आखिर लोकसभा चुनाव क्यों लड़ रहें है अमित शाह

संतोष कुमार

जुझारू छवि, कैबिनेट में आने और उत्तराधिकारी के तौर पर स्थापित करने की लंबी रणनीति का हिस्सा है शाह का गांधीनगर से चुनावी समर में उतरना

अटल-अाडवाणी की जोड़ी भाजपा का अतीत बन चुका है तो अब मोदी-शाह की जोड़ी वर्तमान। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के गांधीनगर से लालकृष्ण आडवाणी की जगह लेने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी बनने के दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। अगस्त 2017 में राज्यसभा सांसद बने शाह के लोकसभा के चुनाव में उतरने का फैसला अचानक नहीं हुआ है। गांधीनगर सीट बेहद सुरक्षित मानी जाती है, इसलिए गुजरात ईकाई ने एक स्वर में आडवाणी की जगह शाह को गांधीनगर से उतारने की मांग रखी थी। चूंकि मोदी इस बार गुजरात से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं इसलिए राष्ट्रीय कद के किसी ऐसे नेता को उतारने की जरुरत पार्टी महसूस कर रही थी, जिसमें मोदी का अक्स दिखता हो। 2019 के चुनावी समर में शाह की पारी के तीन अहम फैक्टर हैं, जिसे वे लंबी राजनैतिक पारी के लिए स्थापित करना चाहते हैं।

पहली- शाह को गुजरात के समय से जानने वाले करीबी व्यक्तियों का मानना है कि शाह अंदरूनी बातचीत में साल भार से यह कहते थे कि राज्यसभा उनकी छवि के हिसाब से मुफीद नहीं है। उनके बारे में शाह के एक करीबी कहते हैं, “शाह हमेशा से सीधे चुनाव वाली राजनीति करते रहे हैं और लगातार विधानसभा चुनाव लड़ते रहे हैं, इसलिए वे खुद को राज्यसभा में छवि के हिसाब से फिट नहीं मान रहे थे।” साथ ही, शाह खुद को उस छवि में बांधकर नहीं रखना चाहते कि सरकार के बड़े-बड़े मंत्री और नेता राज्यसभा से आते हैं और पार्टी को इसके लिए कई बार आलोचना का शिकार भी होना पड़ता है। शाह की छवि एक मजबूत और जुझारू नेता की है और वे ऐसे में वे खुद को लोकसभा में होने की बात साल भर से कर रहे थे। 2019 में मोदी को दोबारा सत्ता में वापस लाने की चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रहे शाह ने आडवाणी की जगह खुद गांधीनगर से उतरने का फैसला कर जीवटता दिखाई है।

दूसरी- लोकसभा चुनाव जीतकर वे मोदी कैबिनेट में अहम भूमिका संभालेंगे। उनके एक करीबी कहते हैं, “शाह अपने कद के हिसाब से मोदी कैबिनेट में रक्षा, वित्त, गृह इन्हीं तीन विभाग में से एक संभालेंगे।” हालांकि वे साथ में यह भी जोड़ते हैं कि गृह मंत्रालय से ज्यादा उनकी रूचि ऐसे मंत्रालय में काम करने की होती है जो सीधे जनता से जुड़ी हो और कुछ नया कर नतीजा दिखाने की गुंजाईश हो। इस बारे में उनका कहना है कि जब गुजरात में मोदी मुख्यमंत्री थे और शाह गृह राज्यमंत्री तो उन्होंने गृह विभाग छोड़कर मोदी से ग्रामीण विकास मंत्रालय देने की मांग रखी थी। हालांकि मोदी सरकार की स्वास्थ्य क्षेत्र में महत्वाकांक्षी योजना आयुष्मान भारत के पीछे शाह का दिमाग ही है, ऐसे में मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्‌डा संगठन में शाह को और शाह मंत्रालय में उनकी जगह भी ले सकते हैं।

तीसरी- गांधीनगर सीट पर पटेल वोटों की संख्या ज्यादा है और शाह की छवि गुजरात में पटेल विरोधी बनी हई है। हालांकि शाह की बहू भी पटेल और विधानसभा चुनाव जीतने में उनके लिए पटेल वोट की भूमिका हमेशा अहम रही है। लेकिन गुजरात में नितिन पटेल की जगह विजय रूपाणी को तरजीह देकर मुख्यमंत्री बनवाने की वजह से शाह की छवि को पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने विरोधी बना दिया है। शाह गांधीनगर से जीतकर अपनी पटेल विरोधी छवि को भी तोड़ना चाहते हैं।
भाजपा के एक रणीतिकार और शाह के करीबी का मानना है कि 2019 ही नहीं, 2024 का चुनाव भी मोदी के नेतृत्व में होगा और तीसरे कार्यकाल में मोदी स्वेच्छा से पद छोड़ेंगे और तब तक शाह संगठनकर्ता से लेकर मोदी कैबिनेट में भी खुद को एक कुशल प्रशासक साबित कर अपनी जुझारू छवि को स्थापित कर लेंगे। यही वजह है कि शाह ने 2019 में ही लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है।
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