भोजपुरी भाषा आ कंफ्युजन
नबीन चंद्रकला कुमार
सामान्य रुप से इ बहुत आसान ह कहल कि मय भाषा के जन्म संस्कृत से भइल बा । असल में एह में हमनी के दोष नइखे , नागरी में देव जोड़ के देवता के लिपि आ संस्कृत फेरु बाद में हिन्दी में देव भाषा कहि के देवता के भाषा बना दिहल बा । हम त तब हैरान हो जानी जब राहुल सांकृत्यायन से ले के उदय नारायण तिवारी हजारी प्रसाद दिवेदी जइसन नामी साहित्यकार लो के कोट कइल जाला हिन्दी के राष्ट्रभाषा कहत ।
असल में ओह घरी के साहित्यकार लो हिन्दी के संवसे भारत के सम्पर्क भाषा बनावल चाहत रहे , ओह लोगन के लागत रहे कि अंग्रेजन से देश के आजादी खाति बहुत जरुरी बा कि भारत के भाषा पुरा राष्ट्र के सम्पर्क भाषा बनो । असल में इहे साहित्यकार लो ना एह लो से पहिले के साहित्यकार लोगन के मान्यता भी इहे रहे । रउवा सभ के अचरज होइ कि हिन्दी में सबसे बेसी काम शुरुवात के दौर में बंगाल में भइल रहे जबकि ओह समय बंगाली साहित्य अपना चरम प रहे ।
एह काम के शुरुवात , नागरी के देवनागरी बना के उत्तर भारत के क गो भाषा के लिपि के खतम क के भइल । तिरहुता जइसन समृद्ध लिपि जवना में मैथिली लिखात रहे , कैथी लेखा शासन के भाषा के लिपि जवन शेरशाह के समय से चलल आवत रहे , खतम होखे के परल भा खतम कइल गइल । देवनागरी अइलस आ ओकरा संगे संगे हिन्दी बाकी इलाका में मातृभाषा के रुप में पेनिट्रेट करे लागल । इहे उ काल रहे जब हिन्दी के राष्ट्रभाषा के रुप में सम्बोधित कइल गइल । चुकि संस्कृत प पांडित्य आ वाद के असर रहे एहि से हिन्दी के सहुलियत आ आसानी से अपनावे वाली भाषा के रुप में देखल गइल । हिन्दी के हिन्दी नाव देबे वाला आ हिन्दी लेखा उर्दू बनावे वाला लोग असल में भारत के ना रहले , बाकिर इ दुनो भाषा के जनम बहुत पुरान ना ह , बलुक दुनो के जनम एके संगे भइल रहे ।
(खैर उदय नारायण तिवारी जी के लिखल किताब ” भोजपुरी भाषा और साहित्य ” से हइ फोटो बा ।)
खैर उदय नारायण तिवारी जी के लिखल किताब ” भोजपुरी भाषा और साहित्य ” से हइ फोटो बा ।भोजपुरी भाषा आ कंफ्युजन
सामान्य रुप से इ बहुत आसान ह कहल कि मय भाषा के जन्म संस्कृत से भइल बा । असल में एह में हमनी के दोष नइखे , नागरी में देव जोड़ के देवता के लिपि आ संस्कृत फेरु बाद में हिन्दी में देव भाषा कहि के देवता के भाषा बना दिहल बा । हम त तब हैरान हो जानी जब राहुल सांकृत्यायन से ले के उदय नारायण तिवारी हजारी प्रसाद दिवेदी जइसन नामी साहित्यकार लो के कोट कइल जाला हिन्दी के राष्ट्रभाषा कहत ।
असल में ओह घरी के साहित्यकार लो हिन्दी के संवसे भारत के सम्पर्क भाषा बनावल चाहत रहे , ओह लोगन के लागत रहे कि अंग्रेजन से देश के आजादी खाति बहुत जरुरी बा कि भारत के भाषा पुरा राष्ट्र के सम्पर्क भाषा बनो । असल में इहे साहित्यकार लो ना एह लो से पहिले के साहित्यकार लोगन के मान्यता भी इहे रहे । रउवा सभ के अचरज होइ कि हिन्दी में सबसे बेसी काम शुरुवात के दौर में बंगाल में भइल रहे जबकि ओह समय बंगाली साहित्य अपना चरम प रहे ।
एह काम के शुरुवात , नागरी के देवनागरी बना के उत्तर भारत के क गो भाषा के लिपि के खतम क के भइल । तिरहुता जइसन समृद्ध लिपि जवना में मैथिली लिखात रहे , कैथी लेखा शासन के भाषा के लिपि जवन शेरशाह के समय से चलल आवत रहे , खतम होखे के परल भा खतम कइल गइल । देवनागरी अइलस आ ओकरा संगे संगे हिन्दी बाकी इलाका में मातृभाषा के रुप में पेनिट्रेट करे लागल । इहे उ काल रहे जब हिन्दी के राष्ट्रभाषा के रुप में सम्बोधित कइल गइल । चुकि संस्कृत प पांडित्य आ वाद के असर रहे एहि से हिन्दी के सहुलियत आ आसानी से अपनावे वाली भाषा के रुप में देखल गइल । हिन्दी के हिन्दी नाव देबे वाला आ हिन्दी लेखा उर्दू बनावे वाला लोग असल में भारत के ना रहले , बाकिर इ दुनो भाषा के जनम बहुत पुरान ना ह , बलुक दुनो के जनम एके संगे भइल रहे।
नबीन चंद्रकला कुमार
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