Sunday, February 5th, 2023
इसलिए है रैदास को और शिद्दत से पढ़ने, समझने की जरूरत
सुभाषचंद्र कुशवाहा रैदास जयंती पर उन्हें और शिद्दत से पढ़ने, समझने की जरूरत है। उन्हें “रविदास” कहने के कुचक्र से भी बचना है। संत रैदास का नाम अपने लाभ- हानि के लिए लेते हुए, उन्हें दैवीय चमत्कारों में उलझा कर वर्णवादी कर्मकांडों में समाहित कर लेने का कुचक्र, इस धरती पर पसरे बहुजन विरोधी अमानवीय संस्कृति का मूल है. रैदास प्रिय हैं तो ऊँच-नीच, वर्णवाद का निषेध हो, उसके लिए संघर्ष हो अन्यथा किसी तप, तपस्या, पूजा -पाठ से रैदास का क्या काम ? मध्यकालीन भारतीय संत परम्परा, अकर्मण संस्कृतिRead More
जनमानस के संत कवि संत शिरोमणि रैदास
पवन कुमार, शोध छात्र, गोरखपुर विश्विद्यालय गोरखपुर भारतीय मध्यकालीन परिवेश में संस्कृति, धर्म और भाषा की सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ मोटे तौर पर द्विस्तरीय रही हैं |भारतीय मध्यकालीन परिवेश सत्ता संघर्ष के साथ-साथ संस्कृति, धर्म और भाषा के आपसी द्वन्द का भी समय रहा। इसी की अभिव्यक्ति के रूप में निर्गुण और सगुण काव्यधारा दिखती है| दोनों ही काव्यधाराओं के कवियों की सामाजिक दृष्टि में अन्तर दिखाई देता है, इसके बावजूद वे सामाजिक और राजनीतिक सत्ता और संरचना से टकराती हुई साहित्यिक अभिव्यक्तियाँ करते हैं । भक्तिकाल के निर्गुण संत परम्परा एकRead More