इसी नेता की रिपोर्ट से देश की राजनीति के स्टेयरिंग ने लिया मोड
बीपी मंडल की सौंवी जयंती पर उनके बारे में जानिए
पुष्य मित्र
आज बिहार के एक बड़े समाजवादी नेता बीपी मंडल की जन्मशती है। वे एक ऐसे नेता हैं जिनकी बनाई रिपोर्ट ने बीसवीं सदी के आखिर में देश की राजनीति के स्टेयरिंग को उस दिशा में मोड़ दिया जिस दिशा से आज भी मुड़ना नामुमकिन लगता है। उन्हें हम आज भी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में कम द्वितीय पिछड़ा आयोग के अध्यक्ष के रूप में अधिक जानते हैं। वह आयोग भी मंडल कमीशन के नाम से ही ख्यात है।
बीपी मंडल के निधन के कई साल बाद इस रिपोर्ट के एक हिस्से को वीपी सिंह की सरकार ने जाते जाते लागू कर दिया था और देश के पिछड़े तबके को सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा कर दी। हम सब जानते हैं कि उसके बाद कैसा बवाल मचा। मगर ऐसा लगता है कि इस तरह के फैसले ऐसे ही अचानक लिये जा सकते हैं।
क्योंकि इससे पहले भी एक पिछड़ा आयोग काका कालेलकर की अध्यक्षता में 1950 के आसपास गठित हुआ था, जिसमें विभिन्न पिछड़ी जातियों के साथ देश की सभी महिलाओं को पिछड़ा माना गया था और कुल 70 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई थी। मगर नेहरू जी ने भी तकनीकी कारणों से उस रिपोर्ट को लागू नहीं कराया और कहा कि इस फैसले से पहले एक और पिछड़ा आयोग बनेगा।
मगर वह आयोग किसी कांग्रेसी सरकार ने गठित नहीं किया, न शास्त्री ने, न इंदिरा जैसी कद्दावर नेता ने। गठित किया इमरजेंसी के बाद बनी मोरारजी देसाई की सरकार ने बीपी मंडल की अध्यक्षता में। और उस आयोग की रिपोर्ट पेश हुई इन्दिरा जी के वक़्त में और फिर न इंदिरा और न राजीव ने उसे लागू किया। लागू किया वीपी सिंह की गठबंधन सरकार ने।
खैर, इस आयोग की रिपोर्ट के लागू होने के बाद हंगामा तो मचा ही, दो और बड़ी परिघटना हुई। पहली घटना आडवाणी की रथयात्रा थी और दूसरी घटना अगले ही साल पीवी नरसिम्हा राव की सरकार द्वारा उदारीकरण को लागू करना था। गौर से देखें तो ये दोनों फैसले मंडल आयोग की सिफारिशों की काट के लिये ही लिए गए थे। भाजपा जहां कमंडल के जरिये नाराज सवर्ण हिंदुओ को लुभाने में जुटी थी, वहीं कांग्रेस ने उदारीकरण के जरिये निजी नौकरियों की खेप लाकर आरक्षण का असर कम करने की तरकीब निकली।
अगर आज की राजनीति को गौर से देखें तो यही तीन मुद्दे देश पर छाए हैं। मंडल, कमंडल और बाजारवाद। और पिछले दोनों मंडल के आफ्टर इफेक्ट हैं। इस लिहाज से आप 1990 में मंडल आयोग के लागू होने महत्व को समझ सकते हैं। और इसके बाद देश की राजनीति में मझोली जातियों का प्रभुत्व कैसे बढ़ा यह तो बताने की बात है ही नहीं।
बहरहाल, अब बीपी मंडल के जीवन की बात। कोसी अंचल के मधेपुरा जिले के मुरहो गांव में एक समृद्ध जमींदार परिवार में जन्मे बीपी मंडल बिहार की राजनीति के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे। उनके पिता रासबिहारी मंडल का भी जीवन काफी चर्चित रहा है। कहते हैं वे उस सभा में भी बुलाये गये थे जो दिल्ली में जार्ज पंचम के स्वागत में बैठी थी। जब राजधानी कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट हुई थी और बिहार के अलग राज्य बनने की घोषणा की गई थी। रासबिहारी मंडल का नाम उस जमाने के जनेऊ आंदोलन में भी मिलता है। उनके परिवार के अन्य लोग भी राजनीति में सक्रिय रहे हैं।
आप बीपी मंडल का महत्व इसी बात से समझ सकते हैं कि कभी लोहिया के सबसे करीबी समझे जाने वाले मंडल को सीएम बनाने के लिये कांग्रेस सतीश बाबू को सात दिन का सीएम बना दिया था। उनका काम सिर्फ इतना था कि बीपी मंडल को बिहार विधान परिषद की सदस्यता दिला दें ताकि उन्हें सीएम बनाया जा सके। हालांकि मंडल इसके बावजूद बमुश्किल एक महीने ही सीएम रह सके। मगर उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में 80 फीसदी से अधिक बहुजनों को जगह दी थी। यह सरकार लोहिया जी की मर्जी के खिलाफ बनी थी। उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई थी।
हालांकि बाद में वे फिर जनता पार्टी में आ गए और इमरजेंसी के बाद सासंद भी चुने गए। तभी उन्हें द्वितीय पिछड़ा आयोग की कमान मिली।
आज उनकी जन्मशती पर उनके गांव मुरहो में भव्य आयोजन हो रहा है। इस आयोजन में नीतीश कुमार भी पहुंचने वाले हैं। राजधानी पटना में उपेंद्र कुशवाहा भी उनकी याद में जोरदार आयोजन कर रहे हैं। बस राजद के किसी आयोजन की खबर नहीं है।
( पुष्य मित्र प्रभात खबर के पत्रकार हैं. यह आलेख उनके फेसबुक टाइल लाइन से साभार लिया गया है )
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