आग सुलगाकर चले गये थे मंत्रीजी, बाद में बॉडीगार्ड भी आया

आग सुलगाकर चले गये थे मंत्रीजी
‘दमकल’ देख भड़क गयी रमणिका
— बिहार-झारखंड: राजनेताओं की रंगरेलियां 6 —
वीरेंद्र यादव, वरिष्‍ठ पत्रकार, पटना
बिहार विधान मंडल की पूर्व सदस्‍य और लेखिका रमणिका गुप्‍ता अपनी आत्‍मकथा में एक सोशलिस्‍ट नेता और तत्‍कालीन मंत्री के कार्यव्‍यवहार और चरित्र को लेकर काफी गंभीर दिखती हैं। उनके मन में नेताजी के प्रति आदर भाव था। रमणिका को लगता था कि मंत्री के प्रति समर्पण करके उनके ‘ऋण’ से मुक्‍त हुआ जा सकता है।
एक घटना का जिक्र करते हुए लिखती हैं कि हजारीबाग की सभा में रमणिका गुप्‍ता का भाषण काफी जोरदार हुआ था। उस सभा में मंत्री जी भी थे। सभा के बाद मंत्रीजी ने रमणिका को कहा कि अभी हाईलेवल मीटिंग होनी है। मैं रात में आऊंगा। दरवाजा खुला रखना, ताकि दस्‍तक नहीं देनी पड़ी। दोनों हजारीबाग सर्किट हाउस में ठहरे हुए थे। रात को मंत्री जी आये। उन्‍होंने देह के साथ खेला और फिर चले गये। थोड़ी देर बाद मंत्री जी का बॉडीगार्ड आया, जो उनका रिश्‍तेदार भी था और उनका कार्यक्रम बनाया करता था। उसे देखकर रमणिका ने पूछा कि साहब कुछ भूल गये हैं क्‍या। उनकी बातों को अनसुना करके वह बिस्‍तर की ओर बढ़ा और कहा कि साहब तो जगा के चले जाते हैं, बुझाने के लिए मैं ही आता हूं। इतना सुनते ही रमणिका गुस्‍से में आ गयीं। मंत्रीजी का व्‍यवहार और बॉडीगार्ड को भेजना अपमानजनक महसूस होने लगा। यह सब उन्‍हें स्‍टेट्स के खिलाफ लगने लगा। उस समय की मन:स्थिति को लेखिका में काफी रोचक ढंग से लिखा है। पुस्‍तक के अनुसार, बॉडीगार्ड को बाहर धकेलते हुए उन्‍होंने कहा कि अपने साहब से कह देना मुझसे आइंदा मिलने की कोशिश न करें। मुझे सम्‍मान चाहिए था और चाहिए थी मैत्री, आदर। कोई आग बुझाने वाला दमकल नहीं। इस घटना के करीब आधे घंटे बाद मंत्रीजी का फोन आया तो रमणिका ने चोगा उतारकर नीचे रख दिया।
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