हां! मैं रामकृपाल, कभी था लालू का हनुमान
हां! मैं रामकृपाल, कभी था लालू का हनुमान!
के. विश्वनाथ :
कहते हैं कि भगवान् राम को 14 बरस का वनवास मिला था। मां कैकेई की वजह से। धर्म के ज्ञाता इस वनवास को अलग-अलग तरीके से परिभाषित करते हैं। भारतीय जनमानस उस परिभाषा में डूबता-उभरता रहता है। सदियों से यह कहानी हमारे समाज में प्रचलित है। राम के वन गमन के पीछे के अपने तर्क भी हैं। उन्होंने कइयों का संहार भी किया, तो कइयों का उद्धार भी। महानता की यही पहचान है। राम आए और चले गए, लेकिन वे हमारे आराध्य हो गए।
इधर हमारे बीच भी एक राजनीतिक राम हैं- रामकृपाल। इनमे नाम के साथ कृपाल भी जुड़ा है। करुणामय और कृपा की बरसात करने वाले रामकृपाल। भगवान् राम को 14 बरस का वनवास हुआ था, रामकृपाल को 17 बरस वनवास में बिताना पड़ा। इनका वनवास राजद मुखिया लालू प्रसाद के खूंटे से बंधा था। लालू प्रसाद के अटूट भक्त कहिए या फिर लालूमय रामकृपाल कहिए, तब इनकी पहचान यहीं तक थी। बिहार के राजनीतिक सर्किल में रामकृपाल की गणना हनुमान के रूप में भी की गई। लालू के हनुमान रामकृपाल। इस नाम पर तब रामकृपाल को कोई आपत्ति नहीं होती थी। खुश होते थे। वे जितनी बार हनुमान कहलाते, लालू प्रसाद की कृपा उन पर और बरसती। राजद की राजनीति जैसे-जैसे बढ़ती, रामकृपाल की हैसियत मजबूत होती। लालू के हर अच्छे-बुरे काम पर रामकृपाल खूब बोलते। इतना बोलते कि सुनने वालों को भी या तो हंसी आती या फिर चुप हो जाते।
लालू के बिना रामकृपाल अधूरे थे और रामकृपाल के बिना लालू प्रसाद अकेले हो जाते। लेकिन, ऐसा हर समय संभव नहीं हो सका। हनुमान को एक समय लालू की राजनीति खटक गई। लालू की परिवारवादी राजनीति से वे बिलख उठे। टूट गए। तंद्रा टूटी, तो पता चला कि उनकी भक्ति निराधार थी। उनका हनुमान बनाना बेकार था। उनके आका का प्यार-दुलार-रहम सब दिखावा था। एक तरफ लालू की बेटी मीसा, तो दूसरी तरफ हनुमान। लालू यादव ने हनुमान की जगह बेटी मीसा को तरजीह दी। पटना पाटलिपुत्र का सीट मीसा के नाम किया, तो रामकृपाल भड़क गए। टूट से गए। रुदाली भी की। पश्चात्ताप भी किए। मन को शांत किया और झटके में हनुमान की पात्रता को खत्म करते हुए भाजपा के साथ गलबहियां कर लिए। वर्षों की सामाजिक समझ, समाजवादी राजनीति, लालू भक्ति, राजद की विश्वसनीयता से पाला झाड़कर मोदी के गुणगान में जुट गए। कल तक ‘लालू नाम केवलम्’ था उनकी जुबान पर, आसक्ति बदली तो जुबान ‘मोदी मोदी’ कहने लगी। 2014 में लोकसभा चुनाव हुए। एक तरफ भतीजी मीसा, तो दूसरी तरफ भाजपा से चाचा रामकृपाल। गजब की लड़ाई हुई। गजब के तीर चले थे। एक-दूसरे की गजब बखिया उधेड़ी गई थी। लालू पर जितने वार रामकृपाल ने किए थे, शायद उतने वार कभी भी वे किसी नेता पर नहीं कर पाए होंगे। मात्र एक सीट को लेकर सारी भक्ति खाक हो गई। भक्ति नंगी हो गई। भक्त और भक्ति लज्जित हो गई।
तो कहानी यह है कि आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के सबसे करीबी सहयोगी रहे रामकृपाल लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए। नई दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में उन्होंने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उनका स्वागत करते हुए कहा कि आरजेडी के एक ‘कद्दावर नेता’ का भाजपा में आना पार्टी के बढ़ते महत्व को दर्शाता है। रामकृपाल ने आरोप लगाया कि आरजेडी में सामाजिक न्याय के बजाय ‘पारिवारिक न्याय’ को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे इस पार्टी के कार्यकर्ताओं को घुटन महसूस हो रही है। उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद ने जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर जैसे लोगों की सामाजिक न्याय की अवधारणा और उनकी सादगी को छोड़ कर अपने परिवार को बढ़ाने की अवधारणा अपना ली है।
नरेंद्र मोदी की सराहना करते हुए रामकृपाल ने कहा, एक ऐसा व्यक्ति, जो पिछड़े वर्ग का है और जिसके पिता चाय बेचते थे तथा जिसकी मां दूसरे के घरों में कपड़े धोती थीं, उसे भाजपा ने पहले मुख्यमंत्री बनाया और अब प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है। उन्होंने कहा कि यह भाजपा के आधार को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि मोदी स्पष्ट कर चुके हैं कि वे सभी धर्मों और वर्गों का विकास चाहते हैं। साथ ही रामकृपाल ने कहा, मेरा जेहन बिल्कुल सेक्युलर है और जीवन भर रहेगा। बता दें, जब रामकृपाल लालू के साथ थे, तब यही कहते फिरते थे कि लालू जैसा कोई नहीं। गरीबां का नेता लालू यादव। लेकिन अब मोदी मोदी…!
रामकृपाल ने जैसे ही आस्था बदली, चोला बदला, भगवा धारण किया लालू प्रसाद आग बबूला हो गए। धरती पीटने लगे और दांत किटकिटाने लगे। लालू यादव ने कहा कि रामकृपाल भस्मासुर हैं। उन्होंने कहा कि शंकर भगवान ने भस्मासुर को आशीर्वाद दिया था और वह खुद भस्म हो गया था। इसी तरह रामकृपाल भी भस्म हो जाएंगे। लेकिन, लालू की यह वाणी सच साबित नहीं हुई। बेटी मीसा चुनाव हार गई, रामकृपाल चुनाव जीत गए और बाद में मंत्री भी बन गए। केंद्र सरकार में मंत्री। रामकृपाल बिहार में कभी मंत्री नहीं बन सके थे, लेकिन केंद्र में मंत्री बन गए। लालू की वाणी निरर्थक चली गई। लालू प्रसाद अभी सत्ता की राजनीति से पैदल हैं, लेकिन रामकृपाल ग्रामीण विकास मंत्री बने हुए हैं।
केंद्रीय मंत्रिपरिषद में रामकृपाल को शामिल किए जाने को भाजपा की 2015 में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पूर्व लालू प्रसाद के यादव वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति के रूप में देखा गया। बिहार में यादव समुदाय वोटों में 12 फीसदी से अधिक की भागीदारी रखता है और यह अब तक खुद को लालू प्रसाद के साथ चिह्नित करता आया है। भाजपा को यकीं था कि रामकृपाल के आ जाने से पार्टी को काफी लाभ होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राजनीति के चतुर खिलाड़ी लालू प्रसाद ने नीतीश के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और भाजपा को जमींदोज कर दिया। रामकृपाल का कुछ भी नहीं चला।
रामकृपाल यादव का राजनीतिक करियर काफी लंबा रहा है, लेकिन उन्हें कभी मंत्री नहीं बनाया गया। न तो बिहार में और न ही केंद्र में। हालांकि, राजद संप्रग का हिस्सा था और उसकी पार्टी से आधा दर्जन मंत्री थे। जमीनी स्तर से उठे रामकृपाल यादव 1992 से 93 के बीच पटना नगर निगम में उप मेयर रहे और 1993 से 1996 के बीच विधान परिषद के सदस्य भी रहे। 12 अक्टूबर, 1957 को बिहार की राजधानी पटना में पैदा हुए रामकृपाल यादव का बचपन काफी मुश्किलों भरा रहा था। उनके पिता के निधन के कारण उन्हें काफी दुश्वारियों का सामना करना पडा। वह मगध विश्वविद्यालय से ग्रेज्युएट होने के साथ ही एलएलबी डिग्रीधारी हैं। 1983 में उनका विवाह किरण देवी से हुआ था। उनके दो बेटे और एक बेटी हैं।
लेकिन, ठगिनी राजनीति का चरित्र भला कौन जाने! नेताओं के बयान पर नजर डालें, तो शर्म से सिर झुक जाए। जब लालू यादव को 2013 में पशुपालन घोटाला में दोषी करार दिया गया और सजा सुनाई गई, तब रामविलास पासवान और रामकृपाल यादव मजबूती से लालू प्रसाद के साथ थे। चारा घोटाले में लालू प्रसाद को मिली सजा पर 2013 में रामविलास पासवान ने कहा था- ‘हम राजद के साथ हैं। हमारे दुख में लालू प्रसाद ने साथ दिया था और अब हम उनके दुख में साथ हैं।’ याद करा दें कि तब लालू प्रसाद ने रामविलास पासवान के दुख में ऐसे साथ दिया था कि पासवान 2009 का लोकसभा चुनाव हार गए थे। भाई रामचंद्र पासवान भी नहीं जीते थे। नई दिल्ली में पासवान का बंगला खाली कराए जाने की स्थिति में था। तब लालू प्रसाद ने अपने परिवार से किसी को राज्य सभा नहीं भेजकर रामविलास पासवान को भेजा था। अब 2018 में रामविलास पासवान लालू प्रसाद को मिली सजा पर ‘जैसी करनी, वैसी भरनी’ के लहजे का बयान दे रहे हैं। और रामकृपाल यादव, जो 2013 में लालू प्रसाद के सबसे बड़े हनुमान थे, पशुपालन घोटाले में लालू को मिली सजा पर बोले थे- ‘लालू जी को साजिश के तहत फंसाया गया है।’ रामकृपाल यादव 2014 में लालू प्रसाद से तब अलग हुए, तब उन्होंने कहा कि बिहार को नाश करने वाले लालू यादव ही हैं। सच क्या है रामकृपाल ही जानें। { inquireindia.com से साभार }
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