हमारे सामने कांपने लगी भट्ठे की चिमनी
मनीष शांडिल्य, सुपौल से
नेपाल सीमा से लगे भारतीय राज्य बिहार के सुपौल जिले में दो दिनों तक भूकंप और उसके बाद के झटके महसूस किए गए। जिÞले के बलहा गांव के निवासी अमोद कृष्ण साइकिल से घर आ रहे थे तब उनकी साइकिल डगमगाने लगी। सुपौल को भूकंप संभावित क्षेत्र माना जाता है. यहां साल 1988 में और इससे पहले 1934 में भूकंप आया था।
अमोद कृष्ण मानते हैं कि वर्ष 1988 के भूकंप के दौरान सड़कों पर और खेतों में दरारें नजर आने लगी थीं। कर्णपुर गांव के सेवानिवृत्त शिक्षक कृष्णानंद झा भी भूकंप के दौरान घायल हो गए. वह जिÞला पोस्टआॅफिस में पैसा जमा करने गए थे। कृष्णानंद झा ने उन्होंने बताया, करीब 12 बजे भूकंप आने से पोस्टआॅफिस की दो मंजिÞला इमारत हिलने लगी। पोस्टआॅफिस से बाहर निकलने का एक ही रास्ता था। लोगों में अफरा-तफरी मचने से मैं गिर पड़ा और मेरे सिर में चोट आई। सुपौल शहर के मोहम्मद जमालुद्दीन शहर से 10 किलोमीटर बाहर एक ईंट भट्ठा चलाते हैं। उनके ईंट भट्ठे की चिमनी के एक हिस्से को भी नुकसान हुआ है। उनका कहना है कि इसे दुरुस्त करने में दो-तीन महीने लग जाएंगे और अब मजदूर भी काम पर नहीं आ रहे हैं। नेपाल से लगे सुपौल जिÞले में साल 1988 और 1934 में जबरदस्त भूकंप आया था। जमालुद्दीन बताते हैं कि उनकी आँखों के सामने भूकंप से चिमनी कांपने लगी और एक दीवार देखते ही देखते गिर गई। ईंट भट्ठे में काम करने वाले एक मजदूर मुनीश्वर मंडल भूकंप के वक़्त सो रहे थे। जब वह घर से बाहर निकले तो उन्होंने चिमनी को भी नुकसान पहुंचते देखा। -बीबीसी हिंदी से
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