बड़े बच्चों को कोविड की वैश्विक स्थिति के बारे में बताएं
– डॉ. राजेश सागर
एम्स नई दिल्ली, सायक्रायट्रिक विभाग के प्रोफेसर और केन्द्रीय मेंटल हेल्थ आर्थोरिटी के सदस्य
कोविड की वजह से लागू बंदी ने जहां छोटे बच्चों को मायूसी और तनाव दिया है वहीं बड़े बच्चे भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं है। सामान्य पढ़ाई एक लंबा दौर देखने के बाद अचानक बच्चों को यह सुनने को मिल रहा है कि अभी उनकी बोर्ड परीक्षाएं नहीं होगीं, कुछ दिनों के लिए सरकार ने परिक्षाएं टाली, इस उम्र के अधिकांश बच्चे ऐसे भी हैं, जो सुनहरे भविष्य के लिए सपने संजो रहे थे। किसी को इंजीनियर बनना है, किसी को डॉक्टर तो कोई प्रतियोगी अन्य राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा है। इन सबके बीच लगातार पढ़ाई का बाधित होना उन्हें घोर मानसिक तनाव दे रहा है, कई बार तो बच्चे यह नहीं समझ पाते कि उनकी गलती क्या, अगले साल परीक्षा के लिए अगर उनकी उम्र निकल गई तो क्या होगा, उन्हें केवल किसी तरह अपने मनमाफिक कैरियर के लिए अपना बेस्ट देना है। ऐसे में अभिभावकों को दोहरी जिम्मेदारी निभानी होगी।
माता पिता को यह बच्चों को बताना होगा कि इस पूरी परिस्थिति के लिए वह जिम्मेदार नहीं है, यह समस्या वैश्विक स्तर की है और दुनिया के अधिकांश देश इस तरह की बंदिशों का सामना कर रहे हैं, जबकि जीवन में कुछ भी सामान्य नहीं है। साल के जिस महीने में अमूमन बोर्ड की परीक्षा के बाद प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित की जाती है अब परीक्षाओं की तिथि बार बार टाली जा रही है। अभिभावक उन्हें स्पष्ट करें कि विश्व किस तरह की महामादी और आपदा का सामना कर रहा है। यदि सभी स्वस्थ्य रहे तो परीक्षाएं फिर कराई जा सकती है। विशेषज्ञ बताते हैं बच्चे किशोरावस्था में बहुत महत्वाकांक्षी होते हैं, उनके दिमाग में कई तरह के ख्याल उमड़ते रहते हैं कैरियर को लेकर प्लालिंग भी किशोरावस्था में ही शुरू कर दी जाती है, ऐसे में लंबे समय का ब्रेक या घर पर रहना उन्हें अपने आप में आत्मग्लानिक से भर रहा है कि वह कब अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रयास करेगें, उनकी यह कुंठा और बेचैनी गुस्से के रूप में बाहर आती है।
अभिभावकों को किशोरावस्था के बच्चे के व्यवहार पर विशेष ध्यान रखना है विशेषकर ऐसे समय में जब कि वह अपने दोस्तों से ही अधिक बात साक्षा करते हैं, अभिभावकों को बच्चों का दोस्त बनकर उनके मन की बात जाननी होगी, न कि डांट डपट कर, इस उम्र में बच्चे तुरंत जवाब देना सीख जाते हैं और माता पिता की हर बात आसानी से नहीं मानते, ऐसे में उनके व्यवहार के अनुरूप ही आप प्रतिक्रिया न दे, सबसे पहले तो अधिक गुस्से में होने पर बच्चों से बात न करें। यह तनाव कम करने की सबसे सही प्रक्रिया है, यदि बच्चा गुस्से के जरिए अपने तनाव को प्रदर्शित कर रहा है तो इस स्थिति को संभालना अधिक चुनौतीपूर्ण नहीं होता, बशर्ते कि अभिभावक बच्चों के गुस्से की प्रतिक्रिया गुस्से से न दें। इस विपरीत कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो किशोरावस्था में बहुत गुमसुम हो जाते हैं एकांत में समय बीताना पसंद करते हैं और माता पिता से भी अधिक बात नहीं करते। इस स्थिति में अभिभावकों को बहुत गंभीरता से बच्चे के मन की बात समझनी होगी, यह भी पता लगाना होगा कि यदि बच्चा अपने मनमाफिक चीजों नहीं कर पा रहा है तो कहीं वह कुछ गलत तो नहीं कर रहा।
ऐसे बच्चों को अधिक से अधिक रचनात्मक चीजों में व्यस्त रखें, घर पर रहकर भी कुछ ऐसे मनोरंजक करें जिसमें बच्चों की भी भूमिका हो। महामारी और इससे होने वाली नुकसान का सामना हर कोई कर रहा है, कोशिश करें कि बच्चों को इस स्थिति से अवगत कराएं और उन्हें नकारात्मकता के बीच भी खुशहाल माहौल दें।
-डॉ. राजेश सागर एम्स नई दिल्ली, सायक्रायट्रिक विभाग के प्रोफेसर और केन्द्रीय मेंटल हेल्थ आर्थोरिटी के सदस्य हैं
Related News
सहकारी समितियां भी बदल सकती हैं वोट का समीकरण
संपन्नता की राह सहकारिता ——————– सहकारी समितियां भी बदल सकती हैं वोट का समीकरण अरविंदRead More
भाई-बहिन के स्नेह का प्रतीक रक्षाबंधन का इतिहास
भाई-बहिन के स्नेह का प्रतीक है रक्षाबंधन का पर्व रमेश सर्राफ धमोरा रक्षाबन्धन का पर्व भाई-बहिनRead More
Comments are Closed