आशीर्वाद देने के लिए हाथ के साथ पैर में भी चपोतिये सेनेटाइजर
सोशल मीडिया नहीं, सोशल कन्सर्न की दिखेगी ताकत
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आशीर्वाद देने के लिए हाथ के साथ पैर में भी चपोतिये सेनेटाइजर
—- वीरेंद्र यादव ————-
2012 की घटना है। हम मुखिया के उपचुनाव में उम्मीदवार थे। चुनाव प्रचार के दौरान एक दालान में गये। हमने अपना परिचय दिया और अपनी बात रखने लगे। इस पर एक व्यक्ति ने कहा- आप चुनाव लड़ रहे हैं और आपने प्रणाम भी नहीं किया। इस घटना के बाद हर दरवाजे पर बड़ों को प्रणाम करने की आदल डाल ली। यही है सोशल कन्सर्न यानी सामाजिक सरोकार।
बिहार विधान चुनाव में प्रचार के लिए सभा या बड़ी बैठक करने के पूर्व प्रशासन से अनुमति लेनी होगी। उसके लिए कई मानदंडों को अपनाना होगा। थोड़ी सी चूक हुई तो झेलिये एफआईआर। पहले चुनाव लडि़ये और बाद में मुकदमा। चुनाव आयोग ने इससे अलग एक रास्ता दे रखा है। वह है पांच लोगों के साथ जनसंपर्क, प्रचार।
वर्चुअल प्रचार और सोशल मीडिया को प्रचार का सबसे बड़ा माध्यम माना जा रहा है। बड़े नेता वर्चुअल प्रचार करेंगे और सोशल मीडिया के बड़े प्लेटफॉर्म अंतर्राष्ट्रीय प्रचार करेंगे। वजह है कि वर्चुअल या सोशल मीडिया कंपेन की कोई सीमा तय नहीं है। उम्मीदवारों को प्रचार के लिए 20-22 दिनों का समय मिलेगा। बड़े नेताओं के वर्चुअल प्रचार के लिए विधान सभा क्षेत्र विशेष के कार्यकर्ताओं तक मैसेज पहुंचाना भी आसान नहीं होगा। और कोई भी सोशल मीडिया किसी उम्मीदवार विशेष के क्षेत्र तक में ही उसके प्रचार को सीमित नहीं रख सकता है। मतलब यह कि आपको एक बाल्टी पानी की जरूरत है और गंगाल में पानी की आपूर्ति की जायेगी। एक बाल्टी पानी के अलावा सब बेकार।
ऐसे माहौल में सोशल मीडिया से ज्यादा सोशल कन्सर्न महत्वपूर्ण हो जाएगा। पांच आदमियों के साथ जब आप जनसंपर्क कर रहे हों तो आपका व्यवहार महत्वपूर्ण हो जाएगा। आप जिस भी पार्टी या गठबंधन से हों, उसका चुनाव चिह्न बड़ी ताकत होगा। आपके कार्यकर्ताओं की टीम की बड़ी भूमिका होगी। चुनाव प्रचार के दौरान वोटरों के बीच पर्ची और पैसा बांटने में यही कार्यकर्ता रीढ़ की हड्डी साबित होंगे। इस दौरान कार्यकर्ताओं की बदतमीजी का खामियाजा भी उम्मीदवार को भुगतना पड़ सकता है।
विधान सभा चुनाव में आम वोटर मुखिया का चुनाव का आनंद ले सकते हैं। दिन भर उम्मीदवारों को आशीर्वाद बांटने के लिए अपने दरवाजे पर खटिया लगाकर बैठ सकते हैं। कोरोना से बचाव के लिए हाथ के साथ पैर व ठेहुना में सेनेटाइजर चपोप सकते हैं। किसी पार्टी के गंभीर कार्यकर्ता हैं तो चाय-पानी के खर्चे का जिम्मा पार्टी उम्मीदवार को थोप सकते हैं। हेलीकॉप्टरमुक्त आसमान में सड़कों और गलियों में धूल उड़ती नजर आयेगी। इसमें उम्मीदवार का सामाजिक होना जरूरी है और इसके लिए क्या उचित है, यह बताने की जरूरत नहीं है।
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