लालू समर्थक विधायकों की संख्या में सेंधमारी की थी रघुनाथ झा ने
लालू समर्थक विधायकों की संख्या में सेंधमारी की थी रघुनाथ झा ने
पोलिटिकल कथा यात्रा -1
— वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ संसदीय पत्रकार, पटना —
आज कथा यात्रा की तलाश में राजद कार्यालय पहुंचे। पूर्व विधान पार्षद तनवीर हसन से मुलाकात हुई। बातचीत के क्रम में उन्होंने बताया कि कर्पूरी ठाकुर ने रामचंद्र पूर्वे को पहली बार 1986 में विधान पार्षद भेजा था। तनवीर हसन खुद 1990 में लालू यादव के साथ एमएलसी बने थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू यादव लोकसभा से इस्तीफा देकर एमएलसी बने थे। इसी बातचीत में यह जानने की उत्सुकता बढ़ी कि किन परिस्थितियों में लालू यादव मुख्यमंत्री के दावेदार बने और फिर वोटिंग के बाद विधायक दल के नेता चुन लिये गये। इस बारे में जानकारी हासिल करने के लिए बिहार के संसदीय मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार पांडेय से संपर्क किया। वे विधायक दल के नेता के चुनाव वाले दिन सदाकत आश्रम स्थित ब्रजकिशोर मेमोरियल हॉल के पास उपस्थित थे। जनता दल विधायक दल के नेता के चुनाव के लिए बैठक और मतदान उसी हॉल में हुआ था।
वे कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री होने के कारण रामसुंदर दास को स्वाभाविक दावेदार माना जा रहा था। वे पातेपुर से विधायक भी थे। वे वीपी सिंह खेमे के समर्थक माने जाते थे। इस बीच चंद्रशेखर समर्थक रघुनाथ झा ने भी विधायकों के बहुमत का समर्थन का दावा करते हुए सीएम पद की दावेदारी ठोक दी। उधर, शरद यादव, मुलायम सिंह यादव और नीतीश कुमार देवीलाल खेमे के थे और इनकी पंसद लालू यादव थे। 1990 के चुनाव में टिकट वितरण में शरद यादव और मुलायम सिंह यादव की बड़ी भूमिका थी। इस दौर में सांसद बन गये पूर्व नेता प्रतिपक्ष लालू यादव और नीतीश कुमार को महत्व मिल रहा था। देवीलाल खेमे के इस ग्रुप ने लालू यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनवाया। मतदान के बाद लालू यादव को सबसे अधिक वोट मिला और वे नेता चुन लिये गये। जनता दल के 122 विधायकों में से लालू यादव को 55, रामसुंदर दास को 51 और रघुनाथ झा को 16 वोट मिले थे।
आम धारणा है कि रघुनाथ झा ने लालू यादव को नापसंद करने वाले विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया और उन वोटों को रामसुंदर दास की ओर जाने से रोक दिया। इसी कारण लालू यादव को सबसे अधिक वोट मिले। जबकि अरुण पांडेय का मानना है कि रघुनाथ झा को चंद्रशेखर का समर्थन प्राप्त था। उन्होंने दिल्ली से पटना एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद ही खुद को सीएम का दावेदार घोषित कर दिया। श्री पांडेय मानते हैं कि यदि रघुनाथ झा नहीं होते तो लालू यादव के समर्थन में विधायकों का और वोट मिलता। इसके साथ ही विधायकों को आधा से अधिक बहुमत लालू यादव के पक्ष में होता।
और अंत में, पोलिटिकल कथा यात्रा के हमारे पाठक भी जानकारी साझा कर सकते हैं। लोगों के नाम सुझा सकते हैं, जिनसे हम संपर्क कर सकें। हम कुछ नया लेकर नहीं आ रहे हैं। जिन घटनाओं की चर्चा करेंगे, वे सभी सार्वजनिक हैं और मौखिक कहानी के रूप में भी मौजूद हैं। दस्तावेजी भी हैं। उन घटनाओं को हम शब्दबद्ध करके पाठकों तक पहुंचाएंगे। बस। धन्यवाद।
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