदायिक शक्तियां चरम पर हैं और नीतीश कुमार उनके सामने हथियार डाल चुके हैं। भाजपा सामंती और सांप्रदायिक शक्तियों को स्थापित करने के लिए नीतीश कुमार को ‘मुखौटा’ के रूप में इस्तेमाल कर रही है।
मुद्दा यह भी होना चाहिए कि 15 वर्षों में नीतीश थक चुके हैं। जनता उनके कामों और कार्यशैली से उब गयी है। निर्णय लेने की शक्ति क्षीण हो गयी है। पिछड़ों, अतिपिछड़ों और अल्पसंख्यकों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा देने में असमर्थ हो गये हैं और भाजपा के ‘पावर मैनेजर’ बनके रह गये हैं।
थके और हारे हुए नीतीश के उतराधिकारी तेजस्वी यादव जैसे युवा नेता हैं। बिहार की जनता को नीतीश कुमार को सम्मान के साथ विदाई देनी चाहिए और युवा नेता तेजस्वी यादव को सत्ता सौंपनी चाहिए।
तेजस्वी यादव को खुद यह कोशिश करनी चाहिए कि चुनाव में लालू यादव राज मुद्दा नहीं बने। एनडीए की रणनीति लालू यादव को फोकस में बनाये रखना होगी। यदि राजद उसी में उलझ गया तो मुश्किल बढ़ सकती है, जबकि मुद्दों के दौड़ में लालू यादव की अनुपस्थिति राजद के लिए कारगार साबित होगी।
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