वर्चुअल रैलियों से बदल जाएगी चुनावी बिहार की राजनीतिक तस्वीर

सोशल मीडिया पर नेता बढ़ा रहे फॉलोवर्स
पटना, रमण शुक्ला। कोरोना के संक्रमण को देखते हुए बिहार विधानसभा चुनाव इस बार कई मायने में नई इबारत लिखेगा। वर्चुअल रैली बिहार के लिए नई है। बिहार में पहली बार इसका व्यापक प्रयोग होने की उम्मीद है। यानी इस बार पारंपरिक रैलियां कम हो जाएंगी। चुनावी साल में गांधी मैदान में सभी दलों की अलग-अलग कम से कम पांच बड़ी चुनावी रैलियां होती हैं। लेकिन इस बार शायद नहीं होंगी। पार्टियों का खर्च घटेगा। बांस-बल्ली, टेंट, गाड़ी, लाउडस्पीकर, पर्चे, बैनर, पोस्टर के खर्चे कम हो जाएंगे। इसके स्थान पर अखबारों में विज्ञापन बढ़ेगा।

बढ़ेगा ऑनलाइन विज्ञापन

ऑनलाइन विज्ञापन बढ़ेगा। सोशल मीडिया भी व्यापक संभावना देख रहा है। इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों की बल्ले-बल्ले होगी। भीड़ जुटाने वाले नेता अब मोबाइल नंबर जुटाने वाले नेता में तब्दील हो जाएंगे। फिलहाल बड़े दलों के दिग्गजों ने वर्चुअल चुनावी रैलियों की बिसात बिछाने में ताकत झोंक दी है। सोशल मीडिया की भूमिका भी इस बार के विधानसभा चुनाव में नए सिरे से तय होगी। इसे देखते हुए विभिन्न दलों के शीर्ष नेताओं ने फॉलोवर्स बढ़ाने में ताकत झोक दी है।

गांधी मैदान में नहीं जुटेगी भीड़
सियासी धुरंधरों के बीच चर्चा है कि इस बार के चुनाव में प्रदेश, प्रमंडल, जिला और विधानसभा क्षेत्र स्तर पर होने वाली रैलियों का भी स्वरूप बदल जाएगा। दिल्ली और पटना से बैठकर गांव-गांव की सभाओं को संबोधित करने के लिए नेताओं ने इवेंट कंपनियों के साथ कार्यकर्ताओं की नई टीमें गढऩे में ताकत झोंक दी है। पटना के गांधी मैदान में दो से पांच लाख की भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी लेने वाले नेताओं के कंधे पर इस बार नई जिम्मेदारी होगी।
चुनाव प्रबंधन की कमान संभालने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं की भी नए सिरे से भूमिका तय होगी। इवेंट कंपनियों ने अभी से प्लाज्मा टीवी, एलइडी स्क्रीन और मेगा स्क्रीन से संबंधित अपनी क्षमता के प्रचार-प्रसार में जहां ताकत झोक दी है, वहीं सियासी दलों ने बड़ी-बड़ी डिजीटल स्क्रीन रखने वाली कंपनियों की तलाश अभी से शुरू कर दी है।
जागरण से साभार






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