इस बार कई कारणों से ऐतिहासिक है चुनाव
बिहार की बेहतरी को अगले पांच साल का एजेंडा तय करेंगे वोटर
अरुण अशेष, पटना। निर्वाचन आयोग ने बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। बिहार में 28 अक्टूबर, तीन नवंबर तथा सात नवंबर को तीन चरणों में चुनाव होगा। 10 नवंबर को परिणाम आ जाएंगे। बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही पांच साल बाद फिर वोटरों की बारी आई है। इस समय वे राज्य की बेहतरी के लिए अगले पांच साल का एजेंडा तय कर सकते हैं। बीते पांच साल के कामकाज का मूल्यांकन फैसला करने में मदद करेगी। अतीत के कार्यों का मूल्यांकन और भविष्य के एजेंडा के आधार पर जो मतदान होगा, उससे राज्य की तकदीर संवरेगी। बहुत कुछ अच्छा हुआ है, उससे भी कुछ अधिक अच्छा हो सकता है। इस उम्मीद के साथ मतदान हो तो हम अच्छे जन प्रतिनिधि चुनेंगे। निर्णय लेने की यह प्रक्रिया जवाबदेह सरकार के गठन में मदद करेगी।
राज्य के लिए यह चुनाव कई कारणों से ऐतिहासिक है। कोरोना जैसी महामारी से विश्व समुदाय का पहली बार मुकाबला हो रहा है। दुनिया के 40 से अधिक देशों में कोरोना के चलते चुनाव टल रहा है। इनमें कई देश ऐसे हैं जिनकी आबादी बिहार से कम है। इस संकट के दौर में मतदान का यह प्रयोग देश में और अपने प्रदेश में हो रहा है। बिहार में ठीक ढंग से चुनाव संपन्न हो गया तो यह अपने आप में राज्य के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। यहां के वोटर राजनीतिक तौर पर पहले से परिपक्व हैं। इस चुनाव में उन्हें और अधिक परिपक्वता का परिचय देना होगा। बिना भीड़ जुटाए जनता तक अपनी बात पहुंचाना राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए भी चुनौती होगी। अच्छी बात यह है कि राज्य के आम लोगों ने कोरोना से बचाव के लिए जारी केंद्र और राज्य सरकार के दिशा निर्देश का पालन सहज भाव से किया है। संक्रमण की दर में कमी इसी परहेज का नतीजा है। मुश्किल नहीं है। लोग चुनाव आयोग की ओर से अभी जारी दिशा निर्देश का पालन करें। एहतियात के उपायों पर अमल करें। यकीन मानिए कोरोना की तरह चुनाव के मोर्चे पर भी जीत जरूर हासिल होगी।
2015 के विधानसभा चुनाव में बना अजीब संयोग
चुनाव एक और कारण से ऐतिहासिक है। लोग मतदान करते हैं। कुछ विधायक सत्तारूढ़ दल के हो जाते हैं। बाकी विपक्ष में रहते हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में निर्वाचित विधायकों के साथ अजीब संयोग बना। भाकपा माले के तीन और कुछ निर्दलीय विधायकों को छोड़ दें तो अन्य सभी विधायक अपने पांच साल के कार्यकाल में बारी-बारी से सत्ता और विपक्ष में रहे। विधायकों की यह हैसियत आम लोगों को उनके चुनावी वायदे का हिसाब लेने में काफी मदद करेगी। हिसाब लेने का यह दौर दिलचस्प भी हो सकता है।
क्या हो सकता है एजेंडा
राज्य में आधारभूत संरचना का विकास हुआ है। सड़क, बिजली, सिंचाई आदि के क्षेत्रों में अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल हुई है। स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी आधारभूत संरचनाएं विस्तृत हुई हैं। कुछ नए शहर हवाई मार्ग से जुडऩे जा रहे हैं। विकास की योजनाओं की सूची लंबी है। इस चुनाव का एक एजेंडा यह हो सकता है कि विकसित आधारभूत संरचना का उपयोग उत्पादन के साधन बढ़ाने और अंतत: रोजगार के ढेर सारे अवसर सृजित करने में कैसे हो सकता है। यह सुनने-देखने में अच्छा नहीं लगता है कि राज्य में बिजली का ज्यादा उपयोग उत्पादन में नहीं सजावट में होता है। इसी तरह अच्छी सड़कों का उपयोग माल की आवाजाही से अधिक तेज रफ्तार से गाडिय़ां चलाने के लिए होता है। जनता अपने जन प्रतिनिधियों से करार करवा सकती है कि इस बार जीत कर गए तो विकास की सूची में उत्पादन और रोजगार को जोड़ेंगे। चार-चार साल विलंब से चलने वाले विश्वविद्यालयों के सत्र को नियमित करने का करार भी वोटरों के एजेंडा में हो सकता है।
अच्छे जनप्रतिनिधि, अच्छी सरकार
अच्छी सरकार हो, इसके लिए सबसे जरूरी है कि हमारे जनप्रतिनिधि भी अच्छे हों। जनता ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को विधानसभा में जाने से बहुत हद तक रोक दिया है। फिर भी अपवाद के तौर पर कुछ रह गए हैं। कोशिश हो कि विधानसभा पूरी तरह बेदाग लोगों से भरे। हो सकता है कि किसी मजबूरी के कारण राजनीतिक दल अपराधी किस्म के लोगों को उम्मीदवार बना दें। वोटर उन्हें रोक सकते हैं। वोट देने की यह प्रवृति भी बदली जा सकती है कि हमारे परदादा के समय से ही अमुक दल को वोट देने का रिवाज रहा है। उसी को देंगे। दादा या परदादा की जरूरत अलग रही होंगी। हमारी-आपकी अलग है। सो, अपनी जरूरतों के हिसाब से मतदान करें तो बेहतर नतीजे आ सकते हैं। यह प्रवृति जन प्रतिनिधियों को लापरवाह बनने के बदले जवाबदेह बनाएगी। दैनिक जागरण से साभार
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