वह मरा नहीं, आईएएस बन गया!

वह मरा नहीं, आईएएस बन गया!

अजय तिवारी

जी हाँ, यह कोई अंधविश्वास नहीं, जीती-जागती सचाई है। किसी के शरीर में सात गोलियाँ दाग दी जायँ और उसकी लगभग मृत्यु हो गयी हो, तब वह जीवन में कोई अप्रत्याशित सफलता पाकर दिखाये तो क्या कहिएगा?

इस प्रसंग में चमत्कार और दैवी वरदान के विश्वास की प्रबल संभावना है। हालाँकि है यह नितांत लौकिक संघर्ष और नैतिक साहस की कथा। इसलिए ज़रा ठहरकर इसपर गौर करना आवश्यक है।

रिंकू राही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। 2007 में वे मुज़फ़्फ़रनगर में पीसीएस अधिकारी थे। युवा अधिकारी में नैतिकता और ईमानदारी का भूत सवार था। उसने देखा कि 100 करोड़ रुपये का स्कालरशिप घोटाला धड़ल्ले से चल रहा है। उसने इस घोटाले को उजागर किया। स्वभावत: इतनी बड़ी रक़म का घोटाला सरकारी अधिकारियों और बाहरी माफिया की मिलीभगत से चल रहा था।

ये सब रिंकू राही पर बौखला गये। 2009 में अपराधियों द्वारा उन्हें गोलियों से भून दिया गया। उनके शरीर में सात गोलियाँ घुसीं। इनमें तीन उनके चेहरे पर लगी थीं। चेहरा बिगड़ गया। एक आँख जाती रही। एक कान चला गया।

पर रिंकू बच गये। चार महीने अस्पताल में रहने के बाद जब वे वापस लौटे तो उन्होंने निश्चय किया कि अपनी शक्ति बढ़ाने की ज़रूरत है। यह शक्ति माफिया बनकर फ़िल्मी तरीक़े से नहीं, प्रशासन में बेहतर स्थिति हासिल करके बढ़ायी जा सकती है। उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू की। इस साल जब हम सब जामिया के प्रशिक्षण केंद्र से आकर यूपीएससी में पहले तीनों स्थान लेने पर रिचा शर्मा और दो अन्य बच्चियों की सफलता का आनंद ले रहे हैं, तब इसी के साथ 683वें स्थान पर आईएएस की परीक्षा पास करने वाले रिंकू राही को भुला नहीं सकते—उनकी सफलता कम प्रेरणादायी और आनंदप्रद नहीं है।

रिंकू पर हत्या के इरादे से गोली चलाने वालों में आठ लोग गिरफ़्तार हुए। उनमें चार को 10-10 साल की सज़ा हुई। इस संघर्ष में रिंकू राही को बहुत पीड़ादायक अनुभवों से गुजरना पड़ा। उनका कहना है कि “मैं व्यवस्था से नहीं लड़ रहा था, व्यवस्था मुझसे लड़ रही थी!” यह बात कितनी सच है, आप स्वयं सोचिए कि चार महीने इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती रहने का चिकित्सकीय अवकाश (मेडिकल लीव) आज तक स्वीकार नहीं हुआ है!!

रिंकू राही अब 40 वर्ष के हैं। पंद्रह साल पहले जब उनपर गोलियाँ चली थीं, तब वे 25 साल के थे। तब से उत्तर प्रदेश में आने वाली सरकारों ने उनके साथ बेरहमी का ही बर्ताव किया। उन्हें मारने की कोशिश मायावती की बसपा सरकार के समय हुई थी। अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार ने उन्हें भ्रष्टाचार पर बहुत ज़्यादा विरोध करने के नाते पागलखाने भेज दिया था। यूपीएससी ने किसी-किसी वर्ग के लिए आयुसीमा में छूट दी थी। रिंकू गोली लगने के बाद विकलांग श्रेणी में आ गये हैं जिनके लिए यूपीएससी में 42 वर्ष की अर्हता आयु है। इसका लाभ रिंकू राही को मिला।

इस नौजवान का जीवन पहले से संघर्षपूर्ण रहा है। पिता दस साल के थे, तभी दादाजी का निधन हो गया। दादी ने किस तरह परिवार पाला होगा, उसका वृत्तांत रोमांचक है। पिता पढ़ने में बहुत अच्छे थे लेकिन परिवार चलाने में दादी का साथ दिये बिना चारा नहीं था। पढ़ाई ढंग से और नियमित रूप में नहीं हो सकती थी। अपने विकासकाल में रिंकू ने अनुभव किया कि अगर सरकारी अधिकारी ईमानदार हों तो ग़रीबों के लिए चलने वाली योजनाओं का लाभ सचमुच लोगों को प्राप्त हो।

बहरहाल, अब रिंकू स्वयं आईएस अधिकारी हैं। अपने आदर्शों और सपनों को क्रियान्वित करें, प्रशासन को ईमानदार ही नहीं, संवेदनशील बनाने में भी जो भूमिका निभा सकते हैं, निभाएँ। तंत्र और व्यवस्था के भीतर व्यक्तिगत प्रभाव की सीमाएँ होती हैं। लेकिन व्यक्तिगत प्रयत्न भी महत्व रखते हैं, इसमें संदेह नहीं।

रिंकू का जीवन प्रसंग मौत से लड़कर और फिर व्यवस्था से लड़कर अनोखी उपलब्धि का उदाहरण है। इसमें आस्तिक और धर्मभीरु मन के लिए चमत्कारिक व्याख्या की बड़ी गुंजाइश है लेकिन दूसरी तरफ़ मृत्यु को चुनौती देकर ईमानदारी के लिए संघर्ष की अदम्य प्रेरणा भी है।

(अजय तिवारी दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक रहें हैं, आलेख उनके फेसबुक से साभार लिया गया है )






Related News

  • लोकतंत्र ही नहीं मानवाधिकार की जननी भी है बिहार
  • भीम ने अपने पितरों की मोक्ष के लिए गया जी में किया था पिंडदान
  • कॉमिक्स का भी क्या दौर था
  • गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र
  • वह मरा नहीं, आईएएस बन गया!
  • बिहार की महिला किसानों ने छोटी सी बगिया से मिटाई पूरे गांव की भूख
  • कौन होते हैं धन्ना सेठ, क्या आप जानते हैं धन्ना सेठ की कहानी
  • यह करके देश में हो सकती है गौ क्रांति
  • Comments are Closed

    Share
    Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com