सासाराम का वह अदना रौनियार जो बदल रहा था भारत की तकदीर लेकिन….

सुबोध गुप्ता
पानीपत में 5 नवम्बर वर्ष 1556 को हुए निर्णायक युद्ध में उसके आँख में कोई तिनका नहीं बल्कि आँख और मगज सहित पार होने वाली रसायन युक्त भाला सादृश्य तीर घुसी थी. अकल्पनीय पीड़ा के बावजूद अपनी आँख पर अंगौछा लपेट वह हिंदुस्तान की अस्मिता के खातिर मुग़ल आक्रमणकारियों को ललकारते हुए अपने सैनिकों का मनोबल चीर परिचित उत्साह से बढ़ाये रहा था. द्वितीयोनास्ति ना भूतो ना भविष्यति उस अद्भुत अद्वितीय अविश्वसनीय पराकर्मी की अकल्पनीय शौर्य को नमन
यद्यपि उसके पास खुला विकल्प था कि औरों की भांति मुग़ल सम्राट अकबर की गुलामी स्वीकार कर उसके साम्राज्य में सर्वोच्च पद हासिल कर सके. लेकिन माँ भारती के उस सपूत ने अपना सिर कटवाना बेहतर समझा अपेक्षाकृत झुकाना. सासाराम के अदने से रौनियार वा हिंदुत्व के उस अतुल्य पुरोधा के श्री चरणों में बारम्बार नमन
विलक्षण सौभाग्य वश मिली जीत के पश्चात उसके हजारों सैनिकों का क़त्ल कर उनकी नरमुंडों की गगनचुम्बी मीनार पानीपत में बनवाने के अतिरिक्त अकबर ने उस पुरोधा के धड को, हिन्दुओं की सांस्कृतिक धरोहर रही दिल्ली स्थित पुरानी किला में ठीक उसी स्थान पर, लटकाया जहाँ उसने विक्रमादित्य ( अंतिम) के रूप में अपना राज तिलक करवाते हुए स्वराज्य की पुनः स्थापना का शंख नाद किया था तो सिर को काबुल में लोहे की ऊँची गेट पर फांसी के फंदे की भांति लटकाते हुए दिल्ली से काबुल तक अपनी साम्राज्य की पुनः स्थापना पर अट्टहास किया था. अकबर ने सिर्फ इसलिए उसे दो टुकड़ों में काट दिया था कि वह अपनी सिर्फ घायलावस्था में भी अकबर को आक्रमणकारी ही मान रहा था. त्रासदी है उस अप्रितम योद्धा की जिस विशिष्ट स्थल पर उसे काटा गया था वहां देश का उत्कृष्ट स्मारक होने की जगह मुर्गी फार्म हाउस और भैंसों की डेयरी बनाई गयी है .
कृतग्य राष्ट्र को उसे नमन करते उस अंतिम हिन्दू सम्राट की सार्थक स्मरणान्जली स्वरूप प्रत्येक वर्ष 7 अक्टूबर, जिस रोज उसने हिंदुस्तान को 364 वर्षों पश्चात मुग़ल और अफगानों के चंगुल से मुक्त कर दिया था, को हिन्दू स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाते हुए दिल्ली से काबुल तक दृश्यमान उसकी प्रतिमा ठीक उसी स्थल पर स्थापित करनी चाहिए ताकि उसकी पथरायी आँखे उसे देख तृप्त हो संकें, मुग़ल सम्राट अकबर को उसी के शब्दों में प्रत्युतर दिया जा सके .
आखिर कौन था -हेमू ?
शोध कर्ता : सुबोध गुप्ता
रौनियार सेवा संसथान ( दिल्ली )
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