सुशील मोदी की विदाई के बाद कौन ?
वीरेंद्र यादव की पोलिटिकल डायरी
सुशील मोदी। 24 वर्षों से बिहार भाजपा के निर्विवाद नेता। लालू यादव विरोध की आड़ में भाजपा में सवर्ण राजनीति को मिट्टी में मिलाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। सुशील मोदी ने लालू विरोध का ऐसा ‘अफीम’ सवर्णों को पिलाया कि भाजपा में सवर्ण हाशिये पर धकेल दिये गये और वे जयकारा लगाते रहे। ठीक वैसे ही, जैसे इस बार के चुनाव में चिराग पासवान ने भाजपा समर्थन का ‘भांग’ सवर्णों को खिलाकर नीतीश कुमार की मिट्टी पलीद कर दी।
पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी राज्यसभा के लिए चुन लिये हैं। उन्हें जीत का सर्टिफिकेट भी मिल गया। एकाध दिन वे राज्यसभा की शपथ ले लेंगे। संवैधानिक प्रावधान के अनुसार, कोई भी व्यक्ति 14 दिनों तक विधान मंडल और संसद का सदस्य एक साथ रह सकते हैं। लेकिन 14 दिनों के अंदर एक सदन से इस्तीफा देना होगा। श्री मोदी राज्यसभा की शपथ लेने से पहले भी विधान परिषद से इस्तीफा दे सकते हैं। राज्यसभा की शपथ लेने के साथ श्री मोदी बिहार से विधान मंडल और संदन के चारों सदनों का सदस्य होने का श्रेय हासिल कर लेंगे। इससे पहले लालू यादव भी चारों सदनों का सदस्य रह चुके हैं।
सुशील मोदी के दिल्ली प्रस्थान के बाद बिहार भाजपा में जातीय वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो सकती है। लेकिन फिलहाल बिहार भाजपा के किसी नेता में इतनी कूबत नहीं है, जो सुशील मोदी की जगह ले सकें। सत्ता और संगठन दोनों जगहों पर यही हाल है। अब तक बिहार भाजपा के नेता सुशील मोदी के ‘गमला’ में उगते और बिलाते रहे। विधान सभा चुनाव के बाद पहली बार भाजपा विधायक दल को नये सिरे से गठित करने का प्रयास शुरू हुआ। भाजपा के तीन बड़े नेता सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार को सरकार में जगह नहीं मिली। श्री मोदी ने दिल्ली पहुंच कर अपने लिए नयी राह की संभावना पैदा कर ली है, लेकिन नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार अधर में लटके हुए हैं। सरकार में भाजपा की ओर से यादव नेता के रूप में रामसूरत राय को जगह दी गयी तो प्रेम कुमार की जगह रेणु देवी को उपमुख्यमंत्री बनाकर अतिपिछड़ा का नया फेस खड़ा किया गया। भूमिहारों को संतुष्ट करने के लिए विजय कुमार सिन्हा को विधान सभा अध्यक्ष बनाया गया। विधान मंडल दल का नेता सुशील मोदी की जगह तार किशोर गुप्ता को बनाकर बनिया आधार वोट को भी साधने का प्रयास किया गया है।
सरकार में भाजपा बड़ी पार्टी है और उससे आधी ताकत वाली पार्टी के मुखिया नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं। अब नया नारा गाढ़ा जायेगा- भाजपा का राज, जदयू को ताज। और भाजपा यह संकेत देने लगी है कि विधायक हमारा और राज तुम्हारा नहीं चलेगा। अब भाजपा सरकार और जदयू सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाला कोई नहीं होगा। उपमुख्यमंत्री तारकिशोर गुप्ता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने किस ताकत के साथ पार्टीगत हित की बात को रख पायेंगे, यह समय बतायेगा। लेकिन यह बात भी तय है कि बराबरी के स्तर पर बात नहीं कर पायेंगे। दूसरा पक्ष है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार को पहले की तरजीह भी नहीं दे पायेंगे। वैसी स्थिति में सत्ता के नये केंद्र भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव बनकर उभर रहे हैं। सरकार के चारों दलों के बीच समन्वयक की भूमिका में वही होंगे। बड़ी पार्टी के विधानमंडल दल के नेता तारकिशोर गुप्ता हैं। इसलिए नीतीश कुमार उनकी अनदेखी नहीं कर सकते हैं।
नयी सरकार की शपथ की शाम शपथ ग्रहण के बाद राजभवन के परिसर में नाश्ते का प्रबंध था। नाश्ते के बाद भीड़ छंटने लगी थी। अमित शाह और जेपी नड्डा प्रस्थान कर चुके थे। भूपेंद्र यादव और नित्यानंद राय भी प्रस्थान करने की तैयारी में थे। हम इन दोनों से बातचीत कर रहे थे कि अचानक भूपेंद्र यादव ने किसी कार्यकर्ता से पूछा कि तारकिशोर जी किधर हैं। थोड़ी दूर पर उपमुख्यमंत्री भी अपनी गाड़ी में बैठने की तैयारी कर रहे थे। तब तक भूपेंद्र यादव की नजर उपमुख्यमंत्री पर पड़ी। उन्होंने आवाज देकर उपमुख्यमंत्री को बुलाया और तीनों (भूपेंद्र यादव, नित्यानंद राय व तारकिशोर गुप्ता) एक ही गाड़ी से प्रस्थान कर गये। मुख्यमंत्री किधर हैं, इसकी चिंता न भाजपा को थी और न जदयू को।
— निवेदन —
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