खौफ के वो 40 घंटे: झटका इतना तेज की सीढ़ी उतरे ही गिर पड़े
मुकेश सिन्हा, छपरा, सारण।
नेपाल में आए भूंकप को एक सप्ताह बीत गए हैं, लेकिन लाशों का मिलना अब भी जारी है. इस त्रासदी में जो बच गए उनके लिए ए सब एक दूसरे जन्म जैसा है. भारत सरकार की ओर से लोगों को बचाने का सिलसिला लगातार जारी है. लेकिन इन सब के बीच एक परिवार ऐसा भी है जिसने मौत को सामना भी किया, जैसे-तैसे अपनी जान बचाई, घर में बचे हुए अनाज से खुद का पेट भी भरा और आसपास जो फंसे पड़े थे, उनका पेट भी खाली नही रहने दिया और बिना किसी सरकारी मदद के सकुशल अपने घर छपरा लौट आए.ए कहानी है जिले के एकमा प्रखंड के नौतन बाजार के निवासी बसंत कुमार पांडेय और उनके परिवार की. जो बीते कई सालों से काठमांडू में रहते है. बसंत वहाँ मेडिकल रिप्रैजेंटेटिव है. बसंत कुमार पाण्डेय और उनके परिवार ने घर पहुंच कर राहत की सांस ली है. बसंत कुमार पाण्डेय के छोटे भाई विकास कुमार पाण्डेय ने बताया कि कैसे उनके पूरे परिवार ने भूकंप के बाद परेशानियों को झेला. विकास ने बताया कि शनिवार की दोपहर वे और उनके परिवार के अन्य सदस्य दोपहर का खाना खाने की तैयारी में थे और टेलीविजन पर समाचार देख रहे थे. तभी एक जोर का झटका उन सभी को झकझोर गया. वे सभी बाहर की ओर भागे. बिल्डिंग के पहले तल पर रहने के कारण वे सभी सीढ़ी की ओर भागे उनके साथ उनके भाई (बसंत), भाभी और उनका 7 माह का भतीजा अयान भी था. बकौल विकास भूकंप का झटका इतना तेज था कि वे सभी सीढ़ी से उतरते समय गिर जा रहे थे. किसी तरह गिरते पड़ते वे सभी नीचे घर के सामने एक मैदान में पहुंचे. उन्होंने बताया कि भूकंप के झटके हर दस मिनट पर आ रहे थे. उनके घर के बगल वाले घर को भूकंप के पहले झटके से नुकसान पहुंचा था.विकास ने बताया कि उनका घर नेपाल के मशहूर धरहरा टावर जो कि भूकंप में पूरी तरह से तबाह हो गया, वहाँ से 100 मीटर की दूरी पर स्थित है. उन्होंने बताया कि शनिवार के पूरे दिन और रात खुले मैदान में बिताने के बाद वे लोग रविवार सुबह 4 बजे एक बार फिर अपने घर में वापस लौटे, की सब कुछ अब सामान्य हो चुका है. लेकिन तभी एक बार फिर भूकंप के झटकों ने उन सभी को झकझोर दिया. वे सभी फिर से बाहर भागे और अपनी जान बचाई.घर के सामने मैदान में शरण लिए लोगों को पहली उम्मीद की किरण तब दिखी, जब नेपाली बचाव दल के कुछ सदस्य उनके पास पहुंचे पर कोई राहत नहीं दे सके. सड़कों पर मलबा पसरा था. रास्ते बंद हो चुके थे. घर में जो कुछ बचा था उससे ही दो दिनों तक अपने और अपने आसपास रह रहे लोगों को खिला गुजारा किया. उन सभी की मुश्किल तब और बढ़Þ गई जब उनके पास पानी का स्टॉक खत्म हो गया. जिसके बाद उन सभी ने काठमांडू से निकलने का निर्णय लिया.विकास ने बताया कि लगभग 40 घंटे वहाँ फंसे रहने के बाद अगले दिन उनके परिवार के सदस्यों के साथ तीन और लोगों ने मिलकर भारत वापस आने के लिए बस कि मदद लेनी चाही, पर बस ड्राइवर एडवांस पैसा लेकर भाग गया. बाद में एक छोटी गाड़ी की सहायता से वे सभी बीरगंज पहुंचे. बसंत और उनके परिवारवालों के आंखों में जो खौफ दिख रहा था. उससे ए साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि तबाही का वो मंजर कैसा रहा होगा. बसंत के परिवार के नेपाल से आने के बाद उनके दो और मित्र सागर सिंह और दिलीप सिंह भी मंगलवार को सकुशल अपने घर पहुंचे.बसंत और उनका परिवार और उनके मित्र उन चंद खुशकिस्मत लोगों में से हैं जिन्हे एक नई जिंदगी मिली है. लेकिन जिन लोगों ने इस त्रासदी में अपनों को गंवाया है, उनका दर्द शायद दुनिया का कोई मरहम ठीक नहीं कर पाएगा. लेकिन वो कहते हैं ना कि वक्त हर जख्म भर देता है. उन लोगों के जख्म शायद वक्त जरूर भर दे लेकिन यादें कभी पीछा नहीं छोड़ेंगी. अब बस नेपाल को इंतजार है एक नई सुबह का….
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