कोरोना के खिलाफ जंग : 10 % की गलती के आगे 90% लोगों की एकजुटता
के खिलाफ जंग : 10 % की गलती के आगे 90% लोगों की एकजुटता
शकिल अख्तर
महामारी कोरोना के खिलाफ़ देश एक बड़ी जंग लड़ रहा है। इस जंग के पहले मोर्चे पर हमारे पूरा प्रशासकीय महकमा है,मेडिकल टीमें हैं, नर्स और डॉक्टर हैं। अफ़सर हैं, मीडिया के योद्धा हैं। सभी अपनी जान जोखिम में डालकर अपने-अपने स्तर पर योगदान दे रहे हैं। बहुत से समाज सेवी भी अपनी-अपनी जगहों पर रहकर प्रशासन की मदद कर रहे हैं। पीएम मोदी की आज सुबह दिये संबोंधन के आईने में देखें तो कोरोना के खिलाफ़ लॉकडाउन में पूरे देश ने बडी समझदारी दिखाई है। सहयोग दिया है। बेशक हम और आप जानते हैं कि देश के 90 फीसदी से ज़्यादा लोग तो हालात की गंभीरता को समझ रहे हैं, अपना योगदान दे रहे हैं। परंतु दिल्ली,इंदौर,बैंगलोर,मंगलोर,सोलापुर,फरीदाबाद,पटना या पंजाब के कई हिस्सों से ऐसे दृश्य और घटनाएं सामने आईं हैं, जिन्होंने इस अभियान को चोट पहुंचाई है। हम सभी में गुस्सा पैदा किया है।
अगर हम अपने इंदौर की ही बात करें तो यहां पर टाट पट्टी बाखल या सिलावटपुरा जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में जो कुछ हुआ,उसने पूरे समाज को शर्मसार किया है। आज सभी इन करतूतों की कड़ी निंदा कर रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ़ खड़ें हैं। इंदौर में कोरोना मरीज़ों की जो लिस्ट सामने आई है, उसमें सबसे ज़्यादा मुस्लिम समाज के ही लोग हैं। जो यह बताने के लिये काफी है कि वे और उनके इलाके अब किस कदर ख़तरे में हैं,उनका प्रशासन को सहयोग देना कितना ज़रूरी हैं। उनकी वजह से शहर के दूसरे लोग भी बड़े खतरे में आ सकते हैं। लेकिन क्या ऐसे गैर ज़िम्मेदार लोगों की वजह से कोरोना के खिलाफ़ जंग को लड़ना बंद करना या इसे भावनात्मक ज्वार से कमज़ोर करना ठीक होगा ?
लड़ाई कठिन है,लंबी है और चुनौती पूर्ण भी। हमारे सामने इस लड़ाई को कमज़ोर करने वाले अंधी मानसिकता के अशिक्षित लोग हैं। उनमें जागरूकता की बेहद कमी है। इनमें से बहुत से लोगों को अफवाह फैलाकर भड़काया गया है। प्रतिक्रिया में वे अपना और समाज दोनों का ही नुकसान कर रहे हैं। देश के कुछ और शहरों में भी लोगों ने रूकावटें पैदा की है, कर्फ्यू का उल्लंघन किया है। मगर बड़े लक्ष्य को पाने के लिये इन रूकावटों में ही उलझकर रह जाना ठीक नहीं होगा। चाहे इंदौर के मामले हों या दिल्ली मरकज़ का। यह सब बेहद शर्मनाक और निंदनीय है। क़ानून ऐसे मामलों में सख्ती से अपना काम कर रहा है। एफआईआर से लेकर एनएसए लगा है। गुनहगारों को उनकी सज़ा भी मिलेगी, मिलना चाहिये। मगर इसका मतलब यह भी नहीं कि हम चंद लोगों के लिये खुद की शक्ति को, एकजुट ताक़त को कमज़ोर कर दें। ऐसे में हमारी लड़ाई बीच में ही उलझकर रह जाएगी।
यह ठीक वैसा ही है जैसे किसी पहाड़ के शिखर पर जाते वक्त चंद लोगों के बैठ जाने पर सभी चढ़ाके चोटी पर जाने का इरादा ही छोड़ दें।
अगर चंद सिरफिरे या करीब 10 फीसदी लोगों ने कुछ ग़लत किया है तो अभी भी 90 फीसदी लोगों की एकजुटता और ताकत बाकी है। इनमें सभी समुदायों के लोग हैं,बेशक मुस्लिम समाज के लोग भी हैं। सभी की मंशा चंद सिरफिरों की तरह नहीं है। सभी के योगदान से यह जंग लड़ना ज़रूरी है। अपने-अपने स्तर पर सभी की शक्ति का सही सदुपयोग करना ज़रूरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आज के दिये वीडियो सम्बोधन को अगर समझे तो कोरोना से उत्पन्न हुए इस अंधकार को मिटाने के लिये सभी को मिलकर एक साथ रोशन होना ज़रूरी है। सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दोनों ही स्तरों पर।
असल में लॉक़डाऊन और पीएम मोदी की अपील के बाद ही भारत में बहुत से लोगों को कोरोना ( कोविड 19 ) जैसी महामारी के बारे में पता चला। जब तक वे पूरी तरह से इसके बारे में समझ पाते हैं। जागरूक हो पाते, वे सड़कों से लेकर घरों में क़ैद हो गए या वे इस बीमारी से ज़्यादा अपने हालात और पुरानी रूढ़ियों से घिर गये। ऐसे में ही अफवाहों ने अपना काम किया। देश भर में श्रमिक लाखों की संख्या में अपने घरों की ओर पैदल ही निकल पड़े। सरकारी अपीलें भी काम नहीं आये। सामाजिक दूरी को बरकरार रखना चुनौती बन गया। लोगों ने तो कोरोना के खिलाफ़ जुलूस तक निकाल डाले। दकियानूसी समाज को ग़ैर ज़िम्मेदार धर्म गुरुओं और मौलानाओं ने और भी दुष्कर बना दिया। ऐसे में इस बीमारी से निपटने से पहले ही अज्ञानता के अंधेरे और हालात की बेचैनी ने लोगों को घेर लिया।
यह बीमारी ऐसी है कि जिसके बारे में वैज्ञानिक रोज़ सीख और समझ रहे हैं। शोध कर रहे हैं। वैक्सीन और फास्ट टेस्ट के तरीके खोज रहे हैं। रोज़ाना ही कोविड 19 को लेकर नये और चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। चुनौती बढ़ती जा रही है। जैसे चीन ने नई जानकारी दी है कि वुहान में 1500 से ज़्यादा ऐसे मरीज़ भी मिले जिनमें बीमारी के कोई लक्षण दिख नहीं रहे थे। बड़े-बड़े देश और बड़े-बड़े लोग इस बीमारी के प्रति उचित सोच और व्यवहार को अपनाने से चूक गये हैं। जो बाद अमेरिका के राष्ट्रपति एक हफ्ते पहले तक कह रहे थे, आज उनका स्वर बदल चुका है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री खुद कोरोना पॉजिटिव पाये गये हैं। सिर्फ हमारे देश के दकियानूसी और गैर जिम्मेदारो लोगों के ही नहीं,दुनिया के सभी देशों में इस तरह के मामले सामने आये हैं। बस उनका स्वरूप अलग है। सोचिये, हम और आपको भी इस बीमारी के बारे में चंद रोज़ पहले तक बहुत कम जानकारी थी। लोग सामाजिक दूरी या कर्प्यू के महत्व को नहीं समझ रहे थे। कई लोगों ने सम्मेलन किये, कार्यक्रम किये, पार्टियां की। मेल-मुलाकातों में डूबे रहे। आराम से घूमते-फिरते रहे। लोगों को खतरे में डाला। इतना ही नहीं बड़े स्तर पर भी विश्व स्वास्थय संगठन की चेतावनी की अनदेखी की गई। मगर अब हालात पूरी तरह से सामने हैं।
यह संभलने का समय है। डरने का समय है। सजग और सावधान रहने का है। सबसे पहले खुद को और अपने परिवार को रोज़ाना शिक्षित और अपडेट करने की ज़रूरत है। फिर हमारे अपनों और समाज को। वे लोग जो नासमझ है,मज़हब को समझे बिना अपने समाज को ख़तरे में डाल रहे हैं। उन लोगों को तुरंत संभल जाने की ज़रूरत है।
इस वायरस ने छोटे-बड़े देश, अमीर-गरीब,ऊंच-नीच,जाति-धर्म के फर्क को भी खत्म कर दिया है। सबको समान रूप से अपना शिकार बनाया है। इसकी वजह से चंद दिनों में ही हमारे जीवन में कई बदलाव आ रहे हैं। आचार-व्यवहार, तौर-तरीके बदल गये हैं। इस वायरस ने हमें सच आईना भी दिखा दिया है। यह वायरस बता रहा है कि हमारे लिये अस्पताल,डॉक्टर,वैज्ञानिक,विकास,शिक्षा,स्वच्छता जैसी बातें कितने ज़रूरी है। पुरानी रूढ़ियां, धर्मभीरू मानसिकता, धर्म-जाति के भेद और बड़ा और छोटा कितने छोटे हैं। अर्थहीन हैं। सत्य केवल मानवता है।इंसानियत है। वैसे भी हम कई तरह की सामजिक बुराइयों और कुरीतियों से लड़कर आज यहां तक पहुंचे हैं। अब भी लड़ रहे हैं। हर जाति, धर्म, समाज या समुदाय में यह बदलाव हुए हैं। करोना वायरस भी यही तो कर रहा है। बार-बार हाथ धोने के बीच हमें मानसिक तौर पर सेनेटाइज़ कर रहा है। अपने और प्रकृति के प्रति हमारे फर्ज को याद दिला रहा है।
‘प्रजातंत्र’ अख़बार ( इंदौर ) से साभार
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