पूर्व पीएम राजीव गांधी की यह बात आपको शायद ही पता होगी

अरविन्द कुमार

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बारे में आपके विचार सुनकर आपको यह पत्र लिखने से नहीं रोक पाया. इसका कारण यह नहीं है कि मैं या फिर मेरा परिवार कांग्रेसी है. मेरा कांग्रेस और उसकी विचारधारा से कोई अपनापन नहीं है. मेरे पत्र लिखने का कारण देश में राजनीतिक बहस की गिरती गरिमा को लेकर मेरी चिंता है, जो कि लोकतंत्र के विकास के साथ-साथ ही स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए नितांत ज़रूरी है. मुझे इस बात की फिक्र है कि हमारे देश में लोकतंत्र का मतलब चुनाव तक सीमित होता जा रहा है, जिसकी वजह से बहस का मतलब आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित हो गया है. जबकि लोकतंत्र में बहस का मतलब तर्क-वितर्क होता है. चुनाव के अलावा लोकतंत्र का मतलब नागरिकों में देशभक्ति, साहस, दया, करुणा, मानवीय गरिमा का सम्मान जैसे मूल्यों का विकास होता है.

दुनिया के कई देशों में गिरा है राजनीतिक संवाद का स्तर
वैसे आपकी चिंता को कम करने के लिए बता दूं कि आधुनिक लोकतंत्र में आयी यह विकृति केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि अपने को विकसित कहने वाले देशों के लोकतंत्र में भी ये समस्या देखी जा रही है. अगर आपको मेरी बात पर विश्वास न हो तो आप अपने मित्र बराक ओबामा से भी पूछ सकते हैं. मैं तो कहूंगा कि चुनाव बाद जब आप अगली बार अमेरिका जाएं तो ओबामा से कहें कि वो अपने मित्र प्रोफेसर माइकल सैंडल से आपको ज़रूर मिलवाएं, क्योंकि उनको भी आधुनिक लोकतंत्र में गिरते बहस के स्तर को लेकर बड़ी चिंता है.
दरअसल, लन्दन आने के पहले मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कालेज में अतिथि प्रोफ़ेसर के तौर पर राजनीति विज्ञान पढ़ाता था, और अपने छात्रों को लोकतंत्र के बारे में पढ़ाते समय माइकल सैंडल का यूट्यूब पर पड़ा लेक्चर लॉस्ट आर्ट ऑफ़ डेमोक्रेटिक डिबेट ज़रूर सुनाता था.

ख़ैर मुख्य मुद्दे पर आते हैं. आपकी यह बात सही है कि राजीव गांधी पर बोफ़ोर्स तोप घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोप लगे, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में भड़के सिख विरोधी दंगों के दौरान चुप्पी बरतने और यहां तक कि दंगाइयों को उकसाने वाले बयान देने के आरोप उन पर लगे. लेकिन यह भी याद रखने की बात है कि उन पर ये आरोप कभी साबित नहीं हुए.

क्यों करें राजीव गांधी को याद
जहां तक देश की जनता को उनको याद करने का सवाल है, तो जनता उनको दक्षिण एशिया में आतंकवाद से लड़ते हुए शहादत देने, सूचना और तकनीकी क्रांति की शुरुआत करने, प्रथम पीढ़ी के आर्थिक सुधार लागू करने और शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने के लिए याद करती है. ख़ासकर सेकेण्डरी शिक्षा में क्रांतिकारी सुधार करने के लिए.

चूंकि ख़ुद मैं राजीव गांधी की स्कूल शिक्षा नीति में लाए गए बदलाव का लाभार्थी रहा हूं, इसलिए सोचा कि शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए बदलाव से आपको परिचित करवा दूं .

लोग बताते हैं कि राजीव गांधी अपनी सरकार की नीतियों की ज़मीनी पड़ताल करने के लिए एक स्कूल में गए, जहां पर एक बच्चे से उन्होंने एक साधारण सा सवाल पूछा. वह बच्चा जवाब ना दे सका, तो उन्होंने इस पर आश्चर्य व्यक्त किया. राजीव के आश्चर्य व्यक्त करने पर बच्चे ने उनसे कहा कि ‘मैं दून स्कूल में थोड़े ही पढ़ा हूं.’ ज्ञात हो कि राजीव गांधी प्रसिद्ध दून स्कूल में पढ़े थे. राजीव ने उस बच्चे को जवाब दिया कि मैं आपको दून स्कूल में तो नहीं पढ़ा सकता, लेकिन आप जैसे बच्चों के लिए दून स्कूल जैसे स्कूल ज़रूर खुलवाऊंगा.

उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा को ग्रामीण इलाकों तक ले जाने की पहल
इस घटना के बाद राजीव सरकार ने देश में नयी शिक्षा नीति बनायी, जिसके तहत शिक्षा को राज्य सूची ने निकालकर समवर्ती सूची में डाला गया. शिक्षा मंत्रालय को मानव संसाधन विकास मंत्रालय में तब्दील कर दिया गया. नयी शिक्षा नीति के तहत देश के ग्रामीण क्षेत्र के प्रतिभाशाली बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए नवोदय विद्यालय की स्थापना की घोषणा किया. प्रयोग के तौर पर सबसे पहले अमरावती और झज्जर में दो विद्यालय खोले गए. और साल भर के बाद ही 1986 में देश के 61 अन्य जिलों में दूसरे बैच के नवोदय विद्यालय खुले.

मैं जिस नवोदय विद्यालय, फ़ैज़ाबाद से पढ़ा हूं, वह द्वितीय बैच में स्थापित हुआ था.

राजीव गांधी ने ग्रामीण क्षेत्र के प्रतिभाशाली बच्चों के लिए नवोदय विद्यालय का जो माडल तैयार करवाया, उसके तहत छठवीं से बारहवीं तक की फ़्री पढ़ाई प्रावधान था, जिसमें खाना, रहना और कपड़ा तक शामिल था. बाद में, वाजपेयी सरकार ने सामान्य वर्ग के छात्रों हेतु फ़ीस लागू करने का फैसला किया. राजीव गांधी ने नवोदय विद्यालय की जो मूल संकल्पना की थी, उसमें देश के हर जिले में एक नवोदय विद्यालय का प्रावधान है, जिसमें नवीं तक छात्रों को तीन भाषाएं पढ़ायी जाती हैं. इन तीन भाषाओं में अंग्रेज़ी और हिंदी के अलावा तीसरी भाषा के तौर पर किसी दूसरे राज्य की भाषा पढ़ने का प्रावधान था.

राष्ट्रीय एकता का नवोदय विद्यालय का मॉडल
यहां सिर्फ़ भाषा पढ़ायी नहीं जाती थी, बल्कि हर नवोदय में नौंवी कक्षा में एक राज्य से दूसरे राज्य में माइग्रेशन का भी प्रावधान किया, ताकि एक राज्य के बच्चों को दूसरे राज्य की भाषा और संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त हो. राजीव की इस नीति का मूल उद्देश्य देश की एकता और अखंडता को मजबूत करना था. लेकिन तमिलनाडु ने यह कहकर नवोदय सिस्टम का विरोध किया कि यह ग़ैर हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने का प्रयास है, इसके परिणाम स्वरूप आज भी तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय नहीं खुल पाए.

उन्होंने इस सिस्टम में अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा लड़कियों और ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को आरक्षण उपलब्ध करवाया. 

आज राजीव गांधी के इस सपने का परिणाम है कि नवोदय विद्यालयों से निकले छात्र प्रशासनिक सेवा, अध्यापन, डाक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, पत्रकारिता जैसे सभी जगहों पर हैं. इनमें से ज़्यादातर छात्र उन परिवारों से आते हैं, जिनके माता-पिता ने कालेज-विश्वविद्यालय नहीं देखा था. हर साल सीबीएसई के परिणामों में नवोदय विद्यालय पहले और दूसरे स्थान पर रहता ही है.

यह सब इसलिए लिख रहा हूं ताकि इस पर प्रकाश डाल सकूं कि लोकतंत्र का मतलब सिर्फ़ चुनाव जीतना नहीं है, बल्कि ऐसी संस्थाओं का निर्माण भी करना होता है जो लोकतांत्रिक मूल्यों का सृजन कर सके. राजीव गांधी ने अपने छोटे से कार्यकाल में इसकी नींव रखी. आपको बताना चाहिए कि आपने ऐसा क्या किया.

(लेखक जवाहर नवोदय विद्यालय, फ़ैज़ाबाद से पढ़े हैं और इन दिनों रायल हालवे लंदन विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रहे हैं. द प्रिंट से साभार)






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