हिंदी मीडियम में दम है। मगर हममें कितना दम है?
हिंदी मीडियम में दम है। मगर हममें कितना दम है?
बालेंदु शर्मा दाधिच
मित्रो, हिंदी के जरिए सफलता प्राप्त करने के बाद आज मुझे लगता है कि मुझ जैसे लोगों पर एक सामाजिक दायित्व है। दायित्व है हमारी युवा पीढ़ी को सशक्त करने का। उसे इस बात का विश्वास कराने का कि ‘हिंदी मीडियम’ में कोई समस्या नहीं है। हाँ, हमारे आसपास हमारे ही लोगों द्वारा चुनौतियाँ पैदा की जाती हैं लेकिन अब जमाना बदल रहा है और आप चाहें तो हिंदी को अपनी ताकत बना सकते हैं। उसी तरह, जैसे मैंने उसे बनाया और आज दुनिया की शीर्ष कंपनी माइक्रोसॉफ़्ट में एक वरिष्ठ पद तक पहुँचा। खुद मेरे लिए यह कल्पना कुछ साल पहले तक असंभव सी थी। लेकिन यह बात मैं आपको क्यों बता रहा हूँ।
इसलिए कि अब हमें हिंदी मीडियम होने पर हीनभाव की ज़रूरत नहीं है। अपने ही देश में अपनी भाषा बोलने, समझने, लिखने पर हमारा आत्मविश्वास हिलना नहीं चाहिए। हमारे भीतर वह दमखम होना चाहिए कि जहाँ तमाम लोग अंग्रेज़ी में होल रहे हों, वहाँ पर हम हिंदी में प्रखरता के साथ अपनी बात कह सकें- बिना इस बात की फिक्र किए कि कौन कैसी प्रतिक्रिया करता है। हममें वह काबिलियत होनी चाहिए जिसकी बदौलत आज की प्रतिद्वंद्विता भरी दुनिया में भी हम अपनी जगह बना सकें- रोजगार के लिए, कारोबार के लिए और अपनी पहचान के लिए।
लेकिन यह काम महज नारेबाजी या हिंदी के प्रति गर्व महसूस करने से नहीं होगा। इसके लिए हम करोड़ों हिंदीभाषियों को मेहनत करनी होगी- न सिर्फ अपनी कामयाबी के लिए बल्कि हिंदी को उन बेड़ियों से निकाल लाने के लिए जो उस पर बेवजह थोप दी गई हैं। हिंदी हमें तरक्की करने से रोकती नहीं। हम खुद अपने को रोकते हैं। लेकिन अब हम सकारात्मक ढंग से खुद पर काम करेंगे। सीखेंगे, कौशल विकसित करेंगे, कामयाब लोगों से मिलेंगे, एक दूसरे से नेटवर्किंग करेंगे और मिल-जुलकर आगे बढ़ेंगे। हिंदी को एक रचनात्मक और सकारात्मक सामाजिक आंदोलन की रीढ़ बना देंगे।
यह फेसबुक पर की जाने वाली आम टिप्पणियों की तरह नहीं है कि आप इसे लाइक करके आगे बढ़ जाएँ या फिर एक टिप्पणी कर दें। हम सबको अपनी सोच बदलने के लिए आगे आना है, खुद को और ज़्यादा सक्षम बनाना है। और सबसे ऊपर, हिंदी के प्रति हीनता का भाव निकाल फेंकना है क्योंकि हिंदी की स्थिति हमीं बदल सकते हैं और हमारी स्थिति हिंदी बदल सकती है।
मैंने शुरूआत के तौर पर फेसबुक पर एक समूह बनाया है। आइए, उससे जुड़ते हैं और फौलादी इरादों के साथ शुरूआत करते हैं अपनी भाषा के जरिए कुछ कर दिखाने की। वैसे ही जैसे स्व. सुषमा स्वराज, विजय शेखर शर्मा (पेटीएम), मनोज वाजपेयी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, आशुतोष राणा, इरफान खान, गीतांजलि श्री और उनके जैसे अनगिनत लोगों ने कर दिखाया। अगर वे कर सकते हैं तो हम भी कर सकते हैं दोस्तो। अगर फेसबुक आपके लिए सिर्फ 15 मिनट की निजी प्रसिद्धि का मंच भर नहीं है और आप गपशप की दीवार फांदकर कुछ बड़ा करने की हिम्मत रखते हैं तो इस फेसबुक समूह से जुड़िए। हमारा लक्ष्य दस लाख लोगों तक पहुँचने का है क्योंकि हिंदी बोलने वालों की संख्या तो 50 करोड़ से भी ज्यादा है।
आज मैं आप सबके बीच गर्व से, एक बार फिर घोषणा करता हूँ कि हाँ, मैं हिंदी मीडियम वाला हूँ। आइए, गुंजा दें आसमान यह घोषणा करके कि हाँ, हम सब हिंदी मीडियम वाले हैं और हिंदी मीडियम में दम है। आप सब आमंत्रित हैं।
यह रहा समूह का लिंक- https://www.facebook.com/groups/1649524252096215
Related News
इसलिए कहा जाता है भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर
स्व. भिखारी ठाकुर की जयंती पर विशेष सबसे कठिन जाति अपमाना / ध्रुव गुप्त लोकभाषाRead More
पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल के लिए ‘कार्तिकी छठ’
त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें कठिन माना जाता है, यहांRead More
Comments are Closed