बिहार की हिडेन हिस्ट्री : प्रज्नतारा- प्रज्ञतारा
बिहार की हिडेन हिस्ट्री : प्रज्नतारा- प्रज्ञतारा
पुष्यमित्र के फेसबुक से साभार
यह पांचवीं सदी की बात है। एक अनाथ युवती पूर्वी भारत की गलियों में भटकती थी। बौद्धों के 26वें गुरू पुण्यमित्र की निगाह उस पर पड़ी। पुण्यमित्र को उस युवती में प्रज्ञा नजर आयी, उन्होंने उसे शिक्षा दी। अपना उत्तराधिकारी बनाया और इस तरह प्रज्ञतारा बौद्धों की 27वीं गुरू और संभवतः पहली महिला गुरू बनी। हालांकि कई लोग इस बात को गलत बताते हैं कि प्रज्ञतारा महिला थी। मगर कई लोगों ने प्रज्ञतारा पर खूब शोध किया, इनमें कुछ विदेशी विद्वान भी थे और उन्होंने पाया कि प्रज्ञतारा महिला ही रही होगी।
प्रज्ञतारा के बारे में लोगों की अत्यधिक अभिरुचि की वजह यह थी, क्योंकि वह चीन के सबसे प्रचलित धर्म जेन(चान) स्कूल ऑफ बुद्धिज्म के संस्थापक बोधिधर्म की गुरू थी। इस बोधिधर्म के मानने वाले जापान में भी बड़ी संख्या में हैं।
प्रज्ञतारा के गुरू पुण्यमित्र ने उन्हें बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए दक्षिण भारत की तरफ भेजा था। वहां उन्होंने कांचीपुरम के पल्लव राजा सिंहवर्मन से सम्पर्क किया और उनसे उनके तीसरे पुत्र बोधिधर्म को मांग लिया और उसे शिक्षित और प्रशिक्षित किया। फिर प्रज्ञतारा की प्रेरणा से बोधिधर्म बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए चीन गए।
बोधिधर्म का चीन में कितना सम्मान है यह उनके बारे में गूगल करके जाना जा सकता है। वे चीन के सबसे प्रमुख बौद्ध धारा जेन स्कूल और बुद्धिज्म के संस्थापक ही नहीं, बल्कि चीन के मार्शल आर्ट शाओलिन के भी आविष्कारक माने जाते हैं। उन्हें वहां ईश्वर तुल्य सम्मान मिला है। इस वजह से प्रज्ञतारा का भी वहां काफी सम्मान है।
हालांकि चीन में बौद्ध धर्म की शुरुआत के पीछे दूसरी कथा कही जाती है। कहा जाता है कि हान वंश के एक राजा ने एक बार सपने में रख दिव्य व्यक्ति की मूर्ति देखी। उन्होंने जब दरबारियों से इसकी चर्चा की तो उन्हें बताया गया कि यह भारत के प्रसिद्ध संत बुद्ध की मूर्ति है। उस वक्त भारत में कुषाण वंश का शासन था। वे भी बौद्ध धर्म के मानने वाले थे। उन्होंने गंधार शैली में बुद्ध की खूब मूर्तियां बनवाई थी। स्वप्न आने के बाद हान राजा ने अपने सैनिकों को भारत भेजा। वे भारत से बुद्ध की मूर्ति और दो बौद्ध भिक्खु को ले गए। उन्हें वहां बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए कहा गया।
मगर इतिहासकार बताते हैं कि चीन में बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में तेजी बोधिधर्म के जाने पर पांचवीं सदी में आई। जाहिर है इसके पीछे बौद्धों की इकलौती गुरू प्रज्ञतारा की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
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