राजपूत-भूमिहार डोमिनेटेड सीट चाहते हैं चिराग लेकिन भाजपा को झुलसना स्वीकार नहीं
वीरेंद्र यादव, पटना
भाजपा और लोजपा के बीच ‘खटराग’ अभी फाइनल राउंड में नहीं पहुंचा है। इसलिए जदयू भी मुंह खोलने से बच रहा है। भाजपा के दिल्ली मुख्यालय से प्राप्त समाचार के अनुसार, चिराग पासवान राजपूत और भूमिहार डोमिनेटेड सीट चाहते हैं। इसमें सारण, सीवान, बेगूसराय, मुजफ्फरपुर और नवादा जिले की सीटें शामिल हैं। उधर, भाजपा अपने आधार वाली सीटों को लोजपा के लिए छोड़ने को तैयार नहीं है। चिराग पासवान का मानना है कि अभी जिन सीटों पर लड़ने का प्रस्ताव उनको दिया जा रहा है, वे सीटें यादव-मुसलमान डोमिनेटेड हैं। ऐसी सीटों पर लोजपा को हार की आशंका सत्ता रही है। उसे लगता है कि उसके यादव-मुसलमान उम्मीदवार जीत नहीं पाएंगे।
इसका आर्थिक पक्ष भी है। लोजपा को राजपूत व भूमिहार कंडिडेट ज्यादा पसंद हैं। इन जातियों के पास आर्थिक संसाधन के साथ जाति की बड़ी ताकत होती है। ऐसे उम्मीदवार पार्टी के फंड मजबूत करने के साथ वोटर को भी डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) का लाभ पहुंचाते हैं। जबकि अन्य जातियों के उम्मीदवार इतना लाभ पार्टी को नहीं पहुंचाते हैं। उधर भाजपा भी अपना आधार वोट भूमिहार व राजपूतों को मानती है। इसलिए ऐसी सीटें छोड़ने को भाजपा तैयार नहीं है। इसके साथ ही भाजपा जो सीट लोजपा के लिए छोड़ेगी, वह जदयू को स्वीकार हो, जरूरी नहीं है। क्योंकि लोजपा-भाजपा वार्ता में जदयू साझीदार नहीं है।
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के साथ चिराग पासवान सीधे संवाद कर रहे हैं। यदि केंद्रीय नेतृत्व चिराग की मंशा के अनुरूप राजपूत-भूमिहार डोमिनेटेड सीट लोजपा के लिए छोड़ने के लिए तैयार हो भी जाता है तो इसका असर भाजपा के पॉरफारमेंस पर पड़ेगा। 2015 का अनुभव बताता है कि लोजपा उम्मीदवारों के पास वोट शिफ्ट कराने और वोटरों को मतदान केंद्र तक पहुंचाने की रणनीति नहीं होती है। पार्टी का कोई संगठन भी नहीं है। इसलिए प्रकारांतर में इसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ता है। लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ लोजपा भले बड़ी सफलता हासिल करने में सफल रहती है। लेकिन विधान सभा में मुंह की खाती है। 2010 और 2015 में बड़े दलों के गठबंधन के बाद भी लोजपा क्रमश: 3 और 2 सीटों सीमट गयी थी।
इस चुनाव में भाजपा चिराग के लौ में झुलसना नहीं चाहती है और सहयोगी जदयू के साथ विश्वास का रिश्ता बनाये रखना चाहती है। उधर जदयू के सहयोगी पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ने से कोई परहेज नहीं है। अपने परिजनों के अलावा उनकी कोई मांग भी नहीं है। एनडीए में खींचतान के बीच लोजपा को मनाने का हरसंभव प्रयास जारी है। यदि भाजपा चिराग पासवान के सामने झुक जाती है तो जदयू के नीतीश कुमार के सामने भी उसे घुटने टेकने पड़ सकते हैं। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।
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