डमी पार्टियों पर चुनाव आयोग का ब्रेक
डम्मी पार्टियों का दौर
वीरेंद्र यादव, पटना।
चुनाव में उम्मीदवार अपने खर्चे को छुपाने के लिए डम्मी उम्मीदवार खड़ा किया करते थे। चुनाव आयोग की सख्ती ने डम्मी उम्मीदवार पर अंकुश लगाया है। कई बार डम्मी उम्मीदवार से मेन उम्मीदवार चुनाव हार गये। इससे डम्मी उम्मीदवार का दौर समाप्त् हो गया है। अब डम्मी पार्टी का दौर शुरू हो गया है। अब बड़ी पार्टियां अपने जातीय आधार और कुनबे को विस्तार देने के लिए डम्मी पार्टियों को सपोर्ट कर रही हैं। ये बड़ी पार्टियों छोटी पार्टियों को टिकट के साथ उम्मीदवार भी देती हैं। विधान सभा चुनाव में भाजपा ने मुकेश सहनी की वीआईपी को 11 टिकट के साथ 9 उम्मीदवार भी दिये थे। मुकेश सहनी खुद चुनाव हार गये थे, लेकिन भाजपा के चार उम्मीदवार वीआईपी के टिकट पर चुनाव जीत गये थे। जीतनराम मांझी की हम जदूय की डम्मी पार्टी है। नीतीश ने अपने कोटे की सात सीट हम को दे दिया था। इन सात सीटों में से जीतनराम मांझी ने अपने दामाद और समधिन के अलावा चार अन्य लोगों को भी टिकट दिया। पिछले लोकसभा चुनाव में राजद ने वीआईपी और हम को टिकट के साथ उम्मीदवार भी दे दिये थे। वर्तमान विधान सभा में डम्मी पार्टियों के विधायकों की संख्या सरकार के भविष्य से जुड़ी हुई है। इस कारण मुकेश सहनी और जीतनराम मांझी रंग बदलते हुए दिखते हैं, लेकिन चाप चढा़ने के बाद ढीले भी पड़ जाते हैं।
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