विधान सभा चुनाव तय समय पर हो पायेगा ?
वीरेंद्र यादव. पटना।
आज बिहार का सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या विधान सभा चुनाव समय पर हो पायेगा ? वर्तमान विधान सभा का कार्यकाल 29 नवंबर तक है। इससे पहले चुनाव कराने की हरसंभव कोशिश चुनाव आयोग कर रहा है। इसके लिए प्रशासनिक तैयारी भी शुरू हो गयी है। आयोग निरंतर राजनीतिक दलों के साथ संपर्क में है और इसी महीने की 11 तारीख तक सुझाव भी मांगा है। उसने पार्टियों से कहा है कि वैश्विक महामारी के दौर में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कैसे संभव है। प्रचार-प्रसार का तरीका क्या होगा और लॉकडाउन की शर्तों के बीच चुनाव की प्रक्रिया कैसे पूरी की जा सकती है। इसी संदर्भ में सुझाव भी मांगा है।
चुनाव को लेकर विभिन्न पार्टियां का अपना-अपना स्टैंड है। कुछ चुनाव के पक्ष में हैं तो कुछ चुनाव टालने के पक्ष में हैं। पर इतना तय है कि चुनाव की घोषणा हो गयी तो सभी पार्टियां प्रक्रिया में शामिल भी होंगी।
चुनाव प्रक्रिया की तकनीकी पक्ष पर विचार करें तो लगभग स्पष्ट हो गया है कि अब चुनाव कराना असंभव है। चुनाव के अधिकतम समय सीमा 120 दिन या चार महीने से कम बचा है।
चुनाव के लिए दो चीज बहुत जरूरी है। पहला है मतदान केंद्रों का पुनर्गठन और दूसरा मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन। ये दोनों काम अभी शुरू भी नहीं हुआ है। आयोग का कहना है कि कोरोना को देखते हुए मतदान केंद्रों की संख्या बढ़ायी जायेगी। आयोग के सूत्रों के अनुसार, बूथों की संख्या बढ़ने के बाद 1 लाख 6 हजार से अधिक मतदान केंद्र हो जायेंगे। इसमें सबसे बड़ा अड़चन बाढ़ प्रभावित जिलों में मतदान केंद्रों का पुनर्गठन है। सामान्य जिलों में कोरोना के कारण मतदान केंद्रों के लिए जगह का चयन सुनिश्चित करना मुश्किल है। बूथों के अंतिम स्वरूप आने के बाद ही मतदाता सूची को फाइनल किया जा सकता है। मतदाता सूची में नाम जोड़ने का अभियान भी आयोग चलता है, ताकि हर योग्य व्यक्ति का नाम सूची में जुट जाये। बूथों का पुनर्गठन और वोटर लिस्ट का अंतिम प्रकाशन के लिए जितना समय और संसाधन की आवश्यकता है, वह पूरा करना संभव नहीं दिखता है। लॉक डाउन के कारण वोटरलिस्ट का पुनर्निर्माण और प्रकाशन अपेक्षित समय में संभव नहीं जान पड़ता है।
चुनाव को लेकर प्रशासनिक तैयारी बहुत मुश्किल नहीं है। अधिकारियों और चुनाव कर्मियों का प्रशिक्षण और इनकी संख्या बड़ी समस्या नहीं है। ये सब काम हर चुनाव में होता है और यह रुटिन वर्क है। लेकिन बूथ का पुनर्गठन और वोटर लिस्ट का अंतिम प्रकाशन ही सबसे मुश्किल है। बूथ के बिना वोटर लिस्ट नहीं बन सकती है। चुनाव आयोग अभी खुद चुनाव को लेकर संशय में है और पार्टियों से विमर्श कर रहा है, जबकि समय चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा करने और आचार संहिता लागू करने का आ गया है। यदि तय समय पर चुनाव हुआ तो हर हाल में अगस्त के अंतिम सप्ताह में चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा करनी होगी।
यदि चुनाव टलता है तो उसके लिए कोई प्रशासनिक वजह नहीं होगी। इसका कारण होगा बूथों के पुनर्गठन में परेशानी और वोटरलिस्टों के प्रकाशन में विलंब होना। इन दोनों के बिना चुनाव संभव ही नहीं है। इस संबंध में माना जा रहा है कि आयोग चुनाव कराने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन तकनीकी अड़चनों के कारण चुनाव टल भी जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
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