पुण्यतिथि विशेष: जब बिहार में भिखारी समझ लिए गए गांधी, पीने पड़े अपमान के घूंट
गांधीजी ने बिहार के चंपारण से अपना अहिंसक आंदोलन शुरू कर देश को आजादी दिलाई थी। लेकिन इस चंपारण आंदोलन के पहले गांधी वहां नहीं जाने की भी सोचने लगे थे। जानिए कारण।
पटना [भारतीय बसंत कुमार]। मैं बिहार हूं। आज ही के दिन 1948 की उस मनहूस सुबह दिल्ली में महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी। यह याद आज भी मेरे दिल में ताजा है। गांधीजी ने मेरी माटी के ही एक किसान राजकुमार शुक्ल के आग्रह पर चंपारण पहुंचकर उस आंदोलन की नींव रखी, जिसने फल-फूलकर देश को आजादी दिलाने में अहम योगदान किया। लेकिन एक समय ऐसा भी आया था कि वे चंपारण नहीं जाने को लेकर सोचने लगे थे। उन्हें अपमान के घूंट पीने पड़े थे। उन्होंने इस बात का जिक्र अपने एक पत्र में किया है। आप भी जानिए, उस पत्र में उन्होंने क्या लिखा था…
चिंरजीवी मंगनलाल,
जो व्यक्ति मुझे यहां ले आया है, कुछ नहीं जानता। उसने मुझे एक अजनबी जगह ला पटका है। घर का मालिक (राजेंद्र बाबू) कहीं गया हुआ है और नौकर ऐसा समझते हैं कि अवश्य ही हम दोनों भिखारी होंगे। वे हमें घर के पखाने का उपयोग भी नहीं करने देते। खाने-पीने की तो बात ही क्या? मैं सोच समझकर अपनी जरूरत की चीजें साथ रखता हूं, इसलिए बेफिक्र रह सका हूं।
मैंने अपमान के घूंट पीये हैं, इसलिए यहां की अटपटी स्थिति से कोई दुख नहीं होता। यदि यही स्थिति रही तो चंपारण जाना नहीं हो सकेगा। मार्गदर्शक कोई मदद कर सकेगा ऐसा दिखाई नहीं देता और मैं स्वयं अपना मार्ग खोज सकूं ऐसी स्थिति नहीं है। इस दशा में मैं तुम्हें अपना पता नहीं दे सकता। यदि मैं किसी को वहां से मदद के लिए लाया होता तो वह भी मुझ पर एक भार ही होता…। अपनी अनिश्चित स्थिति की बात भर बता रहा हूं, तुम्हें कोई चिंता करने की जरूरत नहीं…।
– मो.क. गांधी
(जागरण डॉट कॉम से सभार)
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