…यहां के बच्चों का डर कहीं वे मर्दाना कमजोरी के शिकार तो नहीं हो जाएंगे
Vineet Kumar के फेसबुक टाइमलाइन से साभार
हिन्दी पट्टी में पैदा हुए अधिकांश बच्चे दसवीं- बारहवीं तक या तो खुद समाज विज्ञान या कला पढ़ना नहीं चाहते और गर चाहें भी तो उनके मां-बाप की इज्ज़त चली जाती है. खासकर लड़कों को तो इस बात का भी डर सताता है कि ये सब पढ़कर कहीं आगे चलकर मर्दाना कमजोरी के शिकार तो नहीं हो जाएंगे ? दहेज की रेट वहीं से स्खलित होने लग जाती है.
इस पट्टी से आए लोगों के लिए साइंस पढ़ना रूचि से कहीं ज्यादा सोशल स्टेटस का मामला हुआ करता है. वो घसीट-घसीटकर साइंस में पास होंगे, कोचिंग में जाकर पीसीएम का टीका लेंगे लेकिन इतिहास, राजनीति, साहित्य का दर्शन नहीं पढ़ेंगे. लेकिन
जैसे ही बीबीए,बीसीए,एमबीए हुआ और जेब में थोड़े पैसे आए, इतिहास, दर्शन, भारतीय परंपरा के ज्ञाता हो गए. अब उनकी सारी ताकत ये साबित करने में लग जाती है कि इन सबका हमसे बड़ा ज्ञाता कोई और नहीं .
ऐसे लोगों से मुझे कुछ और नहीं, बस एक बात पूछनी है- जिस विषयों से परहेज करने की ट्रेनिंग दी गयीं, वो कौन सा नाजुक पल रहा कि इनका ज्ञाता होना और घोषित करना आपको सबसे जरूरी लगा ?
इतिहास, साहित्य, दर्शन और समाज में हम कितने नासमझ हैं, ये तो आपसे छुपा नहीं लेकिन पीसीएम ऑब्लिक बायो का ज्ञान आपका कितना है, ये कैसे हमें पता चलेगा ?
Related News
इसलिए कहा जाता है भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर
स्व. भिखारी ठाकुर की जयंती पर विशेष सबसे कठिन जाति अपमाना / ध्रुव गुप्त लोकभाषाRead More
कहां जाएगी पत्रकारिता..जब उसकी पढ़ाई का ऐसा हाल होगा..
उमेश चतुर्वेदी हाल के दिनों में मेरा साबका पत्रकारिता के कुछ विद्यार्थियों से हुआ…सभी विद्यार्थीRead More
Comments are Closed