कोरोना संकट के बीच बिहार बनेगा चुनावी मॉडल

संतोष कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
Source: News18 Bihar
कोरोना महामारी की वजह से जिंदगी चंद महीनों के लिए लॉकडाउन हो गई. लेकिन अब जब सामान्य जनजीवन पटरी पर लाने की कवायद तेज हो गई है तो सवाल उठ सकता है कि क्या इसी साल यानी चार महीने बाद होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) तय समय पर होंगे? कोरोना के बीच ही राज्यसभा के चुनाव स्थगित हो चुके हैं, जिसमें जनता नहीं, सिर्फ विधायक वोट करते हैं. ऐसे में मौजूदा परिस्थितियां इस आशंका को बल दे रही है कि चुनाव कैसे कराया जाए. जिन स्कूलों पर मतदान केंद्र बनाए जाते हैं, वहां तो क्‍वारंटाइन केंद्र बने हुए हैं. शहरों से गांवों की ओर वापसी तेज हो चुकी है, ऐसे में कोरोना का ग्राफ कितना बढ़ेगा, इसको लेकर निश्चित तौर से कुछ नहीं कहा जा सकता. लेकिन राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारी तेज कर दी है. जिसमें सबसे अहम तैयारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) की है जो आधुनिक तकनीकों से न सिर्फ लैस है, कोरोना के बीच लगातार डिजिटल माध्यमों से बूथ तक संपर्क का काम कर रही है. बिहार की सत्ताधारी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) की भी तैयारी उसी लिहाज से चल रही है. जबकि अन्य पार्टियां भी अपनी क्षमता के हिसाब से चुनावी तैयारी में जुट चुकी है.

दक्षिण कोरिया मॉडल के अनुसार हो सकते हैं बिहार चुनाव
लेकिन परिस्थितियों पर सरकार क्या निर्णय लेगी, यह तो बाद की बात है, लेकिन केंद्रीय चुनाव आयोग ने इस कोरोना वैश्विक महामारी के बीच बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. अमूमन सितंबर में चुनाव की अधिसूचना जारी होती है. जिसे ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग एक खास मॉडल पर बिहार चुनाव कराने की सोच रहा है, जिसे दक्षिण कोरिया मॉडल कहा जाता है. कुछ समय पहले एक सवाल के जवाब में केंद्रीय चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने इस मॉडल के अध्ययन करने की बात भी कही थी. यानी आयोग चुनाव के लिए दक्षिण कोरिया मॉडल का अध्ययन कर समझने की कोशिश कर रहा है कि कैसे जब महामारी अपने चरम की तरफ बढ़ रही थी, तब अप्रैल में यानी पिछले महीने इस देश ने कैसे चुनाव कराया. अब जबकि मई खत्म होने को है और उसके बाद बामुश्किल तीन महीने का समय होगा जब चुनाव आयोग को अधिसूचना जारी करना है. आयोग में भी सक्रियता के साथ बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारी चल रही है. केंद्रीय मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा विदेश में फंस गए थे, जो अब केंद्र सरकार के वंदे भारत मिशन के जरिए स्वदेश लौट चुके हैं. यानी पूरा चुनाव आयोग यह मिसाल पेश करने में जुट चुका है कि कैसे कोरोना के बीच विधानसभा के चुनाव कराया जा सकता है.

कोरोना महामारी के बीच कोरिया ने कराया चुनाव

हालांकि बिहार में करीब 77 हजार मतदान केंद्र होंगे, जबकि दक्षिण कोरिया में 14000 मतदान केंद्र बनाए गए थे. ऐसे में ग्रामीण परिवेश वाले बिहार में चुनाव कराना बेहद चुनौतीपूर्ण तो होगा ही, लेकिन भारत जैसे देश के लिए भी एक इम्तिहान है कि क्या कोई महामारी संवैधानिक प्रक्रिया को भी थाम सकती है. दक्षिण कोरिया दुनिया का ऐसा पहला देश बना जिसने इस महामारी के बीच चुनावा कराया. सभी मतदान केंद्रों को लगातार सैनिटाइज करने की प्रक्रिया चलाई गई तो हाथ में दास्ताने, मास्क और सैनिटाइजर अनिवार्य तौर से मतदाताओं के पास था. सभी मतदाताओं के बीच सुरक्षित दूरी सुनिश्चित तो की ही गई, सबके शरीर का तापमान रिकॉर्ड करने के बाद ही मतदान केंद्र के भीतर जाने की अनुमति मिली. अगर किसी का तापमान निर्धारित सीमा से ऊपर था तो उसे अलग मतदान केंद्र पर ले जाया गया जो खास तौर से इसी तरह के मामले को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था. चुनाव के समय करीब 2800 कोरोना मरीज थे जिसे ई-मेल या जाने की स्थिति में हो तो विशेष तौर से बनाए गए मतदान केंद्र पर जाकर वोट कर सकता था. जबकि खुद को क्‍वारंटाइन रखने वाले 13 हजार से ज्यादा लोगों को मतदान के बाद बैलेट पेपर से मतदान की छूट दी गई. यानी दक्षिण कोरिया ने पूरे एहतियात और सैनिटाइजेशन की प्रक्रिया को सख्ती से पालन कराकर चुनाव को अंजाम दिया.

दक्षिण कोरिया कोरोना महामारी के बीच दो वजहों से चुनाव का मॉडल बना. पहला तो यह कि सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में यह एक जोखिम भरा कदम था क्योंकि सबको वोट डालने के लिए घरों से बाहर आना था. दक्षिण कोरिया के आंकड़ों को देखा जाए तो 28 साल में पहली बार इस तरह से वोटर ने चुनाव में हिस्सा लिया. करीब 62 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाला जो वहां के लिहाज से सर्वाधिक है. दूसरा यह कि कोरोना जब फैला तो चीन के बाद सबसे अधिक दक्षिण कोरिया में ही कोरोना के मामले आए थे, लेकिन वहां की सरकार ने तत्काल कड़े प्रावधान और परीक्षण के जरिए इसकी रोकथाम की. जिसका फायदा चुनाव में मौजूदा राष्ट्रपति मून जे को मिला. 300 संसदीय सीटों पर हुए चुनाव में मून जे की पार्टी ने 163 तो सहयोगी को 17 सीटें मिली. यानी सत्ताधारी गठबंधन को 180 सीटें हासिल हुई जबकि मुख्य विपक्षी दल को 103 सीटें मिली. इस चुनाव को दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति मून जे के कोरोना से निपटने के प्रयासों पर जनमत संग्रह के तौर पर देखा गया.

सामाजिक समीकरण और अन्य फैक्टर में सत्ताधारी गठबंधन फिलहाल भारीऐसे में कोरोना के बीच होने वाले बिहार विधानसभा का चुनाव भी सरकारी उपायों का जनमत संग्रह होगा या फिर जातीय समीकरणों में उलझी बिहार की राजनीति का ही नमूना उभरेगा. यह तो विधानसभा चुनाव के नतीजों से ही मालूम पड़ेगा. बिहार की सियासत में मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक अहम फैक्टर हैं. अगर वर्ष 2000 के बाद की बिहार की बदली सियासत को गौर से देखें तो नीतीश कुमार ऐसे फैक्टर बन गए हैं जो जिस तरफ जाएंगे, उसका पलड़ा भारी हो जाएगा. सामाजिक समीकरणों के लिहाज से 35 फीसदी वोट पर बीजेपी की पकड़ है तो 30 फीसदी पर आरजेडी का. ऐसे में करीब 15 फीसदी वोट पर मजबूत पकड़ रखने वाले नीतीश कुमार बेहद अहम हो जाते हैं. सामाजिक समीकरण और अन्य फैक्टर में सत्ताधारी बीजेपी-जद यू गठबंधन फिलहाल भारी है. ऐसे में अगर सबकुछ निर्धारित कार्यक्रम के तहत हुआ और चुनाव में देरी का कोई फैसला नहीं हुआ तो दीपावली के पावन त्योहार से पहले संपन्न होने वाला बिहार विधानसभा का चुनाव निस्संदेह बेहद अहम होगा.​

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं)






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