सरकार के नकारापन का अभिशाप झेल रहे बिहार के विद्यार्थी
कोटा से अमरेंद्र पटेल
लो भाई, मैं कोटा आ गया। वही कोटा जहां हजारों छात्र इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी के लिए हर साल आते हैं। कोचिंग करते हैं। कुछ सफल होते हैं और अधिकतर विफल होकर अपने राज्य और घर-परिवार को लौट जाते हैं। सभी हिंदी प्रदेशों के छात्र-छात्राएं कोचिंग के लिए आते हैं। सपनों की यह अनंत यात्रा वर्षों से चली आ रही है। लेकिन इस साल यह यात्रा थम-सी गयी है। हर कोई यात्रा बीच में छोड़कर अपने परिवार के पास लौटना चाहता है। ऐसे छात्रों की संख्या 50 हजार से अधिक होगी। इसमें सबसे ज्यादा छात्र बिहार के होते हैं।
कोटा में छात्रों के रहने-खाने की कोई समस्या नहीं है। इसका इंतजाम कोचिंग संचालक ही करते हैं। बड़ी संख्या में मेस और होटल भी हैं। टिफिन सिस्टम भी बहुत व्यवस्थित है। पेईंग गेस्ट के रूप में छात्रों की बड़ी आबादी रहती है। बड़े सपने लेकर कोटा पहुंचने वाले छात्र या छात्राएं छोटी-छोटी असुविधाओं को नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन कोरोना महामारी के बाद उत्पन्न संकट और लॉकडाउन की वजह से छात्रों के सपनों की उड़ान फुर्र हो गयी। इन्हीं महीनों में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए प्रवेश परीक्षाएं होती हैं। साल-दो साल की मेहनत के बाद परीक्षा देने के समय पर ही छात्र विवश हो गया हैं।
लॉकडाउन के कारण अचानक छात्रों का कोटा से पलायन शुरू हुआ। विभिन्न राज्य सरकारों ने कोटा में फंसे अपने छात्रों को बुलाने की प्रक्रिया शुरू की। इस मामले में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सबसे आगे रही। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोटा के सांसद और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला से बातचीत कर अपने छात्रों को वापस बुलाने का इंतजाम किया। लॉकडाउन की अवधि में ही बस भेज कर छात्रों को वापस बुलवाने की प्रक्रिया शुरू की। अन्य राज्य सरकार ने भी इस दिशा में सार्थक पहल की, लेकिन बिहार सरकार इस मामले में नकारा साबित हुई। लॉकडाउन की आड़ में छात्रों को वापस बुलाने से हाथ खड़े कर लिये। अब नीतीश सरकार के नकारापन का अभिशाप बिहारी छात्र भुगत रहे हैं।
बिहारी छात्रों की बड़ी आबादी इस शहर में रहती है। सत्ता तक पहुंच रखने वाले कुछ छात्रों के अभिभावक पहले ही अपने बच्चों को ले गये। इधर केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों में फंसे छात्र, मजदूरों और कामगारों के अपने राज्य में वापसी के लिए कुछ शर्तों के साथ अंतर्राज्यीय आवागमन की अनुमति प्रदान कर दी है। इसके बाद कोटा में फंसे छात्रों के चेहरे पर आशा की उम्मीद जगी, लेकिन खुशी ज्यादा देर नहीं ठहर सकी। केंद्र सरकार की अनुमति मिलने के बाद राज्य सरकार ने सभी राज्यों में नोडल अधिकारी की प्रतिनियुक्ति कर दी। लेकिन इन लोगों की वापसी के लिए वाहन की व्यवस्था करने से इंकार कर दिया।
राजस्थान के कोटा जिला प्रशासन और कोचिंग संचालकों ने छात्रों के अपने गृह प्रदेश में वापसी के लिए समुचित व्यवस्था की है। कोचिंग संचालकों के पास अपने सभी छात्रों के डाटाबेस हैं। इसके आधार पर सूची बना ली है और जिला प्रशासन को वह सूची सौंप दी है। जिन छात्रों ने अपने निजी वाहनों से वापसी की इच्छा जतायी, उनके लिए प्रशासन ने वाहनों के रुटचार्ट के साथ पास निर्गत कर दिया। इसमें शारीरिक दूरी के साथ आवश्यक सतर्कता का अनुपालन का भी ध्यान रखा गया। लंबी दूरी के कारण खाने-पीने की व्यवस्था के साथ वाहनों को रवाना होने की अनुमति दी जा रही है।
विभिन्न राज्यों से आयी सरकारी बसों के लिए अलग तरह की व्यवस्था है। राज्यों से आयी बसों में सीट की उपलब्धता के आधार पर जिला प्रशासन छात्रों के लोकेशन के अनुसार, बस का आवंटन कर रहा है। इसमें कोचिंग संचालक और जिला प्रशासन मिलकर काम कर रहा है। जिला प्रशासन बसों के गंतव्य के आधार पर विभिन्न कोचिंग के छात्रों का चार्ट बनाती है। उसी के आधार पर बस और सीट आवंटित कर छात्र, कोचिंग और बस चालकों को चार्ट थमा देती है। इसमें छात्रों के नाम, बस का नंबर, ड्राइवर का मोबाइल नंबर, रुट और बस के प्रस्थान अड्डा से संबंधित सूचना अंकित होती है।
लेकिन बिहारी छात्रों की अलग तरह की स्थिति है। अभी तक बिहार सरकार ने इन छात्रों की वापसी के लिए कोई बस नहीं भेजा है। इस कारण भी छात्रों की परेशानी बढ़ गयी है। जो छात्र आर्थिक रूप से सक्षम हैं, वे एक ग्रुप में छोटे वाहन बुक कर वापसी की तैयारी कर रहे हैं। शेष छात्रों को सरकारी बसों का इंतजार है। इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि सभी छात्र वापस नहीं आना चाहते हैं। कुछ छात्रों ने इंजीयरिंग या मेडिकल की प्रवेश परीक्षा के लिए सेंटर का चयन कोटा शहर को किया है। वे कोटा छोड़ना नहीं चाहते हैं। पटना के रहने वाले छात्र नरेश ने बताया कि अभी परीक्षा के लिए सेंटर तय करने के लिए कुछ दिनों का अवसर दिया गया है। यदि पटना लौटने की व्यवस्था हो सकी तो सेंटर का स्थान बदल सकते हैं। लेकिन पटना लौटने की संभावना नहीं बनती है तो फिर कोटा में रहना मजबूरी होगी।
कोटा में रह रहे बिहारी छात्रों को अब राज्य सरकार की पहल का इंतजार है। उन्हें भरोसा है कि राज्य सरकार उनके हित में सार्थक पहल करेगी, लेकिन कब तक, अभी तय नहीं है।
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