राजपूत व भूमिहार की जमीन पर ‘बांझ’ हो गया जदयू
वीरेंद्र यादव.पटना। बिहार विधान सभा के चुनाव परिणाम के विश्लेषण एक महत्वपूर्ण तथ्य यह सामने आया है कि 15 जिलों में जदयू का खाता भी नहीं खुला। मगध, पटना और सारण प्रमंडल की 93 सीटों में से जदयू सिर्फ 7 सीट जीतने में कामयाब हुआ। उन सात सीटों में 5 पांच सीट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा की हैं। जिन 15 जिलों में जदयू का खाता नहीं खुला, उनमें किशनगंज, सीवान, सारण, बेगूसराय, लखीसराय, पटना, भोजपुर, बक्सर, कैमूर, रोहतास, अरवल, जहानाबाद, औरंगाबाद, गया और नवादा जिले शामिल हैं। इन पंद्रह जिलों में से किशनगंज को छोड़ दें तो शेष जिलों की सामाजिक और राजनीतिक बनावट में राजपूत व भूमिहार का प्रभाव माना जाता है। इसका आशय यह है कि विधान सभा चुनाव में राजपूत व भूमिहारों ने जदयू का साथ छोड़ दिया। इसके साथ सीटों की दौड़ में जदयू पीछे छूट गया। यही कारण रहा कि राजपूत और भूमिहार की जमीन पर जदयू बांझ हो गया। तेजस्वी यादव के ‘बाबू साहब’ वाले बयान का इन इलाकों में काफी सकारात्मक असर रहा, लेकिन तेजस्वी ने खुद बाद में इस बयान से मुंह मोड़ लिया। इसके बाद गैरबनिया पिछड़ी जाति के वोटरों ने तेजस्वी का साथ छोड़ दिया। परिणाम यह हुआ कि सत्ता तेजस्वी यादव के दरवाजे पर आकर लौट गयी।
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कोईरी-कुर्मी न्याय के लिए मेवालाल को बनाया था शिक्षा मंत्री
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ‘कफन में पॉकेट’ वाला मुहावरा खूब सुनाते हैं। इस बार ऐसे ही पॉकेटधारी को शिक्षा विभाग का जिम्मा सौंप दिया। ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार को मेवालाल चौधरी की ‘विशिष्ट योग्यता’ की जानकारी नहीं थी। दरसअल उनकी इसी विशिष्ट योग्यता को जमीन पर उतारने के लिए उन्हें शिक्षा विभाग सौंपा गया था। उन पर आर्थिक अनियमितता का आरोप रहा है। इस गड़बड़ी में कुलपति के रूप में उन्होंने जमकर कोईरी-कुर्मी न्याय किया था। विभिन्न पदों पर बहाली में कोईरी और कुर्मी जाति के लोगों की जमकर बहाली की। इन जातियों के लिए अघोषित आरक्षण तय कर दिया गया था। नयी जिम्मेवारी के साथ उन्हें उच्च शिक्षा में होने वाली बहाली में ‘कोईरी-कुर्मी न्याय’ को धरातल पर उतारने का जिम्मा दिया गया था। इसलिए उनकी ‘पॉकेट’ सरकार को नजर नहीं आयी। दो दिनों के हंगामे के बाद भी मुख्यमंत्री ने पदभार संभालने का मौका दिया, लेकिन केंद्र के हस्तक्षेप के बाद राज्यपाल फागू चौहान ने मेवालाल को बर्खास्त कर दिया। राज्यपाल ने सम्मानजनक ढंग से इस्तीफा देने का समय भी नहीं दिया। मुख्यमंत्री ने मेवालाल को अपने आवास पर बर्खास्तगी की सूचना देने के लिए बुलाया था, इस्तीफा देने के लिए नहीं। राजभवन ने मेवालाल की बर्खास्तगी और नये मंत्री को विभाग का प्रभार सौंपने का आदेश एक ही पत्र में जारी किया।
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