मुख्‍यमंत्री का ‘गुस्‍सा’ विधान सभा की कार्यवाही से ‘डिलीट

वीरेंद्र यादव की पोलिटिकल डायरी 

राजनीतिक गलियारे में माना जाता है कि मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार अपने बयानों में भाषा की मर्यादा बनाये रखते हैं। संयम से काम लेते हैं। लेकिन पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान अपने भाषणों में मुख्‍यमंत्री ने कई बार भाषा की मर्यादा लांघ दी। गुस्‍सा भी सातवें आसमान पर दिखा। लेकिन गुस्‍सा और मर्यादा की सीमा लांघने का आवेग विधान सभा की कार्यवाही तक पहुंच गया। आवेग इतना अमर्यादित और असंसदीय था कि उनके वक्‍तव्‍य को सदन की कार्यवाही से हटाना पड़ा। हालांकि मुख्‍यमंत्री का गुस्‍सा का वीडियो खूब देखा गया। वायरल वीडियो के स्‍क्रीप्‍ट को कार्यवाही से हटाने का क्‍या औचित्‍य रहा होगा, यह विधान सभा सचिवालय ही समझ सकता है।
17वीं विधान सभा की पहली बैठक के आखिरी दिन 27 नवंबर को राज्‍यपाल के अभिभाषण पर मुख्‍यमंत्री को सरकार का पक्ष रखना था। इस दौरान सदन की कार्यवाही में मुख्‍यमंत्री भी मौजूद थे। अपने भाषण के दौरान नेता प्रतिपक्ष तेजस्‍वी यादव ने मुख्‍यमंत्री पर कई आरोप लगाये, जिसमें कॉपीराइट कानून के तहत जुर्माना भरने का आरोप था। इसके अलावा मुख्‍यमंत्री पर हत्‍या के एक मामले में आरोपी होने और सत्‍ता का इस्‍तेमाल करते हुए मामले को रफादफा करने की बात कही गयी थी। नेता प्रतिपक्ष अपने भाषण में इन बातों पर फोकस करते रहे। इससे परेशान मुख्‍यमंत्री ने अपना आपा खो दिया और अचानक ही कार्यवाही के दौरान बिफर पड़े। मुख्‍यमंत्री ने तेजस्‍वी यादव पर झूठ बोलेने और मुकदमा करने की बात भी कही। 35-40 सेकेंड के वीडियो में नीतीश कुमार ने अपने 35-40 वर्षों के राजनीतिक जीवन की संचित मर्यादा को तार-तार कर दिया। मुख्‍यमंत्री के बयान के बाद सत्‍ता पक्ष के लोग वेल में आ गये और फिर सदन की कार्यवाही कुछ देर के लिए स्‍थगित कर दी गयी।
विधान सभा सचिवालय हर दिन सदन की कार्यवाही को असंपादित कॉपी अपनी वेबसाइट पर अपलोड करता है। 27 नवंबर की कार्यवाही को भी अपलोड किया गया। हम उस दिन की कार्यवाही को पढ़ने के लिए कॉपी देख रहे थे। इस कॉपी यानी कार्यवाही की लिखित रिपोर्ट में मुख्‍यमंत्री के बयान को हटा दिया गया है। मुख्‍यमंत्री के वक्‍तव्‍य को हटाने का मतलब यह है कि मुख्‍यमंत्री का बयान असंसदीय और अमर्यादित था, जिसे कार्यवाही से हटा दिया गया।
विधान सभा की कार्यवाही के दौरान सदस्‍य कई बार असंसदीय भाषा का इस्‍तेमाल करते हैं। ऐसे शब्‍द या भाषा को कार्यवाही से हटाने का प्रावधान है। यह आमतौर होता रहा है। लेकिन सदन के नेता का बयान कार्यवाही से हटाने का फैसला ऐति‍हासिक है। बिहार के संसदीय इतिहास में शायद पहली बार मुख्‍यमंत्री के बयान को कार्यवाही से हटाने का निर्णय लिया गया है। कार्यवाही के किसी भी हिस्‍से को हटाने का अधिकार विधान सभा अध्‍यक्ष का विशेषाधिकार है। उस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। ले‍किन मुख्‍यमंत्री का वक्‍तव्‍य कार्यवाही से हटाना पड़े, यह जरूर आश्‍चर्यजनक है।
विधान सभा की कार्यवाही के दौरान मुख्‍यमंत्री के वक्‍तव्‍य के संबंध में वरिष्‍ठ पत्रकार अरुण कुमार पांडेय कहते हैं कि मुख्‍यमंत्री ने अपना संयम और धैर्य खो दिया था। यह उनको शोभा नहीं देता है। नीतीश कुमार को अपने बयान पर आत्‍ममंथन करना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्‍वी यादव को भी सदन के नेता के प्रति शब्‍दों के चयन में संसदीय मर्यादा का ख्‍याल रखना चाहिए। यही़ स्‍वस्‍थ लोक‍तांत्रिक व्‍यवस्‍था की मर्यादा है।
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