आंबेडकर ने दलितों को पगलाने के लिए नहीं कहा बुद्धनमा
– नवल किशोर कुमार
जैसे लोहा लोहे को काटता है, वैसे ही सबकुछ नहीं होता है। हिंसा का जवाब प्रति हिंसा नहीं हो सकती। कोई गाली दे तो उसका जवाब गालियां देकर नहीं दिया जा सकता है। समझे बुद्धनमा भाई।
हां, लेकिन यह उपदेश हमको काहे सुबह-सुबह दे रहे हैं नवल भाई?
हम कोई उपदेश नहीं दे रहे और आप तो स्वयं इतने समझदार हैं कि कोई उपदेश देने का सवाल ही नहीं उठता है। हम तो अपने मन की बात कह रहे हैं। क्या है कि दो दिनों से सोशल मीडिया में साक्षाी मिश्रा को लेकर कई तरह की बातें चल रही हैं। समझ में नहीं आता है कि इस समाज को हुआ क्या है।
यह साक्षी मिश्रा कौन है नवल भाई?
एक लड़की है जिसने अंतर जातीय प्रेम विवाह किया है। उसके पिता उत्तर प्रदेश में भाजपा के विधायक हैं।
तो इसमें ऐसा क्या है कि लोग बवाल काट रहे हैं। प्रेम विवाह तो अच्छी बात है। उस पर से अंतर जातीय। यह तो और भी अच्छी बात है। आप ही बता रहे थे न एक दिन कि डॉ. आंबेडकर भी अंतर जातीय विवाह को जाति का विनाश के लिए महत्वपूर्ण मानते थे।
हां बुद्धनमा भाई। साक्षी मिश्रा और उसके पति अजितेश मिश्रा ने कुछ भी गलत नहीं किया। बवाल काटने वाले दो तरह के लोग हैं। एक तो वे जो ऊंची जातियों के लोग हैं जिन्हें आज भी लगता है कि महिलाएं उनकी व्यक्तिगत संपत्ति हैं। और दूसरे वे दलित हैं जो यह मान रहे हैं कि उन्होंने एक जीत हासिल कर ली है। दलित अजितेश ने एक ब्राह्मणी लड़की से शादी कर उनका मान बढ़ाया है। दोनों तरह के लोगों के द्वारा भाषा की मर्यादा का उल्लंघन किया जा रहा है। सीधे कहिए तो दोनों टाइप के लोग पगला गए हैं।
नवल भाई, दलितों का पगलाना आपको नहीं लगता है कि प्रतिक्रिया के कारण है। जैसे उनके लोगों को घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया जाता है। उनकी बहू-बेटियों के साथ सवर्ण जाति के लोगों गलत व्यवहार करते हैं। ऐसी कई खबरें तो आती रहती हैं। ऐसे में दलितों को खुशी मनाने का एक मौका मिला है। इसको इस रूप में काहे नहीं देखते हैं आप?
गजब बात करते हैं बुद्धनमा भाई। यह सही है कि सवर्ण जातियों के लोगों द्वारा व्यापक पैमाने पर अत्याचार और उत्पीड़न आज भी किया जाता है। लेकिन कानून भी अपना काम कर रहा है। एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट के कारण स्थिति में बदलाव आ रहा है।आने वाले समय में स्थिति में और बदलाव होगा। लेकिन इससे पहले यह जरूरी है कि हिंसा का जवाब हिंसा से न दिया जाय। ऐसे तो समाज और गिरता चला जाएगा।
बाकी सब तो आप ठीक कह रहे हैं नवल भाई। लेकिन इसका उपाय क्या है? साक्षी मिश्रा को वह वीडियो जारी नहीं करना चाहिए था। उसने खुद अपने ही पिता की इज्जत मिट्टी में मिला दी।
देखिए बुद्धनमा भाई, उपाय तो यही है कि हिंसा का जवाब कानूनी कार्रवाईयों के जरिए दिये जायें। हालांकि एक स्थिति यह भी है कि कानून के पहरेदारों में भी ऊंची जातियों के लोग होते हैं, लेकिन फिर भी भारत में स्थिति इतनी खराब नहीं है कि कोई मुकदमा दर्ज कराये तो उस पर कार्रवाई न हो। साक्षी मिश्रा ने कुछ भी गलत नहीं किया। हो सकता है कि उसके पिता नाराज हों और यह भी संभव है कि वह साक्षी और उसके पति की हत्या करवा देना चाहता हो। अपनी जान बचाने के लिए साक्षी ने वह वीडियो जारी किया। यह तो सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग है।
आप ठीक कह रहे हैं नवल भाई। लेकिन असली समाधान क्या है?
बुद्धनमा भाई, इसका जवाब तो एक ही है कि अब भारत के पुरूष अपनी सोच में बदलाव करें कि कोई भी महिला फिर चाहे वह उनकी मां हो, बेटी हो, पत्नी हो या फिर बहन हो, व्यक्तिगत पूंजी नहीं है। वे निर्जीव नहीं हैं। उन्हें भी सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। अभी जिस तरह का व्यवहार कुछ दलितों द्वारा किया जा रहा है वह उन्हें ऊंची जातियों के लोगों से अधिक बर्बर साबित कर रहा है। हैरानी होती है कि आंबेडकर को मानने वाले ये दलित आंबेडकर के विचारों को कूड़ेदान में फेंक रहे हैं। आंबेडकर ने उन्हें शिक्षित हो समर्थ बनने और संगठित होने के लिए कहा। ये तो पगला रहे हैं। बहुत दुखद है।
चलिए, यह स्थिति भी बदल जाएगी एक दिन। आप के साथ हम भी साक्षाी-अजितेश को नये जीवन की शुभकामना दे दें।
बिल्कुल बुद्धनमा भाई। प्रेम भी सभी तरह की विसंगतियों का एक जवाब है।
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