नए ट्रैफिक कानून को लागू नहीं करने से किसका भला होगा

कानून के अमल पर रोक लगाने वाली इन सरकारों को हर साल देश की सड़कों पर हो रही डेढ़ लाख लोगों की मौत नहीं दिखती. भारी जुर्माना उनके लिए है, जो कानून का पालन नहीं करते और दूसरों के लिए खतरा बनते हैं

राजेेेश जोशी

लगातार हादसों के चलते खून से लाल हो रही प्रदेश की सड़कों को सुरक्षित बनाने के दावे करने वाली राज्य पुलिस की नए ट्रैफिक कानूनों पर अमल के मामले में 24 घंटे में पलटी आम लोगों को हैरान करने वाली है. जिस कानून को 2 साल तक संसद में चली लंबी बहस के बाद तैयार किया गया, उसे मप्र, राजस्थान, गुजरात, पंजाब और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने भी लागू करने से इनकार कर दिया है. छत्तीसगढ़ सरकार भी इस पर कदम पीछे खींचने की तैयारी में है। नए कानून को लागू करने से बचने के लिए जंचने वाला तर्क क्या दिया जाए, यह किसी को समझ में नहीं आ रहा है. अब सवाल यह उठता है कि क्या इन सरकारों को हर साल देश की सड़कों पर हो रही डेढ़ लाख लोगों की मौत नहीं दिखती. 6.30 लाख से ज्यादा घायलों के परिजनों की परेशानी नहीं दिखती? हर साल सड़क हादसों में देश में जितने लोग मारे जा रहे हैं, उतने लोग तो भारत की आजादी के बाद से लेकर अब तक हुए सारे युद्धों
में भी नहीं मारे गए. हमारे यहां एक साल के अंदर जितने बच्चे सड़क हादसों में मारे जाते हैं, उसकी संख्या देख कर तो सीरिया के गृहयुद्ध में आज तक मारे गए बच्चों की संख्या भी शरमा जाए. 2017 के सरकारी आंकड़ों को ही अगर आधार बनाया जाए, तो इस एक साल के अंदर अकेले उत्तरप्रदेश में 20 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई. छत्तीसगढ़ में मौतों का यह आंकड़ा 4,136 था. छत्तीसगढ़ का आंकड़ा उत्तर प्रदेश की तुलना में भले ही बहुत छोटा लग रहा हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के तुलनात्मक आकार और वाहनों की संख्या के हिसाब से छत्तीसगढ़ की मौतें उत्तर प्रदेश की तुलना में किसी लिहाज से कम नहीं हैं. नए ट्रैफिक कानून में पूरा जोर सड़क हादसों में होने वाली मौतों को घटाने पर ही था. लगातार हो रहे शोध कार्यों में यह बात सामने आई थी कि तेज रफ्तार से गाड़ियां चलाना, ड्राइवरों की सही ट्रेनिंग ना होना और पुलिस की लापरवाही हादसों की प्रमुख वजह थी. महाराष्ट्र में इन तीनों वजहों पर पिछले 4-5 सालों में काफी काम किया गया और इसका असर भी देखने मिला. 2016 और 2017 में सड़क हादसों में हुई मौतों की संख्या 30% तक घटने का दावा किया जा रहा है. इसमें बड़ी भूमिका पुलिस की सख्ती की रही. केंद्र सरकार ने जब से नए कानून को पास किया था उसके बाद से छत्तीसगढ़ में अलग-अलग तबकों से आवाज उठ रही थी कि जुर्माना बहुत ज्यादा है. इतनी सख्ती की जरूरत क्या है? यह समझना जरूरी है भारी जुर्माना उन लोगों के लिए है, जो यातायात कानूनों का पालन नहीं करते और दूसरों के लिए खतरा बनते हैं. बिना हेलमेट के गाड़ी चलाने पर 1000 रुपए जुर्माना पटाने की बजाय लोगों के लिए बेहतर था कि वह 800 रुपए का अच्छा हेलमेट खरीद लेते. क्या आप ऐसे शराबी या अप्रशिक्षित ड्राइवर के खिलाफ कार्रवाई नहीं चाहेंगे, जो आपके बच्चों की जिंदगी खतरे में डालता हो. सरकार और पुलिस दोनों को यह सोचना चाहिए कानून लागू नहीं कर वह किसका भला कर रहे हैं? सड़क हादसों का दर्द समझना हो, तो उन लोगों के पास सरकार जाए जिन्होंने अपने करीबी को इसमें खोया है. उन लोगों के पास जाए जिन लोगों ने हादसे के बाद अपने परिवार के किसी सदस्य के इलाज में पूरी जमापूंजी फूंक डाली और सड़क पर आ गए. हादसे तभी घटेंगे जब पुलिस और सरकार सख्ती करे और लोगों से अपेक्षा करे कि वह कानून का पालन करें. राजधानी से लेकर महाराष्ट्र की सीमा तक कार में बिना सीट बेल्ट लगाए चलने वाले लोग महाराष्ट्र की सीमा में घुसते ही क्यों सीट बेल्ट लगा लेते हैं? यह कानून के डंडे का डर है. और यह होना चाहिए. सड़क हादसों की वजह से राज्य सरकार की जीडीपी पर कितना बेवजह का बोझ पड़ता है , इस पर तो कभी कोई ध्यान देता ही नहीं. हर चीज को राजनीतिक फायदे या नुकसान के चश्मे से देखना ठीक नहीं होता. प्रदेश की सड़कें कैसे सुरक्षित बनें इसकी चिंता करने की जवाबदारी भी सरकार और पुलिस की ही है.






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