जॉर्ज फर्नांडिस की तरह खराब हो गया शरद यादव का बुढ़ापा
शिशिर सोनी, नई दिल्ली।
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शरद यादव का ये हाल देख कर दुख होता है। जो कभी सियासत का रिंग मास्टर हुआ करता था आज सरकारी बंगले को बचाने के लिए न जाने क्या क्या प्रयास कर रहा है। न वो सांसद हैं, न मंत्री फिर भी तुगलक रोड स्थित टाइप एट बंगले का मोह उनसे छूट नहीं रहा। मैं कहाँ जाऊंगा? कोई घर नहीं बनाया। जो था उसे बेच दिया। ऐसी ऐसी बातें सुनकर अजीब लगता है। मामला कोर्ट में था। कोर्ट ने भी कह दिया खाली करो। कोर्ट के ऑर्डर के बाद राजद से आस बंधी। पता नहीं उनकी पार्टी में कितने लोग थे गत बीस मार्च को राजद में विलय की घोषणा की। राज्यसभा मिल जाता तो शायद बंगला बचा लेते, लेकिन वहाँ से भी निराशा मिली। हालत शरद यादव की ये हो गई कि लंबे समय से उनके सहयोगी रहे रामबहोर साहू ने सोशल मीडिया पर शरद यादव को राज्यसभा दिये जाने की वकालत की। बात बननी नहीं थी, सो नहीं बनी। अब कल, मंगलवार को शरद यादव बंगला खाली करेंगे।
लगभग दो दशक से शरद यादव को करीब से देखा, समझा। वो साफ बोलने वाले छोटे कद के बड़े नेता रहे। मगर, नितीश कुमार ने जिस तरह बेइज्जत कर जॉर्ज फर्नांडीज को पैदल कर उनका बुढापा खराब किया और शरद यादव देखते रहे। नितीश का साथ देते रहे। जदयू के अध्यक्ष बन गए। वो छोटे कद के बड़े नेता का व्यक्तित्व बौना कर गया। वही कहानी नितीश कुमार ने शरद यादव के साथ दोहराई। जदयू की कमान पहले उनसे ली। फिर उन्हें आहिस्ता आहिस्ता पूरी तरह पैदल कर दिया। शरद यादव एक धार में बहने वाले नेता रहे। उनमें ये कुव्वत कभी नहीं रही कि वो अपने बल पर कोई मजमा जमा लें। हालांकि कोशिशें बहुत कीं। जब शरद जी का समय खराब आया तो जॉर्ज फर्नांडीज की भी याद आ रही है। राजनीति सच में बहुत बेहया होती है। शिशिर सोनी के फेसबुक वॉल से साभार
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