इ मुलूक बदल रहा है बुधनमा

नवल किशोर कुमार
बदलाव जरूरी है। बदलाव न होते तो न तो धरती होती और न जीवन। जानते हो बुधनमा डार्विन एकदम ठीक बोले थे। सबकुछ बदलाव के कारण ही संभव होता है। फिर चाहे वह एकोशिकीय जीव अमीबा हो या फिर आजकल के हम इंसान। बदलाव जरूरी है भाई।

एगो बात बताइए नवल भाई। आप सुबह-सुबह काहे हमको इतना ज्ञान देते हैं। क्या हो जाएगा जो हम एतना सबकुछ जान भी जाएं। हमको तो रोजी-रोटी से मतलब है।

हां बुधनमा, जानता हूं कि तुम्हें रोजी-रोटी से मतलब है और मैं चाहता भी हूं कि तुम सपरिवार स्वस्थ रहो और तुम्हारे बच्चे खूब पढ़ें। लेकिन दोस्त लड़ाई अपने लिए तो लड़ी नहीं जाती। आने वाली पीढ़ियों के लिए लड़ी जाती है। तो हम तुमको आने वाली पीढ़ी के लिए लड़ने के लिए तैयार करते हैं।

अब इसका का मतलब हुआ?

इसको ऐसे समझो। आंबेडकर से पहले जोतीराव फुले और जोतीराव फुले से पहले कबीर ने द्विजवादियों के खिलाफ मोर्चा न खोला होता तो क्या आज जो देश में हालात हैं, हो पाते? सब अपने लिए नहीं आनेवाली पीढ़ी के लिए संघर्ष कर रहे थे। है कि नहीं। दक्षिण में पेरियार का संघर्ष ही देखो।

बाप रे। एतना सूक्ष्म ज्ञान कहां से लाते हैं नवल भाई। बात तो आप ठीक ही कह रहे हैं। लेकिन आज कौन सा बदलाव हो गया है कि आप एकदम से उत्साहित हैं?

बुधनमा, बात तो बहुत छोटी है। लेकिन मेरे लिए बहुत बड़ी है। पंजाब के पटियाला जिले की घटना है। नबहा तहसील के गोबिंदपुर गांव में पहले दलित और गैर दलितों के अंतिम संस्कार के लिए अलग-अलग जगह होते थे। लेकिन अब उस गांव के लोगों ने यह मान लिया है कि आदमी जिंदा हो या फिर मरा हुआ, कोई अंतर नहीं है।

अरे वाह, यह तो बहुत अच्छी बात है। इंसान-इंसान में भेद खत्म होगा तभी न अच्छे दिन आएंगे। लेकिन अलीगढ़ वाली घटना के बारे में आप क्या कहेंगे। वहां तो लगता है कि दंगा अब हो ही जाएगा।

हां, बुधनमा। लेकिन जिस देश का राजा ही देश में आग लगाने को उतारू हो तो उस देश को कौन बचा सकता है? अब देखो न पश्चिम बंगाल में जिस तरह से भाजपा और टीएमसी के लोग मारकाट कर रहे हैं, उसका परिणाम क्या होगा। अलीगढ़ में बाहर से लोग भेजे जा रहे हैं। वे हिंदू-मुस्लिम दंगा कराना चाहते हैं। केंद्र की सरकार का संरक्षण उनहें मिल रहा है। राज्य सरकार को भी कोई ऐतराज नहीं है।

नवल भाई, अभी आप कह रहे थे बदलाव के बारे में।

हां, लेकिन बदलाव केवल सकारात्मक ही हो, नकारात्मक भी होते हैं। अब देखो न पंजाब में पहले खालिस्तान को लेकर हिंसक आंदोलन होते थे। लोग मारे जाते थे। बिहार और बंगाल को ही देखो। तब जब नक्सलबाड़ी आंदोलन हुए। बिहार में तो गैर सवर्णो से जाति पूछकर छह इंच छोटा कर देते थे हत्यारे। लेकिन तब लालू प्रसाद की सरकार बनी और बाद में नीतीश कुमार की। हालात तो बदले ही। हालांकि मुद्दे नहीं बदले। भूमिहीनता और जातिगत वर्चस्व के हालात जस के तस हैं।

तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के दूसरे कार्यकाल से कुछ उम्मीद है आपको नवल भाई?

यार बुधनमा, उम्मीद तो उससे होती है जिसके पास कुछ अक्ल होता है। देश में हालात इतने खराब हैं कि पश्चिम बंगाल में गृह युद्ध के हालात हैं। भारतीय वायु सेना के एक विमान को चीन ने मार गिराया है। कोई मुंह नहीं खोल रहा है। नरेंद्र मोदी विदेश में सैर-सपाटा कर रहे हैं।

नवल भाई, कोई रोम का राजा था न जो चैन की वंशी बजाता था। बजाने दें मोदी जी को भी। जनता जब सवर्णों के राष्ट्रवादी जोश में होश गंवा ही दी है तो भुगतने भी दें। हो सकता है कि बदलाव हो।

हां, बदलाव तो होंगे ही। लेकिन उससे पहले यह मुल्क और समाज बचा रहे। यही चिंता है।

नवल भाई। चिंता मत न करिए। सब ठीके होगा। काहे घबराते हैं।






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