जब जोधाबाई के कहने पर अकबर ने दरभंगा में लगाया था आम का बगीचा
पुष्य मित्र
आम का सीजन उफान पर है. इस साल भरपूर आम बाजार में उपलब्ध है, कीमत भी कम है, लिहाजा पूरा हिंदुस्तान खुलकर आम के रस में सराबोर हो रहा है. वह फलों का राजा आम जो दुनिया भर में भारत के फल के तौर पर जाना जाता है, क्या आप जानते हैं कि बिहार के दरभंगा शहर को कैपिटल ऑफ मैंगो कहा जाता रहा है. तो आइये आम के इस मौसम में मिथिला के इलाके में शहंशाह अकबर के बगीचों की कहानी जानते हैं.
वैसे तो भारत में आम की किस्मों के तौर पर हापुस, लंगड़ा, मालदह, बंबइया, जर्दालू वगैरह मशहूर हैं. और इनमें से किसी का ठिकाना मिथिलांचल के इलाके में नहीं है. जर्दालू आम जरूर भागलपुर के इलाके में काफी मकबूल रहा है. यहां के जर्दालू आम की शोहरत कुछ ऐसी है कि हर साल यहां से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और देश और राज्य की बड़ी हस्तियों को इस आम की टोकरियां भेजी जाती हैं.
मगर एक वक्त ऐसा था जब दरभंगा को कैपिटल ऑफ मैंगो कहा जाता था. यह उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशकों की बात है, जब दरभंगा में चार्ल्स मैरिज लक्ष्मेश्वर गार्डेन के केयरटेकर थे. तब उन्होंने यहां आम की चालीस प्रजातियों को विकसित किया था. यह बाग इतना मशहूर था कि इसे देखने के लिए पूरे देश से लोग आते थे. कहा जाता है कि बाद के दिनों में धीरूभाई अंबानी ने खुद इस बगीचे से प्रेरित होकर जामनगर में एक लाख पेड़ों का आम का बगीचा लगवाया. मैरिज का यहां का काम इतना मकबूल हुआ कि पहले इन्हें ग्वालियर रियासत वाले अपने यहां ले गये, फिर वे इंग्लैंड की महारानी के मुख्य बागीचे के केयरटेकर बन गये. उन्होंने दरभंगा में आम की खेती को लेकर एक किताब भी लिखी थी, जो छप नहीं पायी.
यह तो बहुत बाद की बात है. दिलचस्प है कि दरभंगा में आम के बगीचे की कथा आइने अकबरी से मिलती है. उसमें जिक्र है कि बादशाह अकबर ने दरभंगा में आम के एक लाख पेड़ों का बगीचा लगवाया था, जिसे लाखा बगीचा कहा जाता था. एक अन्य जगह जिक्र है कि इस बगीचे को अकबर ने जोधाबाई के आम के प्रति प्रेम को देखते हुए लगवाया था. पत्रकार मित्र आशीष झा बताते हैं कि खंडवा के रहने वाले महेश ठाकुर को दरभंगा का राज अकबर ने ही दिया था. इसलिए दरभंगा से उनका राब्ता रहा होगा और यहां की जलवायु भी आम की खेती के लिए मुफीद मानी जाती है.
आशीष झा इस क्रम में एक महत्वपूर्ण बात यह बताते हैं कि महेश ठाकुर अकबर के नव रत्न बीरबल के परिचित थे. वे जिस रियासत को छोड़ कर दिल्ली गये थे, उसे उन्होंने महेश ठाकुर को सौंप दिया था. बाद में दिल्ली में अबुल फजल से किसी बहस के दौरान बीरबल ने महेश ठाकुर को दिल्ली बुलवाया. अध्यात्म और दर्शन विषय से संबंधित इस बहस में महेश ठाकुर ने अबुल फजल को निरुत्तर कर दिया. जिससे खुश होकर बादशाह अकबर ने महेश ठाकुर को दरभंगा की मनसबदारी सौंपी.
अकबर ने मिथिलांचल में एक ही आम का बगीचा नहीं लगाया. उन्होंने समस्तीपुर के पास एक और अनूठा बगीचा लगवाया था, कतिका आम का. उस बगीचे में आम कार्तिक महीने में फलता था. और गर्मियों के बदले लोग ठंड में इसका लुत्फ उठाते थे. आशीष झा बताते हैं कतिका आम के बारे में तो उन्हें मालूम नहीं, मगर दरभंगा का लाखा बगीचा आज साधु गाछी कहा जाता है. हालांकि साधु गाछी में आज आम का एक भी पेड़ नहीं बचा है.
दरभंगा में एक और आम का बगीचा काफी मकबूल हुआ है. उसका नाम है मनीगाछी. आशीष जी बताते हैं कि यह बगीचा 1860 के आसपास मेजर मनी ने लगवाया था. आज दरभंगा में मनीगाछी एक प्रखंड का नाम है.
( पुष्यमित्र प्रभात खबर से जुडे हैं, यह उनके फेसबुक पेज से साभार)
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