शरद की सीट पर कब्जा जमाने बिहार में मचेगा घमासान
अरविंद शर्मा.पटना. राज्यसभा की सात सीटों के लिए मार्च में संभावित चुनाव के दौरान बिहार में सियासी घमासान तय है। सत्ता का समीकरण बदलने के बाद यह चुनाव कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती लेकर आ रहा है। पार्टी के लिए अपने विधायकों को एकजुट रखकर उच्च सदन में इंट्री आसान नहीं होगी। सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए सत्ता पक्ष की नजर कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों पर होगी। रिक्त हो रहीं सीटों में शरद यादव समेत पांच पर जदयू और दो पर भाजपा का कब्जा है। राजद-कांग्रेस के हिस्से में एक भी सीट नहीं है। एक सीट जीतने के लिए 35 वोट की जरूरत पड़ेगी। संख्या बल के हिसाब से सत्ता पक्ष और विपक्ष को तीन-तीन सीटें आसानी से मिल जाएंगी।
समय से पहले खाली हो रही शरद यादव की एक सीट के लिए अलग से बैलेट पेपर होने के कारण उसे भी सत्ता पक्ष की झोली में जाना तय माना जा रहा है। मुख्य संघर्ष नियमित चुनाव वाली खाली हो रही छह सीटों के लिए होगा। मुंद्रिका यादव के निधन के बाद राजद के 79 और कांग्रेस के 27 विधायक हैं। तीन सीटें निकालने के लिए इस गठबंधन को कुल 105 वोट चाहिए। अभी 106 वोट हैं। जरूरत से महज एक ज्यादा। ऐसे में सत्ता पक्ष की नीयत डोल सकती है। सियासी झंझावातों में फंसी कांग्रेस के दो विधायकों ने भी पाला बदल लिया या वोट के समय अनुपस्थित हो गए तो महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
भाजपा-जदयू को दो-दो सीटें तय
समय से पहले खाली हो रही शरद यादव की सीट के लिए अलग चुनाव प्रक्रिया होगी। नियमित चुनाव की दो एवं शरद की एक सीट मिलाकर सत्ता पक्ष के हिस्से में चार सीटें साफ तौर पर आती दिख रही हैं। जदयू को दो सीटें निकालने में किसी की मदद की दरकार नहीं होगी। भाजपा को दूसरी सीट जीतने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है।
आनंद भूषण पांडेय के निधन के बाद भाजपा के विधायकों की संख्या 52 रह गई है। इस हिसाब से राजग के पास कुल वोट 128 हैं। तीन सीटों पर जीत के समीकरण से 23 ज्यादा। निर्दलीय एवं कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों के सहारे राजग अपने विरोधियों का समीकरण गड़बड़ करने की कोशिश कर सकता है। ऐसा हुआ तो राजग के हिस्से में चौथी सीट भी पक्की हो सकती है।
खाता खोल सकती है कांग्रेस
पिछले चुनाव में जदयू-राजद के प्रत्याशियों के पक्ष में वोट करने वाली बिहार कांग्रेस का प्रयास इस बार एक सीट लेने का होगा। इसके लिए उसे अपने विधायकों को एकजुट रखकर राजद से हिस्सेदारी मांगने की जरूरत पड़ेगी। पिछले चुनाव में पांच सीटें खाली हुई थीं। तब जदयू का दूसरा उम्मीदवार कांग्रेस की मदद से जीता था। इसके बदले जदयू-राजद ने 2018 में कांग्रेस को एक सीट देने का वादा किया था। अब तीनों के रास्ते अलग हो गए तो कांग्रेस को नई कोशिश करनी होगी। उसे राज्यसभा और विधान परिषद के चुनाव के आधार पर सहयोगी से समझौता करना होगा। जागरण से साभार
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