कोविड-19 के बाद का जनमानस
कालूलाल कुलमी
कोरोना-19 के आने के बाद सब कुछ बदल गया। जैसे किसी की ज़िंदगी में अनहोनी होने पर होता हैं। इसको आने को लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं। लेकिन इसकी वास्तविका के बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी अभी तक नहीं आई। चीन से निकली ये महामारी और बहुत कम समय में पूरी दुनियाँ में फैल गयी। महामारी ने पूरी दुनियाँ को अपने आगोश में लिया। इसके आने के बाद सही और गलत का अंदाज केवल अंदाज़ ही रह गया। इस तरह की आपात दशा में बहुत कुछ होता है, जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते। इस बीमारी में कितनों की ज़िंदगी बदल दी। जीवन में जब भी कुछ अचानक होता है, वो आपके और आपके आसपास के सब-कुछ को पूरी तरह से बदल देता है। इसके कितने ही उदाहरण है। इसने भी वही किया।अचानक सबकुछ थम जाए। इसकी कल्पना ही असंभव हैं। कारण हम विज्ञान के सबसे आधुनिक युग में है। लेकिन
ऐसा होता नहीं हैं। विज्ञान के लिए कुछ भी अंतिम नहीं हैं। वो हर बार कुछ न कुछ करता हैं, और फिर उससे आगे का अनुसंधान करता हैं।
इस बीमारी ने पूरी दुनियाँ को अपनी चपेट में लिया है। अभी तक 1.5 लाख लोग मर चुके है। इसकी चपेट में आए उनका कोई अंत नहीं है। दुनियाँ पावर और प्रकृति के साथ अपने को साधने में लगी है। हम आधुनिक से भी आगे आ चुके हैं लेकिन कोरोना का टीका अभी नहीं बना है। प्रकृति मनुष्य को अपने से आगे ही रखती है। मनुष्य जितना आगे बढ़ता है प्रकृति उससे बड़ी लकीर खींच देती है। कभी खुदा तो कभी भगवान आता है, लेकिन सब नाकाम साबित होते है। गांधी में इस सभ्यता की आलोचना इसी कारण की थी। विकास का रास्ता
विस्थापन की तरफ ही जाता है। कोरोना के बारे में सब तरह से सोचा जा रहा है। लिखा जा रहा है। अनुसंधान भी जारी है। और कामयाबी की पूरी ऊमीद है। लेकिन इस बीच जो सवाल सामने आए उनको आप कैसे देखते हैं-
मीडिया और प्रशासन ने उसकी अपनी नज़र से लिया। मीडिया खासकर भारतीय मीडिया जिसके बारे में गोदी मीडिया भी बोला जाता है। मीडिया ने तमाशा किया जिसका कोई आर-पार नहीं है। हिन्दू मुस्लिम तो चल ही रहा था। फिर इसको जिस तरह से नेरेटर में रचा वो अभी के समय में सच भी होता दिखा।
इस्लाम की आलोचन नहीं की जाए। इस्लाम की आलोचना ही उसका विकास है। उस धर्म को अपनी सीमाओं का अतिक्रमण खुद ही करना होगा। जैसे आदमी को अपने लिए खुद ही लड़ना होता है। इस्लाम को अपने को सूफी परंपरा के साथ जोड़ते हुए,आगे आने की जरूरत है।बाकी तबलिगी जमात हो या फिर आसाराम के भक्त इनके बारे में जितना लिखा जाए कम है। बाकी आलोचना जड़ता की की जाती है। अगर आप धर्म से बड़ा संविधान को मानते हैं तो आपको उसका सम्मान करना होगा। रही बात मीडिया की तो उसको अपने गिरेबान में देखते हुए आलोचना करना ही अपने कर्म का निर्वाह है।
लोकडाउन के कारण जितना टीवी ने प्रचार किया वो क्या आने वाले कल की आहट नहीं है? कोविड 19 ने पूरी दुनियाँ के सामने ये सवाल खड़ा किया की वो अपनी गति पर फिर से विचार करे। वो जितनी गति से बढ़ रही है उतनी ही गति से धूल में भी मिल सकती है। कोविड से जितनी क्षति हुई वो तो सामने हैं लेकिन इसका सबसे बड़ा प्रभाव मनुष्य और प्रकृति के रिश्तों पर हुआ है। ईश्वर का तो पता नहीं लेकिन प्रकृति ने अपने संतुलन को खुद ही रचा है। कोविड 19 के आने के बाद रामायण और महाभारत के साथ-साथ इतिहास को एक कर देखा जा रहा हैं। जनमानस को अनजाने शत्रु से भी जोड़ा जा रहा है।
जनमानस को काम पर लगा दिया हैं। घर में रह कर वो कुछ करे न करे अपने को मानसिक रूप से न्यू इंडिया के लिए राजी कर ले। संबित पत्रा जैसे डॉ पूजा-पाठ में लगे है,या झूठ फैलाने में, जब उनकी जरूरत हैं तब वो कहाँ हैं ? कोई नमाज़ के लिए तो कोई मंदिर जाने के लिए उतावला हैं। जबकि खुद खुदा अपना घर बंद कर बैठा हैं। ईश्वर अब खुद अलग ही रूप में आ रहा हैं। कोई गो-मूत्र से तो कोई हवन से तो कोई मंत्र से ईलाज़ में लगे हैं। कभी थाली कभी, दीपक से, लेकिन खुदा खुद बेखबर हैं। जो खुदा बने हैं उनकी अपनी खुदाई बनाए रखने के लिए जो करना हैं कर रहे हैं।
पुलिस ने भी अच्छा और बुरा किया। जो वो करती हैं। अभी 144 में वो अपना काम करते हुए, सब तरह का काम कर रही हैं। लेकिन वो जिस तरह से करती हैं उसको करना ही हैं। कोरोना-19 मनुष्य और प्रकृति के बीच के रिश्तों को फिर से परिभाषित का समय भी हैं। साथ ही विज्ञान और मनुष्य के संपर्क को भी सही से देखने का हैं। अंध और सत्य विरोधी विचार को भी खत्म करने का समय हैं। इस बीमारी का समाधान करने और सुंदर दुनियाँ को कैसे बनाए रखा
जाए।
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