और मंत्री जी नंगे ‘अवतरित’ हो गये… देह यात्रा के बाद राष्ट्रपति भी बने
– बिहार-झारखंड : राजनेताओं की रंगरेलियां 4 –
वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ पत्रकार, पटना
बिहार विधान मंडल की पूर्व सदस्य रमणिका गुप्ता की आत्मकथा भाषा और शैली के रूप में बेजोड़ है। देह के साथ राजनीतिक घटना और परिस्थिति को जोड़कर रखने के अद्भुत शिल्प की गवाह है पुस्तक। वे जयपुर की एक घटना का जिक्र करते हुए कहती हैं कि देहयात्रा करने वाला व्यक्ति बाद में देश का राष्ट्रपति भी बन गया था।
घटना 1962-64 के बीच की है। कांग्रेस का जयपुर सम्मेलन हुआ था। वे बीपीसीसी की तरफ से गयी थीं। एक केंद्रीय मंत्री थे। रमणिका अपने के लिए बोलने का समय मांगने के लिए पर्ची देने मंच पर गयी थीं। उस मंत्री ने उन्हें मंच पर ही बैठने के लिए बुला लिया। इससे इनका कद बढ़ गया और महत्वाकांक्षा भी। लंच ब्रेक में मंत्री ने उन्हें रथ पर बैठाकर अपने साथ ले गये, जहां वे ठहरे हुए थे। रास्ते भर वे रमणिका की तारीफ करते रहे। वे लिखती हैं कि रेस्ट हाउस पहुंचने पर वे मुझे अपने साथ कमरे में ले गये और बैठने के लिए कहकर बाथरूम चले गये। वे लिखती है कि मैं सोच रही थी कि शायद बाहर आकर वे तुरंत खाना-वाना मंगवायेंगे। बड़ी जोर से भूख लगी थी। रमणिका के अनुसार, मैं मंत्री के आने के इंतजार में ही थी कि वे पूरी तरह नंगे होकर कमरे में आ गये। मंत्रियों के कमरे में दरवाजे लुढ़के भी हों तो कोई खोलने की हिम्मत नहीं करता, खुले भी हों तो कोई झांकने की जुर्रत नहीं करता। सभी मंत्रियों की आदतों से परिचित होते हैं। किताब के अनुसार, मैं न बाहर जा सकती थी, न बैठी रह सकती थी। मैं एकाएक उठ खड़ी हुई, हतप्रभ सी।
इस दौरान मंत्री ने कहा कि तुम्हारा मुख्यमंत्री तो उस नर्स को भेजता है मेरे पास, अपनी राजनीति ठीक करने के लिए। तुम भी क्या उन्हीं की तरफ से कुछ कहना चाहती हो। इस दौरान थोड़ी देर बातचीत के बाद मंत्री जी कालीन पर लेट गये। वे कहती हैं कि जो बीता, वह तो बीता ही, पर बड़ी वितृष्णा हुई मुझे। वे लिखती हैं कि उस विशाल महल जैसे भवन में और कोई नहीं था। मेरा विरोध किसी काम का नहीं हो सकता था। रमणिका के अनुसार, मंत्री जिस नर्स की बात कर रहे थे, वह बाद में एमएलसी बन गयी थीं और मंत्री जी बाद में राष्ट्रपति भी बने थे। वह आगे लिखती हैं कि कुछ अपवाद को छोड़कर दक्षिण के नेता प्राय: सेक्स के अधिक भूखे होते हैं।
एक अन्य प्रसंग में वह लिखती हैं कि राजनीति में समझौता या व्यभिचार ज्यादा चलता है और बलात्कार कम। कभी-कभी समझौते की परिस्थितियां बदलने पर अपवाद स्वरूप बलात्कार का रूप ले लेती हैं। उन्होंने लिखा है कि मैंने स्वयं कई महिलाओं को आमंत्रण देते देखा है। उनके पतियों को बाहर पहरे पर बैठे देखा है। ऐसी स्थिति में यह व्यापार बन जाता है, जिसमें लाभ-हानि दोनों होते हैं। पति पत्नी के विकास की सीढ़ी बनने का रोल अदा करता है। वह अपना स्वार्थ पत्नी के माध्यम से सिद्ध करता है। (जारी)
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