बिहार की राजनीति को समझना आसान नहीं

निशिकांत ठाकुर
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में एन डी ए का फिर से सरकार बना लेना, वहां के मतदाताओं का एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक निर्णय है । इस नए सरकार के गठन के लिए सारा श्रेय एन डी ए और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है । वह इसलिए कि चौथी बार किसी भी कीमत पर नीतीश कुमार के लिए संभव नहीं था कि वह फिर से चुनाव जीतकर सरकार बना ले । जनता उनसे खीझ चुकी थी और नीतीश जी स्वयं जनता से चिढ़ चुके थे । उनका चिढ़ना स्पष्ट रूप से चुनावी सभाओं में देखा जा सकता था, लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री और मतदाताओं के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए। चूंकि वह मजे हुए राजनीतिज्ञ है इसलिए वह यही करेंगे और जानता के मन में अपने प्रति विश्वास का भाव पैदा करेंगे ।जमीन पर जो भी लोग थे, चीजों को देख समझ रहे थे, उनको यह पता था कि इस बार का चुनाव कांटे की टक्कर का लड़ा गया है इसलिए एक एक कदम संभाल कर रखना नीतीश कुमार जी के लिए अनिवार्य हो गया था । हां, यह बात भी सच है कि बिहार में विकास की जो हवा बही है, उसमे नीतीश की भी सहभागिता है। वहां की जनता इस बात को बेहतर जानती है।
चौथी बार जो ताज जानता ने उनके माथे पर रखा है निश्चित रूप से वह कांटो से भरा हुआ है। क्योंकि इस चुनाव में जितने भी आरोप प्रत्यारोप उनके ऊपर लगे उस सबका निदान उनको करना ही पड़ेगा । क्योंकि जनता ने उन्हें इसी उम्मीद से जिताया है कि इस पंचवर्षीय काल में वह प्रतिवर्ष बाढ़ की विभीषिका से होने वाली असामयिक मौत और प्रति वर्ष झेलने वाले कष्टों का निवारण करेंगे । उत्तरी बिहार में बांध के भीतर रहने वालों लोगों को प्रतिवर्ष बाढ़ की विभीषिका के दारुण दुख को जो वह झेलते हैं, इसको केवल वहीं महसूस कर सकता है जिन्होंने उस कष्ट को स्वयं झेला हो । उनके लिए विकास के नाम पर उस चमचमाती सड़क से क्या लेना देना जिसपर सर्रसर्र बड़ी बड़ी गाडियां निकल जाती हो । उस एल ई डी बल्ब का ऐसे लोगों के लिए क्या उपयोग जिसके जीवन में हर क्षण अथाह बाढ़ के पानी में डूब जाने का भय सता रहा हो । उन सुविधाओं और विकास से उन हजारों नहीं लाखों बेरोजगारों को क्या लेना देना जों भूख से बिलबिलाते अपने बच्चे और परिवार को भगवान भरोसे छोड़कर पलायन करके अपने ही देश में प्रवासी पक्षी की तरह प्रवासी मजदूर बनने के लिए विवश होते है । यह स्थिति आजादी के बाद से अब तक है इसका निदान कैसे हो यह तो मुश्किल है, लेकिन लाखों लोगों के जीवन की रक्षा करना भी तो सरकार का ही दायित्व है । यदि सरकार ने अब तक ऐसा नहीं किया है तो इसमें गलती किसकी है ? निश्चित रूप से अब तक जो भी सरकार बिहार की रही उनमें से किसी ने भी इस और ध्यान नहीं दिया और उस क्षेत्र के लोग डूब से तो मरते ही है , लेकिन इसके साथ ही कई बीमारियों से प्रतिवर्ष हजारों लोग मौत का सामना करते हैं।
ऐसा नहीं कि पंद्रह वर्षो से मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार जी को इन बातों की जानकारी नहीं हो । उन्हें बिहार के हर जिले और हर गांव की जानकारी रहती है, लेकिन पता नहीं क्यों इतनी बड़ी आबादी और इतनी समस्याओं को देखकर वह आंखे मूंद लेते हैं ? इसकारण उन्हें कई क्षेत्रों में सार्वजनिक रूप से विरोध का भी सामना करना पड़ा।अब जबकि वह फिर से नए रूप से सरकार का गठन करेंगे, तो इस पंचवर्षीय काल में उन्हें इन सब बातों का निराकरण करना ही होगा । केवल अच्छी सड़क और बिजली से पेट की ज्वाला शांत होने वाली नहीं है , उन्हें जीने के लिए अपने परिवार के भरण पोषण के लिए रोजगार चाहिए । यह अच्छा है कि इस बार नई सरकार के एजेंडे में 19 लाख बेरोजगारों को रोजगार देने का फैसला लिया है । ऐसी ढेरों समस्याएं बिहार में है जिसे दूर करने की जब तक चाह सरकार में नहीं होगी , बाढ़, पलायन से होने वाली समस्या का समाधान होने वाला नहीं है । चूंकि बिहार विधानसभा के इस चुनाव का नेतृत्व प्रधानमंत्री ने स्वयं किया था इसलिए उनका ध्यान इस ओर विशेष रूप से होना चाहिए अन्यथा हर बार चमचमाती सड़क और बिजली के बल पर चुनाव जीता नहीं जा सकता क्योंकि कोई नहीं जानता कि इस बिहार में कब कोई लोकनायक जयप्रकाश नारायण प्रकट हो जाए जो भारत का ही नक्शा ही बदल दे। इस राज्य का दुर्भाग्य ही यहीं रहा की लोकनायक के बाद जनता ने जिसपर भी भरोसा किया उसने उसके लिए रोटी और रोजगार के लिए कोई प्रयास नहीं किया और इसीलिए वहां के लोग देश भर में उपेक्षित और अपमानित होते रहते हैं ।
अब रही उस सर्वे की बात, जिसमें अनाश्यक प्रलाप किया गया था कि वर्तमान सरकार की हार हो रही है और नई सरकार बनने जा रही है । इलेकट्रॉनिक मीडिया का स्तर इतना गिर जाएगा इसकी कोई कभी कल्पना नहीं कर सकता । उन्हें जमीन पर जाकर चीजों को देखना समझना चाहिए। बिहार जैसे राजनीतिक रूप से उर्वरक प्रदेश की राजनीतिक स्थिति का आकलन एसी कमरों में बैठकर नहीं किया जा सकता है। उसके लिए बिहार की माटी और पानी से सरोकार रखना होगा।
मैं व्यक्तिगत रूप रूप से अपनी बात कहता हूं कि मैं लगभग 42 वर्षों तक प्रिंट मीडिया से जुड़ा रहा और सच मे मेरे पास उसके अतिरिक्त कोई कार्य था ही नहीं और ना ही मै कोई और काम जानता हूं । मेरे कार्य काल में भी इस प्रकार के योजनाबद्ध सर्वे तथा कथित ज्ञानीजन लाते थे और कई तरह के आग्रह करते थे कि इसे छाप दिया जाय , लेकिन प्रिंट मीडिया की एक विश्वसनीयता होती है और मुझे फक्र है कि मैंने देश के जाने माने पत्रकार और दैनिक जागरण के चेयरमैन श्री नरेन्द्र मोहन जी के साथ वर्षों कार्य किया । वह हमेशा कहा करते थे कि अख़बार की विश्वसनीयता के साथ कोई समझौता नहीं करना । लेकिन, जब आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का हाल देखता हूं तो झटका लगता है । आज से लगभग पच्चीस वर्ष पहले एक कार्यक्रम के दौरान जब टेलीविजन आया ही था एक वक्ता ने कहा था कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्रिंट मीडिया को खत्म कर देगा , लेकिन इसी विश्वास के संकट के कारण प्रिंट मीडिया लगातार बढ़ता रहा और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपनी विश्वसनीयता खोता गया । मैं बात कर रहा हूं बिहार विधानसभा चुनाव के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जो झूठ फैलाया उससे उसकी विश्वसनीयता लगभग शून्य हो गई है । जिस प्रकार उसने अपना स्तर गिरा लिया है उससे तो यही लगता है कि उसका उदय जिस रफ्तार से हुआ था उसी रफ्तार से वह डूब भी जाएगा । वैसे तो उस स्थान पर एक से एक दिग्गज पत्रकार बैठे है , लेकिन यदि वह अपनी विश्वसनीयता को खोते रहेंगे जैसा की बिहार के मामले में किया तो वह दिन दूर नहीं जब उसका अंत होने में समय नहीं लगेगा । यह केवल मेरे निज के अनुभव की एक सलाह है । मानना ना मानना और तर्क कुतर्क करना आप पाठको का काम है ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है )।



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