बदल गया प्रेम का हर फ्रेम

तुरंता प्रेम उर्फ लव @2020
संजय श्रीवास्तव

जो लोग देवि, प्राणेश्वरी, प्रियतमे, प्रिये, जान, जानू, प्यारी स्वीटू से बेबी, शोना, छोना और बाबू तक पर नजर रखते हैं वे जानते हैं कि प्रेम, प्यार, रोमास कैसे, कितना और कब बदलता है। आज स्थिति यह है कि बनन में बागन में बगरो बसंत है कि तर्ज पर प्रेम चहुंओर फैला हुआ है। प्रेम प्रवाह का पारावार नहीं है।
कुछ लोग इस बासंती बयार में भी प्रेमातुर नहीं है उनको छोड़िये ये उनकी अपनी अंदरूनी समस्या है पर जिन्हें प्रेम चाहिये उन्हें यह इस डिजटल युग में उतने ही आसानी से हासिल है जितना दुष्प्राप्य कभी बीसी या बिफोर कंप्यूटर युग में होता था।
अब दे दे प्रेम दे…प्रेमे दे ..प्रेम दे… रे की गुहार लगाने की आवश्यकता नहीं है, प्रेम तो आपकी मुट्ठी में उसी तरह मौजूद है जैसे घट में राम निवास करते हैं। मुट्ठी के मोबाइल को ज़रा ढीला करिये। प्रेम की तमाम परतें खुलने लगेंगी।
कभी इश्क आग का दरिया था, अभी हाल तक प्रेम पथ पर चलना सिर हथेली पर रख कर चलने जैसा बेहद कठिन था पर अब प्रेम का श्रीगणेश करना बस एक क्लिक भर दूर बताया जाता है।

बदला बदला सा प्रेम नजर आता है

कभी सारा जमाना प्रेमियों का दुश्मन होता था। आज जमाने को उतनी ज्यादा फिक्र नहीं रह गयी है, वह अपना डाटा कंज्यूम करने में बिजी है। जमाने को तो जाने ही दें प्रेमियों के प्रतिद्वंदी या रकीब जो अनिवार्यतः हुआ करते थे, अब जब सभी को विकल्प तथा साथी सुविधा सहज ही उपलब्ध है तो वो भी नहीं हैं। सभी आत्मनिर्भर हैं।
इस डिजिटल दौर में जिन प्रेम प्रत्याशी को कोई प्रियतमा या प्रेमी सुलभ नहीं है उनके बारे में तो बस यही कहा जा सकता है कि सकल पदारथ है जग माहीं, नेट हीन नर पावत नाहीं। अर्थात संसार में तमाम प्रिय और प्रियतमा उपलब्ध हैं, कृपया इंटरनेट की शरण गहें।
तब जबकि डाटा आटा से कई गुना सस्ता है, प्रेम की क्या कमी हो सकती है, बल्कि बहुतायत है। किसी सुमुखी का डाटा रिचार्ज करवा के भी आप इसका शुभारंभ कर सकते हैं।
तब कोई ऐसा घनिष्ठ अंतरंग मित्र मिलना मुश्किल होता था जिसकी सहायता के बिना प्रेम प्रसंग का आगे बढाएं, आज किसी भी प्रेम प्यासे की हर कदम पर सहायता को तमाम ऐसे प्रेम सहायक उपलब्ध हैं।
निस्वार्थ भाव से तकरीबन मुफ्त। ये आपके प्रेम को जिस स्थान से कहेंगे, तलाश देंगे। संपर्क सूत्र भी दे देंगे और वह ठीहे भी बता देंगे जहां पर इनसे वर्चुअल या आभासी मुलाकात हो सकती है। इस कुट्ट्नी कार्य के लिये कार्पोरेटी ठसक वाली कई सारी कंपनियां है जिनकी वेब साइट्स और एप हैं।
अब आप पर है कि आप अगर प्रेम प्रवीन हैं तो इस उँगली को पकड़ कर पहुंचा तक पहुंच जायेंगे और प्रेम तट के इस पार से उस पार उतर जायेंगे।
लोग यह कहते हैं कि पुराना प्रेम, आधुनिक प्रेम,मध्य युगीन प्रेम जैसा कुछ नहीं होता, सच तो यह है कि प्रेम हर दौर में अपना परिधान ही नहीं बदलता खुद भी परिवर्तित होता है। शीरी फरहाद वाले प्रेम की परिकल्पना आज के डिजिटल युग में नहीं कर सकते

तकनीक ने संबंधों पर जितना प्रभाव डाला उससे ज्यादा तकनीक से लोगों के संबंधों का असर इस पर पड़ा है। तकनीक से संबंध जितना गाढा होगा उतना की प्रेम पतला या तनु होता जायेगा। यही हाल प्रेम का है, परंपरागत प्रेम की हालत पतली है

प्रेम वही जो हाट बिकाय

तमाम कंपनियों ने इंटरनेट पर अपने ठीहे खोल रखे हैं। मित्रता कीजिये, सोशल प्लेटफॉर्म पर या निजी चैट बॉक्स अथवा मैसेंजर और व्हाट्सएप पे प्राइवेट में मिलिये जुलिये, यहाँ बजरंगियों का भी भय नहीं। अब अगर प्रेम के इस गेम में आप कहीं से कमजोर पड़ रहे हैं तो उसके लिये बहुत से लोग लव डॉक्टर, रिलेशनशिप एक्सपर्ट मुफ्त में मौजूद हैं, प्रेम अगर एक रोग है तो अब उसके चिकित्सक पत्र पत्रिका से होते हुये साइट दर साइट आपके मोबाइल तक में उपस्थित हैं।
इनके इनके सूत्रों से प्रेम पहेली हल कीजिये, सफल होइये।
प्रेम में गर गच्चा खा गये तो निराश होने की कोई बात नहीं आजकल ब्रेकअप के बहुतेरे मामलों का गारंटीशुदा इलाज की व्यवस्था करने वाले भी कम नहीं है। निदान और उपचार तत्काल संभव है।
अधिक देर तक प्रेमदंश का प्रेमदाह नहीं भुगतना पड़ेगा ।वैसे भी यह संसार नश्वर है, आपका क्या गया, इसमें उसका घाटा। आपने थोड़े से समय और धन के निवेश से बड़ा अनुभव पाया जो आगे काम आयेगा। तजिये सब कुछ। नई उम्मीदों के साथ आगे बढिये एक फ्रेश प्रोफाइल बनाइये। तू तो नहीं और सही… और नहीं तो और सही….डिजिटल एज में यही प्रेम नाम सत्य है।
आप अभी नौसिखुये हैं, पकी उम्र के हैं, फुल टाइम प्रेमी नहीं हो सकते। पार्ट टाइम प्रेम प्रदर्शन के लिये ही अपने को प्रिपेयर कर पाये हैं, घर का प्रेम पुराना पड़ गया, अब पसंद नहीं आ रहा, नया प्रेम आजमाना चाहते हैं।
गंभीर प्रेमी हैं, प्रेम से लेकर शादी और जीवन साथी बना तक के लिये गंभीर हैं पर काम, कैरियर, ऑफिस से समय नहीं कि कि कोई पार्टनर तलाश कर सकें या फिर आप प्रेम को बस तफरीह और टाइम पास के नजरिये से देखते हैं या फिर प्रेम के साथ मेरे प्रयोग जैसा कोई तज़ुर्बा हासिल करना चाह रहे हैं।तो यह कनेक्टेड काल खंड सब के लिये बहुत मुफीद है।

प्रवृत्ति और प्रकृति में परिवर्तन ला रहा
प्रेम प्रसाद के रूप में चाहिये या पानीपुरी जैसा अथवा पनीर सरीखा। इस डिजिटल दौर में हर किस्म के प्रेम प्रदान करवाने के लिये प्रेम प्रदाता मौजूद हैं। क्या इतने प्रेम प्रतिष्ठान डिजिटल दौर से पहले भी कभी हुआ करते थे। प्रलय पूर्व पृथ्वी पर प्रेम प्रोत्साहन का ऐसा परिदृश्य शायद न मिले। प्रेम करना इतना आसां पहले तो कभी न था जितना तकनीक युग के इस डिजिटल दौर ने बना दिया है।
प्रेम के लिये प्राथमिक आवश्यकता है एक अदद ऐसा मीत या साथी ढूँढना जो प्रेम का प्रतिकार न करे, प्रेम का प्रत्युत्तर प्रेम से दे, ऐसा प्रेमी तलाशना बहुत कठिन काम था। पहले किस्मत से ही मिलता था अब कंप्यूटर से मिल जाता है।
बिग डाटा आपके लिये परफेक्ट मैच ढूंढ देगा उसी तरह जैसे पुराने जमाने में जागा या नापित अथवा चलते पुर्जे रिश्तेदार वर या वधू ढूंढते थे। गर आप वेलेंटाइन डे के दिन अकेले हैं तो डेटिंग साइट पर जल्दी से प्रोफइल बनायें और बना चुके हैं तो एक्शन में आयें, प्रेम कमाएं। डिजिटल युग के गुण गायें।
उचित प्रेम प्रत्याशी ढूँढना अब बहुत मुश्किल काम नहीं। विज्ञानी इस खोज में पड़े हैं कि बिग डाटा के अनुसार सारे एल्गोरिद्म का हिसाब लग कर सटीक समीकरण बिठा कर पार्टनर तलाशा जाये जो एक बार मिल जाए तो उसके लंबी निभे। हैवी ड्यूटी, टिकाऊ जोड़े तलाशे। जल्द ही प्रेम दीवाने सिस्टम हैक कर के जानना चहेंगे कि उनका पार्टनर कहां छुपा बैठा है। प्रेम कभी गणित नहीं रहा पर ड्जिटल दौर में आकडों, समीकरणों के गुणा गणित में हो जायेगा।
बिगडाटा से कंप्यूटर ठीक उसी तरह पार्टनर तलाशेगा जैसे ज्योतिषी कुंडली मिला कर और सारे ग्रह नक्षत्र और गुण मिला कर रिश्ता ढूँढता है। आगे से रिश्ते तलाशनी वाले वेब साइट्स इस बात की गारंटी देंगी कि यह रिश्ता इतने साल तक ज़रूर टिकेगा अथवा यह ब्रेकअप प्रूफ रिश्ता है।
जिसमें ब्रेकअप की आशंका न्यून हो और जब रिश्ता मिलाया जाये तो यह बताया जाये कि इस रिश्ते में ब्रेकअप की आशंका इतने प्रतिशत है। ज़ाहिर है आप साथी, पार्टनर ढूंढ्ने के सेवा जितनी प्रीमियम स्तर की लेंगे, पैसे देंगे उतने ही टिकाऊ रिश्ते मिलेंगे।
इस में प्रेम के पनपने की गुंजाश कितनी होगी पता नहीं पर प्रयास पूरा रहेगा। एक जमाने में मुहल्ला बदल लेने से प्रेम प्रभावित हो जाता था, शहर बदर हुआ तो प्रेम प्रकरण का अंत ही समझिये।
अब इस डिजिटल युग में स्काइप, व्हाट्सप फोनकॉल और तमाम दूसरे तरेकों से सात समुंदर पार से भी सजीव सचित्र बात होती है। प्रोषित पतिका वाली नायिका अब इस लॉन्ग डिस्टेंस कॉमुनिकेशन के जमाने में कहां।
तुरंता प्रेम की त्रासदी
एक किताब आई है मार्डर्न रोमांस, लेखक हैं, अज़ीज़ अंसारी। निष्कर्ष है कि पारंपरिक नेह, अटूट अनन्य लगाव वाला पारंपरिक प्रेम पथ अब प्रेमियों की प्राथमिकता में नहीं है। न्यूयार्क टाइम्स में एक लेख है, इज लव लूजिंग इट्स सोल इन डिजिटल एज, आधुनिक तकनीक की इस चकाचौंध में मानवीय संवेदनाएँ जिस तरह मजाक बन कर रह गई है।
तकनीक के आवश्यकता से अधिक प्रयोग से मनुष्य भावनाशुन्य होता जा रहा है। क्या प्रेम सचमुच पहले जैसा नहीं रहा। तकनीक ने संबंधों पर जितना प्रभाव डाला उससे ज्यादा तकनीक से लोगों के संबंधों का असर इस पर पड़ा है। तकनीक से संबंध जितना गाढा होगा उतना की प्रेम पतला या तनु होता जायेगा।
समाज शास्त्री कहते हैं कि तकनीक ने संवाद की शास्त्रीयता शैली, कला को खत्म सा कर दिया है। टेक्स्टिंग में खोखलापन, दिखावा ज्यादा है। वह अंतरंग बातें, सुखदायक सरस संवाद लुप्तप्राय है।
कई बार बहुत कम और तकनीकि संवाद पर ही रिश्ते तय हो जाते हैं यहां प्रेम पनप नहीं पाता और परिणाम घातक हो रहा है। उत्तेजना, उत्कंठा , जिज्ञासा, भय अनापेक्षितता समय के साथ सतत बढती प्रगाढता, परिपक्वता अब दूर की बातें हैं।
वो दैहिक, भौतिक, आध्यात्मिक, मानसिक। यौनिक भावनात्मक उद्वेग, मीठी अगन, तपन डिजिटल युग में कहां जब सब सहज सुगम है।
उसकी रंगरूप, बनाव, ठसक, अदा, चालढाल, बातों को याद करते हुये वो पहरो पहर तसव्वुरे जानां किये हुये बिताने का टाइम नहीं है।
बाकी काम के साथ ईएमआई की तरह कुछ टाइम इसके लिये भी निकलना है। डेटा और स्मार्टफोन आधारित प्रेम में दरस परस के सुख का कोई अर्थ नहीं। उनके लिये प्रेम के पुराने प्रसंग और पैंतरे सब चोचले हैं। कभी जिनके एक मुस्कुराहट पर जिंदगी निछावर थी डिजिटल दौर में उनकी ढेरों स्माइली का जवाब बस एक स्माइल है। बेशक बहुत बदल गया है प्रेम।
डिजिटल दौर में प्रेम
प्रेम सर्वकालिक व स्थायी है। मूल भावना सदैव एक सी ही होती है प्रेम का स्वरूप व प्रकृति नहीं बदली समय के साथ इसके प्रदर्शन के तरीके में परिवर्तन आता है समय के प्रेम प्रदर्शन के तौर तरीके ही नहीं उसके प्रवणता, आवेग, उसके प्रति निष्ठा, उसको दिया जाने वाला समय, उससे सरोकार सबमें परिवर्तन परिलक्षित होता है। 
समय के साथ रहन सहन बदलता है और जीवन शैली भी, नाते रिश्ते बदलते हैं और उसके प्रति प्राथमिकताएं भी। जीवन के उपादान बदलयते हैं, उपकरण और उपस्कर भी। कुछ चीजें आसान हो जाती है तो कुछ दुष्कर भी।
इन सारी चीजों के बदलाव का असर न सिर्फ प्रेम प्रदर्शन पर पड़्ता है बल्कि है बल्कि प्रेम की मूल भावना भी इस से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाती। तककनीकि और सामाजिक आर्थिक विकास का प्रभाव प्रेम पर नहीं पड़ा है, प्रेम आज भी शीरी फरहाद या ढोला मारू जैसा रहे यह कैसे संभव है।
प्रेम भी न सिर्फ परिधान बदलेगा। प्रवृत्ति और प्रकृति भी आखिर प्रेम दो लोगों के बीच है और दोनों जीव इस पूरे परिवेश से पूरी तरह प्रभावित हैं। तकनीक आपके प्रेम को साकार करने रास्ता दिखाने उसे आकार करने आकार देने अथवा लक्ष्य पर पहुंचाने के लिये बहुत उपयोगी है

😁😃🤪😏🥰😍






Related News

  • लोकतंत्र ही नहीं मानवाधिकार की जननी भी है बिहार
  • भीम ने अपने पितरों की मोक्ष के लिए गया जी में किया था पिंडदान
  • कॉमिक्स का भी क्या दौर था
  • गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र
  • वह मरा नहीं, आईएएस बन गया!
  • बिहार की महिला किसानों ने छोटी सी बगिया से मिटाई पूरे गांव की भूख
  • कौन होते हैं धन्ना सेठ, क्या आप जानते हैं धन्ना सेठ की कहानी
  • यह करके देश में हो सकती है गौ क्रांति
  • Comments are Closed

    Share
    Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com