कोरोना का हमारी जीवनशैली पर प्रभाव

अम्ब्रेश रंजन कुमार

हम सभी एक अभूतपूर्व संकट के दौर से गुजर रहे हैं। चीन के वुहान शहर से शुरू कोरोना महामारी ने संपूर्ण विश्‍व को लॉकडाउन की स्थिति में ला खड़ा किया है। आज की पीढ़ी ने संपूर्ण विश्‍व को ऐसी समस्‍या से जूझते हुए पहली बार देखा होगा। यह दौर निश्चित रूप से मानव-इतिहास में एक कठिन दौर के रूप में लंबे समय तक याद रखा जाएगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि आज एक अदृश्‍य और अतिसूक्ष्‍म वायरस ने पूरी दुनिया की गति पर लगाम लगा दिया है।

कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए सामाजिक दूरी (सोशल डिस्‍टेंसिंग) का पालन करना, साफ-सफाई, खांसते या छींकते समय मुंह को ढकना, साबुन से नियमित हाथ धोना जैसे उपाय बेहद कारगर साबित हुए हैं। इसलिए इन दिनों ये आदतें हम सभी की अनिवार्यताएं बन गई हैं।

मानव शास्त्र में आज के मनुष्‍य को होमो सेपियेंस के नाम से जोड़ा जाता है। होमो का अर्थ है मानव और सेपियेंस का अर्थ बु्द्ध‍िमत्‍ता है। मतलब आज का मानव बुद्ध‍िमान मानव है। उसकी बुद्ध‍ि ही उसे अन्‍य जीवों से अव्‍वल बनाती है। अपनी बु्द्ध‍िमत्‍ता से मनुष्‍य ने अपने सामने आईं विकट से विकट परिस्थितियों पर जीत पाई है और हम हर दौर में अपनी सभ्‍यता को आगे बढ़ाने में सफल भी हुए हैं। हमारे अतीत के उदाहरण हमें यह सोचने पर विवश करते हैं कि शीघ्र ही हम कोरोना महामारी का इलाज ढूंढ पाएंगे। बहरहाल इस विषम परिस्थिति ने हमें एक ठहराव देते हुए कुछ सोचने पर विवश जरूर किया है.

आज देश की अधिकांश आबादी अपने घरों में बंद है। कोरोना प्रभावित इलाके में सभी गैर जरूरी गतिविधियां बंद हैं। दफ्तर, स्‍कूल-कॉलेज, सिनेमाघर, रेल यातायात, मॉल आदि पूरी तरह बंद हैं। जो दफ्तर खुले भी हैं तो वहां सख्‍त पाबंदिया हैं। इस लॉकडाउन में हमारे व्‍यवहार, दिनचर्या, सोच, आदतों आदि में भी काफी बदलाव आए हैं। घरों में बुजुर्ग, बच्‍चे, गृहणि‍यां, कामकाजी पुरूष और महिलाएं सभी के जीवन में कोरोना संकट और लॉकडाउन का सीधे या परोक्ष रूप से प्रभाव पड़ा है।

मानव समाज के समक्ष खड़ी इस चुनौती का हम सभी मिलकर सामना कर रहे हैं। इस संकट का सामना करने के लिए उठाए गए सामाजिक दूरी (सोशल डिस्‍टेंसिंग) को बनाए रखने के उपाय ने वर्चुअल वर्ल्‍ड में लोगों की सक्रियता बढ़ाई है। आज अलग-अलग स्‍तरों पर इंटरनेट का प्रयोग बढ़ा है। इंटरनेट डेटा ही हमें आपस में जोड़े रखने में हमारी मदद कर रहा है। वर्क फ्रॉम होम का कॉन्‍सेप्‍ट लोकप्रिय और कारगर हो रहा है। डिजिटल माध्‍यम से स्‍कूल-कॉलेज की कक्षाएं संचालित की जा रही हैं। लॉकडाउन के कारण लोग अपने सगे-संबंधियों से मोबाइल पर ऑडियो-वीडियो कॉल के जरिए उनका हाल पूछ रहे हैं। इसके अतिरिक्‍त मोबाइल मनोरंजन और जरूरी वस्‍तुएं मंगवाने का एक प्रमुख साधन बन कर उभरा है। अब देखने वाली बात यह है कि इस लॉकडाउन की अवधि में हमने अपने व्‍यवहार, आदतों और दैनिक जीवन में कई ऐसे तत्‍व अपना लिए हैं जो कोरोना महामारी के आने से पूर्व हम सभी के जीवन में इतनी गहराई से घर नहीं कर पाए थे। मसलन बार-बार हाथ धोना, बाहर से लाई गई सब्जियों, वस्‍तुओं को साफ करने के अलग-अलग तरीकों को अपनाना, सैनिटाइजर का नियमित प्रयोग करना, घर से बाहर जाने में मास्‍क लगाना आदि। इन दिनों ये सारे तौर-तरीके हमारी आदतों में शामिल हुए हैं। क्‍या हम कोरोना पश्‍चात् युग में भी इन आदतों को गंभीरता से लेते रहेंगे? क्‍या हम इन तौर-तरीकों को इतनी आसानी से छोड़ पाएंगे? मौजूदा हालात को देखते हुए यही लगता है कि इन आदतों को हम अपने जीवन से शीघ्र निकालने वाले नहीं हैं।

कोरोना के प्रकोप के चलते सामने आईं परिस्थितियों में सरकारी और निजी दफ्तरों में काम करने वाले कर्मियों के लिए वर्क फ्रॉम होम के कॉन्‍सेप्‍ट को बढ़ावा दिया जा रहा है। हालांकि वर्क फ्रॉम होम कॉन्सेप्ट कोई नई पद्धति नहीं है। आईटी सेक्‍टर और विभिन्‍न बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों में यह पद्धति पिछले तीन-चार दशकों में बेहद लोकप्रिय हुई है। इंटरनेट के आगमन से इन क्षेत्रों में दफ्तर के ऐसे कई काम घर पर रह के आसानी से किए जा सकते हैं। निश्चित तौर पर यह कॉन्‍सेप्‍ट उदार और सुविधाजनक होने के साथ-साथ परिवार को समय दे पाने की दृष्टि से भी उपयोगी है। पश्चिमी देशों में यह फ्लेक्‍सि‍बल कार्य का स्‍वरूप बेहत प्रचलित और लोकप्रिय है। इसके कई लाभकारी परिणाम भी समाने आए हैं जैसे कार्य के साथ-साथ परिवार को समय दे पाना, कार्य करने का फ्लेक्‍सि‍बल समय और स्‍वतंत्रता को चुन पाना, कंपनियों के लिए उर्जा, जगह और लागत की बचत कर पाना आदि। यहां यह भी उल्‍लेखनीय है कि प्रत्‍येक पेशा वर्क फ्रॉम होम की श्रेणी में सटीक नहीं बैठता है। फिर भी जो काम इंटरनेट के जरिए घर बैठे आसानी से किया जा सकता है उस संबंध में निःसंदेह वर्क फ्रॉम होम का कॉन्‍सेप्‍ट कर्मचारियों और कंपनियों दोनों के लिए लाभकारी उपाय है। इसमें ऊर्जा, प्रदूषण और यहां तक कि पलायन की समस्‍या का समाधान भी छिपा है।
लॉकडाउन की इस अवधि में मनुष्‍यों की घर से बाहर आवाजाही, फैक्ट्रियों, उद्योग धंधों पर अस्‍थाई रोक वाहनों के सीमित आवागमन आदि से वातावरण में तेजी से बढ़ रहे प्रदूषण पर भी लगाम लगा है। कोरोना महामारी ने हमें सामाजिक दूरी का पाठ तो पढ़ाया है परंतु इस लड़ाई में संपूर्ण मानव जाति‍ को एक होकर इससे लड़ने की  आवश्‍यकता का भी हमें संदेश दिया है। इसने अपने आस-पास के लोगों के बीच संवेदना, भाईचारा और सहयेाग की आवश्‍यकता के महत्‍व को भी समझाया है। इसने तेजी से विकसित हो रहे विश्‍व की गति पर लगाम लगाते हुए मानवीय और प्राकृतिक मूल्‍यों के बारे में सोचने पर हमें विवश किया है। हमें जीवन के कई पहलुओं पर सोचने के साथ-साथ हमारी कार्यशैली, जीवनशैली, रहन-सहन, कामकाज आदि के पारंपरिक स्‍वरूपों से अलग तौर तरीके पर भी सोचने को मजबूर किया है।

पिछले कुछ दशकों में मानव समाज ने जो उपलब्धियां हासिल की हैं हम इस कोरोना काल में इस वायरस से लड़ने में उन सभी उपायों और संसाधनों का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। हमारी यही सशक्‍तता कोरोना से जंग जीतने में हमारी उम्‍मीद जगाती है। ऐसे दौर में हम सभी का कर्त्तव्य बनता है कि हम अपने आस-पास रह रहे जरूरतमंदों को अपनी सक्षमता के अनुसार जीवनयापन में सहयोग प्रदान करें, इस बीमारी से लड़ने के लिए उन्हें जागरूक करें। एक सामाजिक प्राणी होने के नाते हमसे यह अपेक्षा भी की जाती है कि हम स्वयं सुरक्षित रहते हुए अपने आस-पास के लोगों को भी सुरक्षित रहने में उन्हें सहयोग दें।

 






Related News

  • क्या बिना शारीरिक दण्ड के शिक्षा संभव नहीं भारत में!
  • मधु जी को जैसा देखा जाना
  • भाजपा में क्यों नहीं है इकोसिस्टम!
  • क्राइम कन्ट्रोल का बिहार मॉडल !
  • चैत्र शुक्ल नवरात्रि के बारे में जानिए ये बातें
  • ऊधो मोहि ब्रज बिसरत नाही
  • कन्यादान को लेकर बहुत संवेदनशील समाज औऱ साधु !
  • स्वरा भास्कर की शादी के बहाने समझे समाज की मानसिकता
  • Comments are Closed

    Share
    Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com