केरल- एक सुझाव : आखिर कहां जाता है मुख्यमंत्री राहत कोष का रूपया
पुष्य मित्र
कम से कम तीन बाढ़ राहत अभियान से फुल टाइम जुड़े होने के अपने अनुभव से बता सकता हूँ कि सीएम रिलीफ फंड में पैसा भेजना या काफी दूर से सरकार को सामान भेज देना आपको भावनात्मक रूप से संतुष्ट तो कर सकता है मगर यह इस बात की गारंटी नहीं है कि आपके द्वारा भेजा गया पैसा या सामान वाकई पीड़ितों के काम आ जायेगा। 2008 की कोसी की बाढ़ में बिहार के सीएम रिलीफ फंड में काफी पैसा भेजा गया। मैंने आरटीआई के जरिये जानने की कोशिश की कि इस फण्ड का पैसा कोसी की बाढ़ में ख़र्च हुआ, मुझे इसका जवाब नहीं मिला। मगर एक अन्य आरटीआई के जरिये यह जरूर मालूम हुआ कि सरकार ने उस दौरान जो पैसा खर्च किया वह केंद्रीय राहत कोष की तरफ से मिला पैसा था। मुझे एक जानकार ने बताया कि आपदा की स्थिति में राज्य सरकार सबसे पहले राज्य के कोष का पैसा खर्च करती है और केंद्र पर पैकेज के लिये दबाव बनाती है।
जब सेंट्रल पैकेज आ जाता है तो वह अपने बजट का पैसा खर्च करना बंद कर देती है। मुख्यमंत्री राहत कोष के पैसे का नम्बर सबसे आखिर में आता है। और अमूमन उसकी नौबत कम ही आती है। क्योंकि सरकार के रेस्पॉन्स की प्रक्रिया और गति काफी धीमी होती है। केंद्रीय फंड ही ठीक से खर्च नहीं हो पाता। बिहार के मुख्यमंत्री राहत कोष में काफी पैसा है। मगर इस पैसा का नीतीश कुमार एक ही उपयोग करते हैं, किसी दूसरे राज्य में आपदा आने पर वहां के मुख्यमंत्री राहत कोष में पैसा भेज देते हैं। यह सिर्फ क्रेडिट लूटने के काम आता है।
वहीं आप जो सामान सरकार को भेजते हैं, वह किसी गोदाम में डंप हो जाता है। क्योंकि सरकारी मशीनरी एक जैसे राहत पैकेज तैयार करती है। उसमें डोनेटेड सामान बहुत कम होता है। नहीं कर बराबर। यह तभी होता है जब कोई बल्क में खरीद कर भेजे। मैंने 2011 में कटिहार के रेलवे स्टेशन पर बड़ी मात्रा में राहत सामग्री को पड़ा देखा। यह लोगों ने 2008 की बाढ़ में पीड़ितों के बीच बांटने के लिये भेजा था। मगर सरकार को तीन साल बाद भी फुर्सत नहीं मिली उसे उठाने की। ऐसा नहीं कि यह सिर्फ बिहार की स्थिति हो, यह सरकारी मशीनरी के काम करने की सीमा है। इसलिये, अगर आप वाकई मदद करना चाहते हैं तो मेरी सलाह यही होगी कि वहां काम करने वाली किसी जमीनी संस्था को पैसा और सामान उपलब्ध कराएं। वे आपकी मदद का सम्मान करेंगे और भरपूर कोशिश करेंगे कि आपकी मदद जरूरतमन्दों तक पहुंचे। जैसे मुझे अगर पैसा या सामान भेजना होगा यो मैं गूंज संस्था को भेजूंगा। क्योंकि इस संस्था की अपनी क्रेडिबिलिटी भी है और वह काफी पहले से वहां सक्रिय भी है। सरकारी खाते में तो कभी पैसा नहीं भेजूंगा।
Related News
इसलिए कहा जाता है भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर
स्व. भिखारी ठाकुर की जयंती पर विशेष सबसे कठिन जाति अपमाना / ध्रुव गुप्त लोकभाषाRead More
पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल के लिए ‘कार्तिकी छठ’
त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें कठिन माना जाता है, यहांRead More
Comments are Closed