चुनाव आयोग अब भाजपा के लिए ‘लूटेगा’ बूथ ?
वीरेंद्र यादव
संविधान में निर्वाचन आयोग को शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव का जिम्मा सौंपा गया है, लेकिन अब आयोग ने भाजपा के लिए बूथ ‘लूटने’ का सारा इंतजाम कर लिया है। पहले पार्टी समर्थक आपराधिक रूप से बूथ लूटने का काम करते थे और अब निर्वाचन आयोग संस्थागत रूप से बूथ लूटने कर इंतजाम कर लिया है। आयोग यह ‘पुनीत’ काम की शुरुआत भी बिहार से करेगा।
निर्वाचन आयोग ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 59 में नया प्रावधान किया है, जिसके तहत 65 वर्ष से अधिक के मतदाता पोस्टल बैलेट के माध्यम से मतदान कर सकेंगे। इसी नये प्रावधान के तहत दिव्यांग जन और कोरोना संक्रमित भी पोस्टल बैलेट से मतदान कर सकेंगे। अब तक सर्विस वोटर और चुनाव कार्य में लगे अधिकारी व कर्मचारियों को ही पोस्टल बैलेट से मतदान की सुविधा प्रदान की गयी थी। इसके अलावा कुछ खास परिस्थितियों में कुछ लोगों को पोस्टल बैलेट से मतदान की सुविधा थी।
सामान्य रूप से देखने में लगता है कि यह वोटर के लिए सुविधा का विस्तार है, लेकिन इसके व्यावहारिक और तकनीकी पक्ष में जाएंगे तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है। इससे चुनाव आयोग ने खुद लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला किया है। पोस्टल बैलेट के नये प्रावधान की शुरुआत बिहार विधान सभा चुनाव से ही होगी।
बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधान सभा चुनाव होने की संभावना है। बिहार में फिलहाल 62 लाख से ज्यादा वोटर 65 वर्ष से अधिक उम्र के वोटर हैं। यानी लगभग कुल वोटरों के 10 फीसदी वोटर 65 वर्ष से अधिक उम्र के हैं, जो चुनाव परिणाम को प्रभावित करने में सक्षम हैं।
चुनाव के दौरान मतदान केंद्र पर वोटरों की पहचान के लिए कई स्तरीय प्रक्रिया होती है, जिससे फर्जी मतदान पर अंकुश लगाना संभव होता है। लेकिन पोस्टल बैलेट में बाप की जगह बेटा या दादा की जगह पोता मुहर लगायेगा, इसकी पूरी आशंका है। क्योंकि वहां न मत की गोपनीयता की गारंटी दी सकती है और न मतदाता की इच्छा को महत्व मिलेगा। नये प्रावधान के तहत चुनाव आयोग ने संस्थागत रूप से मतदान को प्रभावित करने का इंतजाम कर लिया है। जहां तक कोरोना संक्रमित मरीजों का सवाल है, 5 से 7 दिनों में कोई व्यक्ति संक्रमित हो सकता है या संक्रमण मुक्त भी हो सकता है। इससे मतदान को जोड़कर चुनाव आयोग ने समाज में अनावश्यक रूप से दहशत कायम करने का प्रयास किया है।
पोस्टल वोटरों का चरित्र सवर्ण जातीय हितों से प्रभावित पार्टी के साथ रहा है। 2015 के विधान सभा चुनाव में पोस्टल वोट के आधार पर ही भाजपा कार्यालय में पटाखे फूटने लगे थे, लेकिन कुछ घंटे बाद ही भाजपा की किस्मत फूट गयी थी। बिहार में सवर्ण जातीयों का झुकाव भाजपा की ओर है और पोस्टल वोटर का सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा। इस प्रकार चुनाव आयोग ने भाजपा के लिए बूथ लूटने का पूरा इंतजाम कर दिया है और वह भी संस्थागत रूप से।
उधर, राजद के सांसद प्रो. मनोज झा ने चुनाव आयोग के फैसले का विरोध किया है। उन्होंने चुनाव आयोग को भेजे पत्र में कहा है कि इस तरह के किसी भी निर्णय के पूर्व आयोग ने राजनीतिक दलों से विमर्श नहीं किया। उन्होंने आयोग से अपने निर्णय को वापस लेते हुए इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है।
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