बिहार में ‘लड़ाकों’ की लिस्ट लेकर घूम रही कांग्रेस, शॉटगन भी थाम सकते हैं कांग्रेस का दामन op
शॉटगन भी थाम सकते हैं कांग्रेस का दामन
सीट बंटवारे के लिए पार्टी ने बदली रणनीति
पटना।( लाइव हिन्दुस्तान से साभार).बिहार में कांग्रेस नब्बे के दशक से ही राजद के साए में हैं। वर्ष 2009 में दोनों अलग हुए पर पिछले लोकसभा चुनाव में फिर साथ आ गए। कांग्रेस इस बार राजद के साथ रहते हुए ही अपना भी मुकाम चाहती है। बीते अनुभवों से सीख लेकर पार्टी ने सीट बंटवारे को लेकर अपनी रणनीति भी बदली है। पार्टी ने इस बार सीटें मांगने से पहले अपने ‘लड़ाकों’ की सूची तैयार कर ली है। इमरजेंसी के बाद वर्ष 1977 में हुए चुनाव को छोड़ दें तो कांग्रेस बिहार में हमेशा मजबूत स्थिति में रही है। उस चुनाव में कांग्रेस का बिहार में खाता ही नहीं खुला था। पार्टी का पराभव यहां वर्ष 1989 से शुरू हुआ। उसके बाद से गिरावट का जो सिलसिला शुरू हुआ वह बीते लोकसभा चुनाव तक जारी रहा। वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में 51 प्रतिशत से अधिक मत पाने वाली कांग्रेस 2004 आते-आते पांच प्रतिशत के करीब आ गई।
वर्ष 2009 में पार्टी ने राजद से अलग लड़ने का फैसला किया। सीटें न सही पर वोट प्रतिशत जरूर बढ़ा। इस बार राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के नतीजों से ऑक्सीजन मिली और फिर गांधी मैदान में अकेले दम पर रैली करके कांग्रेस ने खम ठोंकने का प्रयास किया है। पार्टी ने इस बार रणनीति भी बदली है। बीते चुनावों में कांग्रेस सीटों के बंटवारे में उस वक्त असहज होती रही है जब राजद प्रमुख लालू प्रसाद दावेदारों के नामों की सूची मांगते थे। अबकी बार सूची लगभग तैयार है।
कांग्रेस की सूची में ये नाम हैं चर्चा में
सासाराम से मीरा कुमार, समस्तीपुर से अशोक राम, कटिहार से तारिक अनवर, सुपौल से रंजीत रंजन, किशनगंज से असरारुल हक का कोई परिजन, डॉ. जावेद या एकाध अन्य नाम की चर्चा है। औरंगाबाद से डॉ. निखिल कुमार का नाम ऊपर चल रहा है। दरभंगा सांसद कीर्ति आजाद अब कांग्रेसी हो चुके हैं। शत्रुघ्न सिन्हा के आने की भी चर्चा है। पूर्णिया के पूर्व भाजपा सांसद पप्पू सिंह कतार में हैं तो पप्पू यादव भी इच्छा जता चुके हैं। लवली आनंद भी शिवहर से टिकट की दौड़ में हैं।
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