कन्यादान को लेकर बहुत संवेदनशील समाज औऱ साधु !
किसी गृहस्थ के कंधे पर सबसे बड़ा बोझ होता है कि कन्या का विवाह। यही सबसे बड़ा सुख भी होता है। संसार में जो खुशी कन्यादान से मिलती है वो शायद ही किसी और काम से किसी को मिले।
इसलिए भारत का ग्रामीण समाज कन्यादान को लेकर बहुत संवेदनशील होता है। गांव में किसी के लड़की का विवाह हो, वह सबकी लड़की का विवाह हो जाता है। उस निमित्त वह किसी से कुछ सहयोग मांगे तो कोई मना नहीं करता।
कन्या के विवाह को भारत के ग्रामीण समाज में यज्ञ करने जैसा पवित्र कार्य समझा जाता है। कोई भी हो अपनी क्षमता अनुसार ऐसे यज्ञ में सहयोग करके इसके पुण्य का भागी बनना चाहता है।
मठ आश्रम भी ऐसे काम में सहयोगी होते रहते हैं। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती तो हर साल एक बड़ा आयोजन करते थे और विवाहित कन्याओं को खूब सामान और गहने कपड़े उपहार में देते थे।
अब बागेश्वर धाम से ऐसा समाचार आया तो सुनकर बड़ा अच्छा लगा। आश्रम मठ ये सब समाज के लिए ही हैं। समाज का सुख दुख साधु का सुख दुख है। साधु समाज का हिस्सा है। समाज से अलग थलग खड़ा एलियन नहीं। उसे हर हाल में समाज के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए।
साधु एक ट्रांसफार्मर की तरह होता है। वह अच्छे लोगों को अच्छे काम से जोड़ता चला जाता है। इससे विमुख होकर उसके होने का भला क्या औचित्य रह जायेगा?
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