गरीब रैली से भड़के ‘बाबू साहब’ ने बेच दी थी बस
गरीब रैली से भड़के ‘बाबू साहब’ ने बेच दी थी बस
पोलिटिकल कथा यात्रा – 4
— वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ संसदीय पत्रकार, पटना —
1990 में लालू यादव के सत्ता में आने के बाद बिहार की राजनीतिक जमीन बदलने लगी थी। इसका असर जातीय अहंकार पर पड़ने लगा था। कुछ लोगों ने जातीय अहंकार की गांठ भी बांध ली थी। घटना बांका जिले की है। लालू यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद संभवत: 1993 में गरीब रैली पटना में हुई थी। इसे कई लोगों ने ऐतिहासिक रैली की संज्ञा भी दी थी। उस रैली के लिए विभिन्न जिलों में बसों की जब्ती शुरू हो गयी थी। जब्त बसों को किराया भी दिया जाना था, ताकि बस मालिकों को नुकसान नहीं हो। इसी सिलसिले में बांका जिले में बस जब्त की जा रही थी। वहां एक बस मालिक थे बाबू साहब। उनकी भी बस जब्त की गयी ताकि रैली में शामिले होने वाले कार्यकर्ताओं पटना भेजा जा सके और उन्हें वापस बांका लाया जा सके।
बाबू साहब ने जनता दल के स्थानीय नेताओं से संपर्क किया और उनके कहा कि हमसे 50 हजार रुपये ले लीजिये, लेकिन बस छोड़ दीजिये। लेकिन जनता दल के स्थानीय नेताओं को यह बात स्वीकार नहीं थी। रैली के लिए उन बसों से पार्टी कार्यकर्ताओं को पटना भेजा गया और रैली के बाद उन्हें वापस भेजा गया।
उस रैली की सफलता या विफलता का दावा पार्टी के आधार पर कर सकते हैं। यदि लालू यादव विरोधी हैं तो बस मालिकों के खिलाफ जनता दल कार्यकर्ताओं का उत्पाद भी कह सकते हैं। इस तरह की घटनाएं सुशील मोदी टाइप नेताओं के लिए बड़ा मसाला हो सकता है। इस तरह की बस जब्ती पर भाजपा जैसी पार्टी हर जिले में पत्रकार वार्ता कर सकती है। जनता दल यू जैसी पार्टी के लिए हुंकारने के अनेक मुद्दे हो सकते हैं। ललन सिंह जैसे लोगों के लिए जंगल राज का अविस्मरणीय उदाहरण हो सकता है।
जैसा कि हम कह रहे थे कि रैली के बाद उन्हीं बसों से बांका के कार्यकर्ताओं को वापस भेज दिया गया। लेकिन बस मालिक ने बस वापस लेने से मना कर दिया। रैली में बस के शामिल होने से आहत और खुद को अपमानित महसूस करने वाले बस मालिक ‘बाबू साहब’ ने कहा कि जिन बसों पर रेयान ( कथित नीची जाति के लोग) बैठ गये हैं, उन बसों को हम नहीं रख सकते हैं। और अपने अहंकार की ज्वाला को शांत करने के लिए उन बसों को बेच दिया।
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